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कत्यूरी शासन-काल - 09

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कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 09


पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारित

वर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था।  गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा।  अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है।  पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।

ताम्र पत्र का हिन्दी-अनुवाद

  1. कल्याण हो। श्रीमान् कार्तिकेयपुर से समस्त देवगणों के अनुचर द्वारा पूजित किया गया है, भक्ति-भावना के साथ सिर झकाते हुए मुकुटमणियों की किरणों से प्रकाशमान नखचन्द्र की कला जिसकी है, ऐसे।
  2. (आपका) सर्वतः प्रकाशमान, प्रदीपों के प्रकाश को मंद करनेवाला, देवताओं के सामने झका हश्रा, उनकी पृथ्वी पर गिरी हुई मकरंद पंक्ति से धूसरित हो गया है सिर के केशों का झंड जिसका, ऐसे
  3. गंगा है मस्तक पर जिनके ऐसे भगवान शंकर के प्रसाद से अपनी भुजा से उपार्जित किया है शूरता से शत्रों को जीतकर उनकी समस्त धनराशि जिसने उसके द्वारा दया, चतुरता, सत्य भाषण, उन्नत भाव, उच्च पवित्रता, उच्च उदारता आदि गुणगणों का समूह जिसने, ऐसा-
  4. अत्यन्त सुकृति की परंपरा का बीजारोपण करनेवाला, सतयुगी राजाओं के समान सुन्दर कीर्तिवाला, नंदादेवी के चरण-कमलों में झुके सिर वाला जो श्रीमिम्बर है, उनका पुत्र
  5. उनकी आज्ञा का पालन करनेवाला, रानी महादेवी श्रीनाथदेवी में उत्पन्न परम शैव परम ब्राह्मणों का सेबक, पैनी तलवार की धाराओं से काटे हुए हाथियों के मुंडों के मस्तकों से गिरे हुए मुक्तानों के समान सफेद है यश की पताका जिसकी
  6. उस यश की पताका से हँस करके फैकी है तारागणों की पंक्ति जिसने, ऐसा परम भट्टारक महाराजाधिराज महादेव है इष्टदेव जिनका ऐसे का पुत्र उनकी आज्ञा का पालन करनेवाला रानी महादेवी श्रीमती वेगदेवी में पैदा हुआ
  7. शंकर का परमभक्त, ब्राह्मणों का परमपूजक, कलि के कलंकरूपी पंक में डूबी हुई पृथ्वी के उद्धार करने के लिये धारण किया है वराहावतार के समान शरीर जिसने, अपनी स्वाभाविक बुद्धि के विभव से स्थगित किया है शत्रुओं का प्रताप-चक्र जिसने, ऐसा
  8. अत्यन्स वैभव के साथ संहार करने के लिये भयंकर भृकुटि को बनाकर सिंह के समान समक्ष में आये हुए शत्रुओं के समूह पर निर्भय होकर रुधिर से लाल हुई तलवार को घुमाते हुए, शत्रुओं के स्वर्गारोहण के अनन्तर विजयलक्ष्मी ने आनंद के साथ आलिंगन किया है कंठ जिसका, ऐसे--
  9. देवांगनाओं के सुन्दर मुख के अवलोकन से शस्त्र को देवी के चरणों में रखकर पुष्पमालाओं द्वारा भगवती के विजय-पताका-युक्त अपने सिर को जगदम्बा के चरणों में झुकाकर, अपने भुजदंड के बल से अपने शस्त्रों की सहायता से शत्रुओं के प्रचंड वेग को रोकते हुए समस्त सामंत राजाओं को भेंट के साथ अपने काबू में करनेवाला
  10. पृथु के समान अपने भुजदंड के बल से समस्त धनुर्धारी शूरवीरों के गणों को स्तम्भित कर, अपने वश में लाई हुई अचल रूप से पालन की हुई धरा का सार ग्रहण करनेवाले परम भट्टारक महाराजाधिराज राजाओं के राजा श्रीमान् 'ललितसूरदेव' कुशवंशावतंस इसी श्रीमान् कार्तिकेयपुर के मंडल में आये हुए
  11. समस्त पृथ्वी के राजाओं को, राजपुत्रों को, राजपौत्रों को, राजामात्यों को, उनके नीचे काम करनेवाले छोटे-छोटे और बड़े-बड़े क्षत्रिय महावीरों को, उनके साथ में आये हुए बड़े-बड़े द्वारपालों को हाथ में दंड लेकर महाराज का गुण गान करनेवाले--
  12. उनकी प्राचीन कुल-परंपरा का, उनकी शूरता का, उनकी उदारता का, उनके दुःसाध्य कर्मों का, उनके द्वारा छोड़े हुए बड़े-बड़े चोर और डाकुओं के पकड़नेवाले वीरों का, उनसे उघाये हुए शुल्क का तथा तत्तत कार्यों में नियुक्त कवि, ज्योतिषिक, आभिचारिक (जादू-टोनेवाले) आदि को दिया है--
