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झूला फूल (Lichen) - उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद

झूला घास का पारम्परिक उपयोग मेहंदी, औषधी तथा मसालों में किया जाता है, Jhool Lichen is used in dyes, medicines and spices.

झूला फूल (Lichen)

उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद-41

झूला एक लाइकेन है जो फफूंदी (Fungus) तथा शैवाल (Algae) से मिलकर बनता है तथा एक दूसरे के साथ परस्पर लाभान्वित (Symbiotic) करते हुए पेडों के छालों पर उगते हुए देखे जाते है। सामान्यतः देखने में इनकी कुछ खास महत्वा नहीं दिखती किंतु यह पेड की छाल के ऊपर एक परत बनाकर पेड को विपरित वातावरण के प्रभाव व नमी की मात्रा को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 

इनका पारम्परिक उपयोग मेहंदी, औषधी तथा मसालों में किया जाता है जिसकी वजह से बडे औद्योगिकी क्षेत्रों में इनकी वृहद मॉग रहती है। केवल गढवाल क्षेत्र से ही 750 मीट्रिक टन लाइकेन एकत्रित कर बडे बाजारों को बेचा जाता है। इसका आर्थिक महत्व इसी से आंका जा सकता है कि वन विभाग के आंकडों के अनुसार वर्ष 2011 से 2016 तक लगभग 79,166.53 कुन्तल लाईकेन 147.33 प्रति कि0ग्रा0 की दर से बेचा गया है।

झूला घास का पारम्परिक उपयोग मेहंदी, औषधी तथा मसालों में किया जाता है, Jhool Lichen is used in dyes, medicines and spices.

लाइकेन वैज्ञानिक रूप से परमेवीएसी परिवार से संबंधित है जिसके अन्तर्गत लगभग 80 जेनस तथा 20,000 प्रजातियॉ पाई जाती है। उत्तराखण्ड में लाइकेन की 500 प्रजाति पाई जाती है, जिनमें से 158 प्रजातियॉ कुमॉऊ की पहाडियों में पाई जाती है। उत्तराखण्ड में झूला (लाइकेन) को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे- मुक्कू, शैवाल, छरीया, झूला। पारमिलोडड लाइकेन उत्तराखण्ड की पहाडियों से व्यावसायिक तौर पर एकत्रित किया जाता है। लाइकेन मुख्यतः पेडों की छाल तथा चट्टानों पर उगता है। कई पेडों की प्रजातियॉ जामुन, बांज, साल तथा चीड के विभिन्न प्रकार के लाइकेन की वृद्धि में सहायक होते है। 

क्वरकस सेमिकारपिफोलिया (बांज) पर लाइकन की 25 प्रजातियॉ, क्वरकस ल्यूकोट्राइकोफोरा पर 20 प्रजातियॉ एवं क्वरकस फ्लोरिबंडा में लाइकेन की 12 प्रजातियॉ पाई गयी है। पारमिलोइड लाइकेन जैसे कि इवरनिसेट्रम, पारमोट्रिना, सिट्रारिओपसिस, बलवोथ्रिक्स, हाइपोट्रिकियाना और राइमिलिया, फ्रूटिकोज जाति, रामालीना और यूसेन के साथ हिमालय के सम शीतोष्ण क्षेत्रों से इकट्ठा किया जाता है। इसका प्रयोग इत्र, डाई तथा मसालों में बहुतायत किया जाता है तथा इसको गरम मसाला, मीट मसला, एवं सांभर मसला में मुख्य अव्यव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है साथ ही साथ इनका उपयोग एक प्रदूषण संकेतक के रूप में भी जाना जाता है।

इसके अतिरिक्त औषधीय रूप से लाइकेन को आयुर्वेदिक तथा यूनानी औषधी निर्माण में मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है जिसमे Charila तथा Ushna नामक दवाइयॉ भारतीय बाजार में प्रसिद्ध है। इसके अलावा इसका प्रयोग भारतीय संस्कृति में हवन सामाग्री में भी उपयोग किया जाता है।

झूला घास का पारम्परिक उपयोग मेहंदी, औषधी तथा मसालों में किया जाता है, Jhool Lichen is used in dyes, medicines and spices.

लाइकेन में वैज्ञानिक रूप से बहुत सारे प्राथमिक व द्वितीयक मैटाबोलाइटस पाये जाते है। मुख्यतः इसमें Usnic Acid की मौजूदगी से इसका वैज्ञानिक एवं औद्योगिक महत्व और भी बढ जाता है। विभिन्न शोध अध्ययनों के अनुसार Usnic Acid होने की वजह से इसमें जीवाणु नाशक, ट्यूमर नाशक तथा ज्वलन निवारण के गुण पाये जाते है।

2005-06 से पूर्व लाइकेन और अन्य औषधीय पौधों के व्यापार को विनिमित नहीं किया गया था। उत्तराखण्ड के वन विभाग ने वन उत्पाद के विपणन में उत्तराखण्ड वन विकास निगम को शामिल करके सक्रिय भूमिका निभाई। उत्तराखण्ड वन विकास निगम, भेषज संघ, कुंमाऊ मण्डल विकास निगम, गढवाल मण्डल विकास निगम तथा वन पंचायत उत्तराखण्ड में झूला (लाइकेन) के संग्रहण में शामिल मुख्य पॉच एजेन्सियॅा है। लाइकेन के व्यापार में इन एजेन्सियों को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उत्पादन की निकासी को विनियमित करना है ताकि इस वन उत्पाद का अत्यधिक व अवैज्ञानिक विदोहन ना हो।

झूला घास का पारम्परिक उपयोग मेहंदी, औषधी तथा मसालों में किया जाता है, Jhool Lichen is used in dyes, medicines and spices.

जंगल में झूले के सतत् विदोहन के लिए वन विभाग वनों को कुछ श्रेणियों में ही दोहन की अनुमति प्रदान करता है। गांववासी दैनिक आधार पर वन उत्पाद को एकत्र करते है और जब अच्छी मात्रा में एकत्रित हो जाय तो उसे सुखाने के बाद स्थानीय बाजारों को बेच दिया जाता है जो कि स्थानीय नागरिकों को आर्थिकी प्रदान करता है।

लाइकेन की विशेषताओं एवं गुणों को देखते हुए इस पर अधिक वैज्ञानिक शोध कार्य किये जाने की आवश्यकता है जिससे भविष्य में इसकी विशेषता, गुणों एवं उपयोगिता को आम जनमानस से परिचय कराया जा सकें।

डा0 राजेन्द्र डोभाल, पूर्व महानिदेशक,
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्, उत्तराखण्ड।

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