
"इनरु मुया"
लेखक: राजेन्द्र जोशी
एक भोय इन्द्रेश चंद्र, "इनरु", उ बिचाराक् इज बाब् नान्छनानैं उकैं एकलै छोड़ि बेर आपंण धाम न्है ग्याई। उ ले गौ पन् इतखै- उतखै खाल्लि नंङड़बद्धु (नंग-धड़ंग) जस् धुमनेर भय। (मंणि उबखत मैंस्योय भई)। क्वे ठौर-ठिकाण ले नि भय बिचारक्। नान्छना इजा पोथी कै मेंसने़लि पाइ हालि। पछिल बाट मैंस कूँनेर ले भाय्; को खवाल तैकें मरंण जांणे, चार-पांच साल बाद गौ मै जो दस- बीस मवास रूनैर भाय, उनार् बुढ़ -बाढ़िनैल बैठक करि और यो निर्णय ल्हेइ कि इनरू कै हरेक् घर वाल् ए दिन द्वियै टैमौक् खांण द्याल। इनरू मुया ब्यावक खाँण जाँ खाल् वैं सितनेर ले भय, खाई बाद उ घराक नान्तिन, बुढ़-बाड़ि, दाद-बोजि सबै इनरूवैकि फसक् सुणनेर भाय, उ बड़ि रंगत लगै राखनेर भोय, लोग-बागनैकि ठाठ् लगाल्, कैकि खिस्यैंन लगाल्, हँसन -हाँसने भांट् दुःखि रूँनेर भाय। घरौक शुध्द खांण-पिंण, दै - दूद, छाँ - पांणि रोजै इनरू कै मिलंण बैठ्। वीक कद-काठि् ले दिनों - दिन भल हुनै गेइ। गौंक बुड़-बाड़ि कुनेर भाय त आपुण बाबुक् अनारिक् छ। " आपूं बाब् जौ देखीं छै रे तु"। गौक् ब्वारी इनरूवाक बोजि लागनेर भाय। उ ले आपंण लाल् (देवर) थें कूँनेर भाय "हहो लाल पूऽर उ बाँजा बोट बै म्यार लिजि पाल्यो सौगं छनकै दिना कन् मिंणी", इनरू ले भौते मुखमुलैज्जि जौ भय, के कामैं तैं कौला नै न् करनेर भोय।
बोट में हांङ फांङ ले न ह्वलात् मकुड़ै लगै (विशेष तकनीक) बोट् जांण वीक बौं हातौक खेल भौय। गौक सामूहिक काम मै ले उ सबन हैबेर अघिल रुनैर भोय। वीक पास एक मुरुलि ले भै,जकैं उ रोज रत्तिब्याणां टैम में बजूंनेर भोय। वीक गजबै सुर- ताल हुनैर भाय।
जब इनरु मणिं ठुल भौछत् गौं वाल् सबनैलि वीकें अापंण गोरु बाछनकें चरूँणां लिजि ग्वाव धरि ल्हेइ। इनरु रोज रत्तै सब नाक गोरनकैं लीबेर जंगव् में चराल और ब्यावकै घर हकै लाल्। तसिके वीक दिनचर्या चलि भै, ए दिन उकैं कैलि द्वि चार दांण् बेराक् द्याय्, इनरुवैलि बेर खै हट्याल जंगव में माट् मुंणि च्यापि दी। थ्वाड़ दिनन बाद वां द्वि बोट बेराक् जामि ग्याय् इनरुवैलि बोटनैकि खूब सज समाव करि। द्वि तीनै सालन में बेराक् बोट मस्त गतै (तन्दुरुस्त) ग्याय और उनन में फल ले लागंण बैठ। बेर ले औरै गुई (मीठे) और सवादि भाय। इनरु उ बेरन् आफि ले खाल् और टिप बेर मैंसन कें ले खूब खऊनेर भोय।
ए बारि कोप् (कोई) ए बुढ़ि उबाटि कथप जांंणेंछि, जसै वीकि डीठ (नजर) बेरंन् में गे, वी लि इनरु थें बेर मांग् और कौय इजा चार दांण मैं ले दी हाल; औरी खाप सुखि रै...। इनरुवैलि ए आंचुइ (दोनों हथेलियों से एक साथ) बेर उ बुढ़िया घ्यारून्लै (आंचल में) हालि दि, जब वीलि बेर खायात् सोचि; अहा…! यो बेर जब इतु गुई छन् तो तौ मुया जो रोज इनन खाछ् कतु मिठ् न हुन्योल…? (उ बुढ़ि एक नरभक्षी हुन्भै) वीलि इनरु कें पकड़नैकि ए चाल चलि।