  13. हाथी, ऊँट, घोड़े और सेना के द्वारा प्राप्त हुए प्रभूत धन के द्वारा प्राप्त हुए धन एवं पशुओं के आयात और निर्यात के प्राप्त हुए धन-समूह को राज्यकार्य में लगे हुए अनेक जिलों के मालिक, अनेक सेनाध्यक्ष, छोटे नपति, अश्वपति, प्रान्ताध्यक्ष, शत्रुसेना भयंकर, अपने बड़े-बड़े सेनापति--
  14. मार्ग-संशोधक तथा प्रबंधक, किलेदार, घट्टपाल, क्षेत्रपाल, प्रान्तपाल, उनके पुत्र और पौत्र, गोपाल, महिषीपाल, इनके निरीक्षक बड़े-बड़े महाकवि, अहीर, वैश्य, बड़े-बड़े सेठ, इनमें रखकर--
  15. १८ प्रकार की राजनीति के जाननेवाला खस, किरात, द्रविड़, कलिंग, सरसेन, हूण, आन्ध्र, मेद आदि चांडाल पर्यन्त समस्त परिजनों को, समस्त काम करनेवालों को, समस्त जनपदों के मनुष्यों को, समस्त सेनापतियों को, इसी प्रकार अन्य समस्त सेवकों को--
  16. प्रसन्न करके, उनके द्वारा कही हुई कीर्ति का बार-बार स्मरण करके अपने आश्रय में आनेवाले और उनके समस्त इष्ट-मित्रों को, ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य समस्त जनों को यथायोग्य यह आदेश देता है, तथा बतलाता है, और अनुशासन करता है कि तुम सब लोग ऊपर बतलाए हुए देशों में उन्नत उन्नत-गोष्ठों (गायों) को, तथा धान्य-राशि के उठाने के स्थानों को--
  17. छोटे-छोटे ग्रामों को, पल्लियों (खरक) को, बाज़ारों को तथा देवोदेश्य से दिये हुए अनेक सुगंधित द्रव्यों से सुगंधित दोनों ओर से मार्गपाल उच्च-उच्च यज्ञ-मंडपों को, इन सबको मैंने अपने माता-पिता और अपने आत्मा की पूर्ण वृद्धि के लिये गोरुन्नसारी तथा दूसरा ग्राम, जो पाली में है और जो खसिया तथा गुग्गुल के अधिकार में है, वे ग्राम दान में दिये गये--
  18. अश्वत्थ (पीपल )-पत्र के समान चंचल अपने जीवन को देखकर जल बुद्धुद के समान असार आयु को देखकर, अपनी लक्ष्मी की हाथी के बालक के कर्ण-चालन के समान चंचलता देख करके परलोक में मोक्ष-सुख की प्राप्ति के लिये तथा संसार-सागर के उतरने के लिये--
  19. पुण्य दिन में, उत्तरायण संक्रान्ति में, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, उपलेपन, नैवेद्य, बलि, चरु, नृत्य, गान, वाद्य आदि के लिये, फूटे हए मकानों की मरम्मत के लिये, नवीन मंदिरों के बनाने के लिये
  20. (मंदिरों के) नौकरों की तनख्वाह के लिये, गौ की नासिका के समान उन्नत, पवित्र भूमि में महादेवी श्रीसामदेवी ने स्वयं बनाये हुए भगवान् के मंदिर की पूजा के लिये गोरुन्नसारी-नामक गाँव श्रीनारायण भट्टारक को अपनी आज्ञा से दिया--
  21. समस्त सेवक-युक्त आगम-निर्गम-द्वार-घटित, नहीं लेने योग्य, नहीं तोड़ने योग्य, सर्य-चंद्रमा की आयु तक रहनेवाले, अपने प्रान्त के अनेक प्रान्तों को, उनकी सीमाओं के साथ-साथ लगे हुए वृक्षों को, बगीचों को, गहरेगहरे तालाबों को, झरनों को
  22. मंदिर-स्थित ब्राह्मणों के निमित्त दी हुई अनेक सामग्रियों को सुख-पूर्वक जीवन-निर्वाह करने के लिये, उनकी वंश-परम्परागत सन्तति के उपभोग के लिये जो कुछ हमने ऊपर बतलाये हुए प्रदेश तथा उसके संबंध में अन्य भी अनेक उपकरण के साथ दिये हुए निर्विवाद अनन्त काल तक व्यवहार में लाने के लिये जो मैंने लिखित उल्लिखित स्थान बतलाये हैं, उनमें कोई भी किसी प्रकार का झगड़ा न करे
  23. उनका मेरी आज्ञा के विरुद्ध ......(यदि कोई व्यवहार करेगा) तो मेरे प्रति महान् द्रोही होगा। इस आज्ञा को मैं प्रवर्धमान विजयराज्य संवत्सर २१ में माघवती तृतीया को महादान-पत्र के साथ अक्षय राज्य के ऊपर बैठनेवाले उत्तरवशाधिकारियों को यह हमारा आदेश है।
  24. यह लिखा गया है उच्चतर संधि तथा उच्चतर विग्रह के द्वारा प्राप्त हुए राज्य नायक श्रीमान् आयट अवटंकवाले श्रीगंगभद्र ने

