
कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 02
पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारितवर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था। गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा। अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है। पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।
पं बद्रीदत्त पांडे जी ने अपने कुमाऊँ का इतिहास में कहा है कि अस्कोट की ओर एक कौम 'राजी' हैं। इनका कहना है कि कुमाऊँ के मूल निवासी वे हैं और वे ही यहाँ के राजा थे। अन्य लोग उनके बाद यहाँ कुमाऊँ में आये थे। जिसका कुछ विवरण उन्होंने पोस्टल के जाति-खंड में दिया है। उनके अनुसार वैसे इन राजियों के राज्य की बात भी केवल किंवदन्ती-मात्र है। केवल उनके कथन के अलावा और कोई प्रमाण की बात उनको प्राप्त नहीं हुयी है। राजी जनजाति के ये लोग अब अस्कोट के जंगली गाँवों में यत्र-तत्र रहते हैं। नेपाल में राज्य-किरात या किरान्ति लोगों के राज्यासीन होने का पता चला है। किन्तु यहाँ पर किसी भी किरात राजा का कुमाऊँ के भीतर राज्य करने की बात जानी या मानी नहीं गई है।
अठकिंसन "जड़, जाजड़, बिजड़" प्रभृति राजाओं को किरात राजा मानते हैं, पर तमाम कुमाऊँ में वे खस-राजा माने जाते हैं। खस-जाति यहाँ पर महाभारत से पूर्व से है, क्योंकि महाभारत में कहा है कि वे लोग दुर्योधन की तरफ़ थे। पर खस-जाति में किसी भी चक्रवर्ती सम्राट होने के प्रमाण नहीं मिले हैं। खस-जाति के लोग मांडलीक राजा थे। पट्टी-पट्टियों में किले बनाकर रहते थे, जिन्हें कोट, गढ़ी या बुगा कहते थे, जिनमें से कुछ क़िलों के निशान अभी भी बाकी हैं। खस राजाओं के बाद पांडवों ने जिन क्षत्रियों को हराया, वे कौन थे, यह बात भी ज्ञात नहीं है। कहते हैं, उनकी बस्ती ढिकुली में थी। पर ये सब बातें भूतकाल के महाविस्मरण-सागर में विलीन हो गई हैं। आज न वे राजे रहे, न ही उनकी राजधानी।
२. सबसे प्राचीन ढिकुली की बस्ती
पुरातत्त्ववेत्ताओं का कथन है कि कुर्माचल की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली के पास थी। जहाँ की सामग्री से वर्तमान रामनगर बसा है। कोशी के किनारे इस जगह में बसी नगरी का नाम वैराटपत्तन या वैराटनगर था। कत्यूरी राजाओं के आने के पूर्व यहाँ पहले कोई कुरु राजवंश के राजा राज्य करते थे, जो प्राचीन इन्द्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली) के साम्राज्य की छत्रच्छाया में रहते थे। यह वही वैराटनगरी है, जहाँ पांडव गुप्त वनवास में एक साल तक रहे थे। वैसे एक वैराटनगरी जौनसार बावर में भी बताई जाती है। यद्यपि इस ओर की बहुत-सी बातें पांडवों से संबंधित हैं। इसके आगे भी पश्चिम में लालढांग चौकी के पास पांडुवाला में भी पुराने खंडहरों के भग्नावशेष चिह्न हैं।
बादशाह अकबर के राज्य के पहले कोई भी जिक्र कुमाऊँ की बाबत मुसलमान इतिहासकारों के जमाने का नहीं मिलता, न अन्य किसी देशी इतिहासों में इसका प्रसंग आया है। कोई-कोई लोग ऐसा भी कहते हैं कि शक राजा कुमाऊँ के थे। श्रीकनिंघम साहब ने अपनी अन्वेषण-संबंधी पुस्तकों के प्रथम खंड पृष्ठ १३७ में लिखा है कि दिल्ली के अन्तिम मौर्य राजा राजपाल को कुमाऊँ के शकादित्य राजा ने मारा। यह 'शकादित्य' कनिंघम कहते हैं-"क्षकों के राजा थे, न कि शकों के विजेता, क्योंकि शकों के विजेता सम्राट विक्रमादित्य शकारि कहे जाते थे, न कि शकादित्य।" पर इन शकादित्य का राज्य ढिकुली में था या नहीं, यह नहीं कहा जाता। शक व हूण लोग तो खस व कत्यूरियों के बाद ही आये हैं।
३. कत्यूरियों के मूल-पुरुष कत्यूरी सम्राट शालिवाहन
लगभग ३-४ हजार वर्ष पूर्व शालिवाहन-नामक राजा कुमाऊँ में आये। वे कत्यूरियों के मूल-पुरुष थे। पहले उनकी राजधानी जोशीमठ के आसपास मानी जाती है। राजा शालिवाहन अयोध्या के सूर्यवंशी राजपूत थे। अस्कोट खानदान के राजबार लोग, जो उनके वंशज हैं, कहते हैं कि वे अयोध्या से आये और कत्यूर में बसे। मृत्युंजय कहता है कि वे गोदावरी के किनारे प्रतिष्ठान से आये थे। कत्यूरी राजा कार्तिकेयपुर से गढ़वाल का भी शासन करते थे, इससे अंगरेज़ी लेखकों की यह दलील कि पहले उनकी राजधानी जोशीमठ में थी, ठीक नहीं जँचती। ये राजा शालिवाहन इतिहास-प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट न थे, क्योंकि सारे भारतवर्ष के सम्राट अपनी राजधानी कत्यूर या जोशीमठ में रक्खें, यह बात समझ में नहीं आसकती। हाँ, यह जगह उनके गरमियों में रहने की हो, यह बात तो संभव है, पर उस समय जब कि मार्ग की सुगमता नहीं थी, ऐसा करना खिलवाड़ न था। इससे यह बात साफ जाहिर होती है कि अयोध्या के सूर्यवंश के कोई राजा शालिवाहन यहाँ आये और उन्होंने यहाँ पर एक अच्छा प्रभावशाली साम्राज्य स्थापित किया।
४. फ़िरिश्ते की बातें
फ़िरिश्ता नामक फारसी इतिहास में एक स्थल में लिखा है कि "कुमाऊँ के राजा फुरु (पुरु ) ( Porus ) ने बहुत सेना एकत्र की, और दिल्ली पर चढाई की। वहाँ के राजा दिल्लू को हराकर (४ या ४० वर्ष के राज्य के बाद) आप सम्राट् बन गये और दिल्लू को रोहतास के किले में बंद कर दिया। राजा पुरु ने इधर वंगदेश और उधर पश्चिमी सागर के मुल्क तक को जीतकर फारस (परशिया) के राजाओं को कर देना बंद कर दिया। सब लोग कहते हैं कि "राजा पुरु ने सिकंदर से मुकाबिला सिंधु नदी में किया। वह वहाँ मारा गया। उसने ७३ वर्ष राज्य किया था।"
फ़िरिश्ता या फ़ेरिश्ता (उर्दू: فرِشتہ), का पूरा नाम मुहम्मद कासिम हिन्दू शाह (उर्दू: مُحمّد قاسِم ہِندُو شاہ), एक फारसी इतिहासकार था जिसका जन्म १५६० में हुआ था एवं मृत्यु १६२० में हुई थी। फ़िरिश्ता या फ़रिश्ता का फ़ारसी में अर्थ खुदा का भेजा एक दूत होता है।
श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com
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