कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 14
पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारितवर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था। गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा। अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है। पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।
कत्यूरी शासन काल के पतन के बारे में बतलाते हुए पं बद्रीदत्त पांडे जी लिकते है कि इस तरह यह विस्तृत साम्राज्य छोटे-छोटे खंडों में विभाजित हो गया। कुमाऊँ राज्य-भर में तथा तराई-भावर में भी कत्यूरियों के स्मारक हैं। यहाँ के भूतपूर्व कमिश्नर बैटन साहब लिखते हैं--"इनमें से बहुत से चबूतरे तथा नौले' (बावरियाँ) बड़ी सुंदर बनावट के हैं। इनके मंदिरों व इनके समय की मूर्तियों से ज्ञात होता है कि ये हिंदू-देवी-देवताओं के कट्टर उपासक थे। इनकी बनावट तथा लंबाई-चौड़ाई ठीक ऐसी है, जैसे दक्षिण में पाये गये बृहत्स्तम्भ, भवन व पनघटों की। ये अक्सर बुंदेलखंड में नर्मदा के निकट पाये गये हैं। इन बातों से साफ जाहिर है कि कत्यूरी राजा बाहर से आये थे। वे यहीं के पुराने निवासी न थे।
हिमालय ऐसे पवित्र देश के शासक होने से ये राजा कठेड़ (रोहिलखंड) के राजाओं से उच्च गिने जाते थे। मुसलमानी राज्य स्थापित होने के बाद भी कुमाऊँ के राजा तराई में काबिज़ थे। वे किसी के मातहत न थे। इसमें संदेह नहीं कि तराई में भी कत्यूरियों का राज्य था। मुद्दत से पहाड़ के लोग अपने बाल-बच्चे तथा डंगरों को लेकर तराई-भावर में जाड़ों में रहते आये हैं। नेपालवालों ने तराई-भावर को अपने अधिकार से बाहर न जाने की बाबत कितना आन्दोलन मचाया था। "नेपाल ही नहीं, कुमाऊँवालों ने भी इस तराई के लिये तुमुल संग्राम किया है, जिसका वृत्तान्त तराई-भावर के प्रकरण में आवेगा।
कत्यूरी राजाओं के समय में कितनी आबादी तराई भावर तथा कुर्मांचल में थी, कहा नहीं जाता। आने-जाने की सुगमता किस प्रकार की थी, सड़कें कैसी थीं, राज्य-शासन कैसे होता था, ये बाते ज्ञात नहीं हैं। पर काली कुमाऊ के लोगों का कहना है कि जिला बिजनौर का धामपुर नगर उस कत्यूरी राजा धामदेव ने बसाया, जिसने अपनी लड़की राजा सोमचंद को ब्याही थी। इनका राज्य घटते-घटते राजा रुद्रचंद के समय में केवल तल्ला व मल्ला कत्युर में बाक़ी रह गया था। बाद को इसी राजा रुद्रचंद ने कत्यूर भी छीन लिया था।
१६. कत्यूरियों की वंशावली
इन कत्युरी राजाओं के पुश्तनामे संवत्वार ठीक-ठीक नहीं मिलते। जहाँ-जहाँ इनकी संतानें अब भी विद्यमान हैं, वहाँ से मँगाने से सिर्फ उनके खानदान की वंशावली का कुछ-कुछ बोध होता है और ज़्यादा बातें ज्ञात नहीं होती। कत्युरियों की संतानें अस्कोट, डोटी, पालीपछाऊँ में अब भी विद्यमान हैं, अतः वहाँ की वंशावलियों का विवरण यहाँ पर दिया जाता है--
(अ) रजबार अस्कोट की वंशावली
१. शालिबाहन देव
२. संजयदेव
३. कुमारदेव
४. हरित्रयदेव
५, ब्रह्मदेव
६. शंखदेव
७. बज्रदेव
८. वृणञ्जयदेव
९. विक्रमजीतदेव
१०. धर्मपालदेव
११. सारंगधरदेव
१२. नीलपालदेव
१३. भोजराज देव
१४. विनयपालदेव
१५. भूजेन्द्र या भुजनरादेव
१६. समर्सीदेव
१७. अशालदेव
१८. अशोकदेव
१९ . सारंगदेव
२०. नगजावसिदेव
२१. कामजयदेव
२२. शालिनकुलदेव
२३. गणपति पृथ्वीधरदेव
२४. जयसिंहदेव
२५. शंखाचर या शंखेश्वरदेव
२६. सोमेश्वर या शनेश्वरदेव
२७. प्रसिद्ध देव (क्राशिद्वियपदेव)
२८. विद्धिराजदेव
२६. पृथ्वीश्वरदेव
३०. बालक या बलकदेव
३१. श्रासन्तिदेव
३२. बासन्तिदेव
३३. कटारमल्लदेव
३४. सत्यदेव या सोनदेव
३५. सिंधुदेव
३६. कीनदेव या किनादेव
३७. रणकीनदेव या रणकिनादेव
३८. नीलरायदेव
३९. वज्रबाहुदेव
४०. कार्यसिद्धिदेव
४१. गौरांगदेव
४२. सांडिल्यदेव
४३. हतिनराजदेव
४४. तिलंगराजदेव
४५. उदकसीलादेवं
४६. प्रीतमदेव
४७. धामदेव
४८. ब्रह्म देव या बिरदेव (कत्यूरी आखिरी महाराजा)
४९. त्रिलोकपाल
५०. अभयपाल (सन् १२७६ में अस्कोट आये)
श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com
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