बुढ़ियाक् कांनि में एक बोरि टांकि भै; वीलि सोचि कि इनरु कैं के न के बहानैंलि बोरि में डालंण छ् ताकि ब्यावक् जुगाड़ है जाऔ। वीलि इनरु कें बुलाइ, और कौय; पोथी कि द्युं तेकैं में, के गांठ् में छ् ले नैं। यो बोरि में जादू छ्, जो ले य बोरि में बैठ बेर के मांगं; उ हात्तै मिलि जां। एऽक इनरु बिचार् सिद-साद; दुसर नान्छनाक् हौस्सि मन, वीलि सोचि देखूं धैं कि हुं। जसै इनरु बोरि में बैठ्योत् बुढ़ियैलि च्याट्ट (एकदम) बोर्यौ मूँख भली के भांङा ल्वातनैलि बादि और पिठि में बोरि लगै बेर अापंण घर उज्यांण जानिं रै।
बाट् में हिटते हिटते बुड़ि कें पांणि तीस लागि; पांणि पींणा लिजि बुड़ियैलि बोरि भींमें बिसाइ (बोझ थोड़ी देर के लिए जमीन पर रखना); और थ्वाड़ दूर बांजै घाड़ि पन (बांज के पेड़ों के झुंड के पास) जा्ं पांणिक् चुपटौव् (पानी का छोटा श्रोत) छी वां उ पांणि पींणे तें न्हे गेयि। ठिक्क उबख्तै उबाटि द्वि फेरु (विक्रेता जो सामान पीठ पर लाद कर गाँव गाँव बेचते हैं, खासकर साड़ियाँ इत्यादि) ले ऐ पुजि, बोरि हल्कंण चितै बेर उनैलि वी मूख खोलिबेर चाँऽण चा्योत् ह्यांक्क (एकदम डरना)भै, (कि करि बैठ्यां जै हैगे)। बोरि बटि इनरु निकल, वीलि पुरि किस्स सुंणाय और उनैलि फटफट बोर्यूंलैकै ढुंङ डाव, का्न मा्न झिमौड़ अंङ्यार, जि हात् पड़ि भरि और फिर उसिकै बादि देइ और लुकि ग्याय उत्ति उड्यार भितर...!
बुड़ि आइ; बोरि उच्यै (जमीन से उठाना) घर उज्यांण हिट दि। बाट् पन वीक् पिठ्में का्ंन बुणंन बेठ् वीलि सोचि कि इनरु रनकौर चिमुटि काटंण लागि रौ न्ह्योल, वीलि खूब नक-भल सुंणाय, और कौय, जा्ग तु जा्ग , घर जै बे तो मैं तेरि पैलि गर्दनें छन्कूँन(काटूंगी)। घर जै बेर वीलि अापंणि चेलि थें कौय्, तू जरा यैक शिकार तैयार कर; तैक् कल्ज मैंतें फरु (कटोरा) में धरि दिये, मैं अल्लै ऊँ कैबेर बुड़ि किकड़ि पात् (तेज पत्ता) लूंण भैर जंगव जानि रै। बुड़ियै चेलि'लि जसै बोर्यौक मूँख खोलि तो सब झिमौड़ /अंङ्यार वीलै चिपटि ग्याय। बुड़ियैलि ऐ बेर देख तो वीक् आंख् डबडबै आय, उकैं बड़ पछतावा भोय, कूंण बैठि म्यार् टिपाइ (किस्मत) में नहां भल् खांण, क्यै बिसा न्ह्योल मैंलि..., खैर.. 😢😢😢
