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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 04

शेरदा की कविता , "बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल", Kumaoni Kavi Sherda ki kavita, Bakhata teri balai lhyul

शेरदा की कविता , "बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल"


शेरदा के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनकी रचनाओं में सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ ही हास्य व्यंग्य भी चलता रहता है।  उनको अपने काव्य में हास्य-व्यंग्य उत्पन्न करने के लिए किसी विशेष प्रयासों की ज्ररुरत नहीं पड़ती है।  हाँ कहीं-कहीं पर कविता में अतिशयोक्तियों का प्रयोग जरुर कर लिया जाता है।  सामाजिक सरोकारों से जुड़ी शेरदा की कालजयी रचना "बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल" (कालजयी इसलिए कि लगभग ३०-४० वर्ष बाद भी इसकी सार्थकता बनी हुई है)  इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है:-

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल


बुबु जै ज्वान, नाति जै लुल
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

च्यल कुना, मैं बाब कैं चूटूल

ब्वारी कुने, मैं सास कैं कूटूल
भाई कूनो, मैं भाई कैं लूटूल
और दुणि कुने, मैं ठुल रे मैं ठुल
जतुक च्याल, उतूकै चुल 

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल
च्यल मारना, बाब कैं लात

और सास जोड़नै, ब्वारि हुं हाथ
च्याल ब्वारियांक, नक खिलखिलाट
बुड़ बुड़ियौक, पड़ रौ टिटाट
बाव है गयीं घरा का ठुल

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

मुख में मलाई, क्वाठ में जहर

गौंनु में जै, पुज को शहर
टीक में कपाई लाल पिल
दिल में देखो मुसाक बिल
चानि में चनण, और दिल में दुल

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

मुसाक पेटम, धानाक बुस
बिराऊक पेटम, ज्युनै मुस
मोटियैल पतव कैं चुस
मैंस खै बेर, मैंस खुश
कल्जुगा का भाग खुल

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

झूठ कैं देखि सांच डरनई

चोर देखि, माझबर डरनई
उज्याव देखि, अन्यार डरना
 मुस देखि, बिराऊ डरना
मुसौक प्वौथ, ढड़ु है ठुल

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

तराजू भौ, टूकि में न्है गो

भैंसौक भौ, बोकि में न्है गो
तौल कस्यार, डाड़ में न्है गो
ओ ईजा, घागेरि सुरयाव नाड़ में न्है गो
मांट है गो, सुनु को मोल

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

फैशन रंग में, सौ भरि न्है गो

लुकुड़ आंग में, पौ भरि रै गो
रड़नै ऎ ग्ये, गाव में आंगेड़ि
आंगेड़ि में लै, भौजि नागेड़ि
आई क्ये देखौ, आई देखुल

बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 
च्येलैकि लटि, ब्वारि कि बुलबुलि
बख्ता तेरी बलै ल्ह्यूल 

शेरदा की इस कालजयी रचना को सुनें शेरदा के ही श्रीमुख से उनके स्वर में:



एक रिश्वतखोर सरकारी कर्मी के बारे में शेरदा का व्यंग्य देखिये:-

भिखारि?


कोड़ि नैं, काँण नैं
लुल नैं, लंगड़ नैं
डुन नैं,  ठुन नैं
घुन नैं, मुन नैं
खौव-खौव लै,
चौव-चौव लै,
ग्वर उजयाव लै,
देखिंणौक लै, चाँण लै,
तौउ पुरै, सयाँण लै,
मोटै बेर भैंस, 
ठुल घरौक मैंस, 
सौक नौट माँगणि, 
शेर दा!  
तौ कस भिखारि छू?
अरे यौ प्राईभेट नैं, सरकारि छूl


शेरदा ‘अनपढ़’ के कवि जीवन और रचनाओं के बारे में हम आगे के भागों में भी पढ़ते और जानते रहेंगे।

( पिछला भाग-३ ) .............................................................................................( कृमश: भाग-५ )





शेरदा से सम्बंधित कुछ मुख्य लिंक्स 

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