(श्लोकों का अर्थ)

  • (क) जो-जो इस भूमि का दाता होता जायगा, उस-उसको उस-उस समय में फल प्राप्त होगा। समस्त भावी राजाओं को प्रणाम कर बार-बार रामचन्द्र इस बात को माँगता है, मैंने जो सामान्य रीति से धर्म के लिए कार्य किया है, उसका समय-समय पर आप लोग पालन करें॥१॥
  • अपनी दी हुई अथवा दूसरे की दी हुई पृथ्वी का, जो अपने उपभोग के लिये आहरण करता है, वह ६० हजार वर्ष तक कुत्ते के पुरीष में कृमि बनकर अपने जीवन को व्यतीत करता है ॥२॥
  • (ख) भूमि का दान देनेवाला मनुष्य हंस-युक्त विमान पर चढ़कर दिव्य स्वर्ग को प्राप्त होता है। और उस पृथ्वी का आहरण करनेवाला मनुष्य लोहे के बने हुए गरम तेल से भरे हुए अत्यन्त प्रतप्त तैल-कुंड में कालदूतों के द्वारा पकाया जाता है ॥३॥
  • ६० हजार वर्ष तक भूमि का देनेवाला स्वर्ग में रहता है, और उसका कीननेवाला तथा छीनने में अनुमति देनेवाला उतने ही वर्ष तक नरक में रहता है।।४॥
  • एक गौ और सुवर्ण तथा एक अंगुल-मात्र भूमि को छीनकर मनुष्य कल्पपर्यन्त नरक में निवास करता है ॥५॥
  • पहले समय में जिन राजाओं ने धर्मार्थ और यश की वृद्धि के लिये दान दिये हैं, वे सब (शिव) निर्माल्य के समान हैं। उनको कोई भी भद्र पुरुष लेने का अधिकार नहीं रखता है ॥६॥
  • अपने जीवन को हवा के वेग में घूमते हुए बादल के टुकड़े के समान, असार समझकर मेरे वश में उत्पन्न होनेवाले अन्य महानुभाव मेरे इस दान-पत्र का अनुमोदन करें। बिजली और पानी के बगूले के समान चंचल तथा अस्थिर लक्ष्मी के उपयोगों को समझकर उसका दान ही फल समझना चाहिए और दूसरे की कीर्ति का पालन करते हुए उसका नाश नहीं करना चाहिए ॥७॥
  • इस प्रकार कमल-दल के ऊपर विद्यमान जल-विन्दु की चंचलता का ध्यान रखते हुए और अपने जीवन को भी तद्वत् समझते हुए जो कुछ मैंने समझ-बूझकर ऊपर लिखा है, उसको समस्त सज्जन मानें। और मेरे वंशजों को चाहिए कि पूर्वजों की कीर्तियों का कदापि नाश न होने दें ॥८-९॥
  • श्रीमिम्बर उनका चरणानुरागी श्रीमान् इष्टगणदेव उनका चरणानुरागी श्रीमान् ललितसरदेव महाराजाधिराज।

श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com

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