थ्वाड़ दिनन बाद बुड़ि आपंण् भेष बदैइ बेर आजि इनरुवैकि पास जंगव पुजि गेइ और इनरुथें बेर मांगंण बैठि, इनरुवैलि कय्, तू वी बुड़ि तो नहांति जैलि थ्वाड़ दिन पैलि मैंकैं बोरि में बंद करौ...?? बुड़ियैलि कौय; नैं पोथी.. पैल्यै बुड़ियाक् चांदी बाव्, आजै बुड़ियाक् सुनुँ बाव्। (पहली बुढ़िया के सफेद बाल, आज की बुढ़िया के सुनहरे बाल), इनरुवैलि सांचि मानि; वीलि कौय् नजीक पन अाब बेरै न रै ग्याय..! तो बुड़ियैलि युक्ति सुझाइ और कौय : सूखि हांङ में खुट धर टुकाक् ना्न हांङन् कें लमक्या, (अपनी तरफ खींच) बेर हा्त ऐ जा्ल। इनरुवैलि उसै करि, वीलि जसै सूखि हांङ में खुट टिकाछत् सुखि हांङ ठ्यास्स टुटि गोय् और इनरु मुया भिमैं छुटि गोय, तैलि बुड़ि बोरि ल्ही बेर ताक् में बैठि भै औरै खुशि है गै इनरु मुया हा्त पड़ि गो कै। बुड़ियैलि बिना के लाग लपेट बोरि पीठि लै लगायि बा्ट लागि। आज वीलि कें ले बा्ट पन बोरि न बिसाय सीध् घरै पुजी और बोरि आपंणि चेलि कें सौंपि बेर कूंण लागि कि आज तो मैं इनरु कें पकड़ि बेर सिद् घरै लै रयुँ, तु यैक शिकार तैयार कर मैं मश्यालनौंक इन्तजाम करुं हाँ... कै बेर बुड़ि भैरकै न्है गेइ। बुड़िया जाईं बाद जब वीकि चेलि'लि बोरि खोल्योत् देखि; अहा कतु भा्ल बाव छन् यैक..!! (चेलिनें शौक भै बज्यूँण) वीलि इनरु थें पूछि कसिके भइन् ला् त्या्र बाव् ततु मुलैम् और लम्ब..?? तब् इनरुवैलि कौय कि मैं रोज अापंण बावन् कें उखव में कूटुँ, यैकै वीलि म्यार् बाव लम्ब और कोमल छन्। बुड़ियै चेलि'लि कय एक बारि म्यार् बावन् ले कुटि दिनैं कन् मैं कैं अत्ति शौक छ् तास् बावनैंकि। इनरु मुयाक् निहौर (रिक्वैस्ट) करिबे उकें उ उखव में लिगेइ, इनरु मुयालि वीथें कय तु आपंण बावन्कें उखल में डाल् मैं कूटि द्यूल।
बुड़ियै चेलिलि अापंण बाव उखव में डालि द्याय्; इनरुवैलि एक द्वि चोट बावनमें मारी फिर मुसवैलि तिसैरि चोट वीक् गर्दन में... उ बिचारि एक्कै चोट में चित्त रै इनरुवैलि फटाफट बुड़ियाक् ऊँण है पैलि वीकै चेलिक शिकार काटि कुटि रिश्यांनलै परात् में धरि द्योय, जब बुड़ि आई इनरु चुपचाप पा्ख में लुकि भोय। बुड़ियैलि शिकार कें खूब कौलि कालि बे भुटि फिर चेलि कें धात लगाइ... कांछि तु जल्दी आ, म्यार् भूकैलि बिडौव हरीं। चेलि हुनींत् ऊंनि कांबै ऊंछि.. ततु में इनरुवैलि पाखा झरौख बटि कौय् : जा्ग तु जा्ग...!!
त्या्र ख्वार लागि जौ आ्ग..
आज तलक लुकारा नान्तिन चैंछि,
आब् आपंणि चेलि शिकार चा्ख.!
वीलि को कौन छै तु, कि छ त्या्र पास सबूत. ?
तब इनरुवैलि चेलिक् कप्ड़ और मुनैड़ि झरौखा बाट् भितैर खेड़ि देइ..।
ओइजा मैं किधा्न करुं..!
कां जां, कथकै मरुं,
तौ इनरुवा ख्वार..क्यै फोड़ि तैलि मेरि गूड़ै जै भेलि,
हे भगवान..!! कि करुं, कां गे मेरि चेलि..?
बस.. तसिकै विलाप करन करनै बुड़ि ले मरि गे और नरभक्षी बुड़ियौक् अंत भोय..। इनरुवैलि ले फिर जंगव में आपंणि रोजमर्रा जिन्दगी शुरू करि...।
......... राजेन्द्र जोशी
😜😜😆
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