कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 16
पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारितवर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था। गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा। अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है। पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।
(स) डोटी की वंशावली
पं बद्रीदत्त पाण्डे जी ने ’कुमाऊँ का इतिहास’ में कत्युरी राजाओं की डोटी में विस्थापित वंशावली का विवरण देते हुये लिखा है कि, डोटी में कत्यूरी खानदान की जो शाखा गई, उसकी वंशावली इस प्रकार है:-
१. शालिवाहनदेव
२. शक्तिवाहनदेव
३. हरिवर्मादेव
४. श्रीब्रह्मदेव
५. श्रीवज्रदेव
६. विक्रमादित्यदेव
७. धर्मपालदेव
८. नीलपालदेव
९. युंजराजदेव
१०. भोजदेव
११. समरसिंहदेव
१२. अशाल देव
१३. सारंगदेव
१४. नकुलदेव
१५. जयसिंह देव
१६. अनिजालदेव
१७. विद्यराजदेव
१८. पृथ्वीश्वरदेव
१९. चूनपालदेव
२०. आसन्तिदेव
२१. बासन्तिदेव
२२. कटारमल्लदेव
२३. सिंहमल्लदेव
२४. फणिमल्लदेव
२५. निफिमल्लदेव
२६. निलयरायदेव
२७. व्रजबाहुदेव
२८. गौरांगदेव
२९. सीयामल्लदेव
३०. इलराजदेव
३१. निलराजदेव
३२. फाटकशिलराजदेव
३३. पृथ्वीराजदेव
३४. धामदेव
३५. ब्रह्मदेव
३६. त्रिलोकपालदेव
३७. निरंजनदेव
३८. नागमल्लदेव
३९. अर्जुन साही
४०. भूपतिसाही
४१. हरि साही
४२. रामसाही
४३. प्रवरसाही
४४. रुद्र साही
४५ विक्रम साही
४६ मानधाता साही
४७. रघुनाथ साही
४८. हरि साही
४९. कृष्ण साही
५०. दीप साही
५१. विष्णु साही
५२. प्रदीप साही
५३. हंसध्वज साही
साही खानदान राजा अर्जुनसाही से चला, जो राजा रतनचंद का समकालीन था।
(द) पाली-पछाऊँ के कत्यूरियों की वंशावली
पं बद्रीदत्त पाण्डे जी ने ’कुमाऊँ का इतिहास’ में पाली-पछाऊँ में विस्थापित कत्यूरी राजाओं की वंशावली के सम्बन्ध में वर्णित किया है कि, कत्यूरी वंश की एक शाखा हम ऊपर लिख चुके हैं कि पाली पछाऊँ को गई थी। उनका पुश्तनामा हम यहाँ पर देते हैं:-
१. आसन्तिदेव | |||
२. बासन्तिदेव | |||
३. गौरांगदेव | |||
४. श्यामलदेव | |||
५. फेणबराई | |||
६. केशबराई | |||
७. अजबराई | |||
८. गजबराई | |||
९. सुजानदेव | ९. पीतमदेव | ||
१०. सारंगदेव | १०. धामदेव | ||
११. वीरमदेव | बागदेव | इसने दक्षिणी गढ़वाल में राज किया। अक्सर पातलीदून की तरफ़ किला बनाकर रहा था। इनकी संतान कुमाऊँ में चंद राजाओं के समय आई। अभी विद्यमान है। | |
१२. सुरदेव | |||
१३. भावदेव | |||
१४. पालनदेव | १४. पीथु गुसाई | ||
१५. कीलणदेव | लड़देव | जपू गुसाई | सारंग गुसाई |
चौकोट में जसपर के रजबार इस वश के हैं। | सैणमानुर में बसने से मनुराल कहलाये। चचणेटी व सैण मानुर में अभी हैं। | उदयपर, भटल गाँव तथा हाट के मनुराल अभी तक विद्यमान हैं | |
धर्मसिंह | भवानसिंह | ||
कहेड़ गाँव के मनुराल अब तक मौजूद हैं। | तामाढौन के मनुराल अभी तक विद्यमान हैं। |
पं बद्रीदत्त पाण्डे जी पाली-पछाऊँ में विस्थापित कत्यूरी राजाओं की वंशावली के सम्बन्ध लिखते हैं कि जब से इनको सयानचारी का पद दिया गया ये देव से गुसाई कहलाये। चौकोट परगने के तामाढौन स्थान में कुलदेवी (इन राजाओं की इष्टदेवी) के मंदिर में सारंगदेव का नाम खुदा है, उसमें संवत् १३४२ लिखा है। यह सारंगदेव पुराने कत्यूरी राजा थे या कुँ० धर्मसिंह व भवानसिंहजी के पिता, कह नहीं सकते।
उधर अस्कोट की रजबार वंशावली के बारे में लिखते हैं कि वो देव से पाल हो गये। जिनके वंशजों में नैनीताल से सांसद रहे महेन्द्र पाल जी का परिवार है।
श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com
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