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'राजुला मालूशाही' भाग-5

राजुला मालूशाही-
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कुमाऊँनी लोकधुनो पर आधारित एक अमर प्रेमकथा।

प्रस्तुतकर्ता: कैलाश सिंह चिलवाल
---क्रमश: भाग-4 से आगे--भाग-5
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दगणियों भाग-5 शुरु करण हैबेर पैली पिछाड़ि हप्त वालि काथ कै दोहैरै ल्हिनु!!--
भाग-4 मे भैसियांछाना गाँव में फतुआ दोरियाव से राजुला की कहा-सुनी का विवरण था।
फतुआ राजुली की सुन्दरता पर मंन्त्रमुग्ध हो जाता हैं -"तुम जैसी सुन्दर नवयुवती मैने आज तक नही देखी"और येन केन प्रकारेण अपना 'प्रेम-आग्रह' उस तक पहुंचाना चाहता हैं।राजुला उसके सामने शर्त रखती हैं कि यदि वह बिना किसी हथियार के भैंस को मार देगा तो वह 'बातचीत' के लिए राजी हो जाएगी।
साथ ही राजुला एक कुटिल चाल चलती हैं और किलमोड़ी के भुज को अपना पिछौड़ा ओढ़ाकर स्वय॔ वहा से गैली गिवाड़ के लिए रवाना हो जाती हैं। फतुआ जब थक हारकर वापस आता हैं तो राजुला के भ्रम में किलमोड़ी-भुज को प्रेमालाप के वास्ते गले लगा लेता हैं, फतुआ बेचारा झाड़ी, काँटो से लहुलुहान हो जाता हैं और 'स्याक्क स्याक्क ' करने लगता हैं।राजुला अपने गंतब्य 'रंगीली बैराठ' के लिए चलने लगती । जो विकट पदयात्रा 'जोहार' से प्रारम्भ हुई थी उसका पहला पढ़ाव बागेश्वर , दूसरा कैड़ारौ और तीसरा भैसियाछाना रहा।
हर कठिनाई, विपत्ति यहां तक कि भोलेनाथ के श्राप को ढोते हुए , राजुला-पहाड़ की पवित्र नारी, सरयू सी निश्छल सरयू की भाँति अनवरत अपना मार्ग पखारती रही और ' चमुबान' नामक गाँव जा पहुंची जहां से उसके प्रियतम का देश चन्द मील दूर था।
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अब आगे----
तर्ज: 'हलिया हल बोए--छम छम बोए धाना--।

हे--राजुली देखै छ जब रंगीली बैराठा,
बैराठै कि धरती कैड़ी करै छ पैलाग
'चमुबान' मैजी तब खुट हाथ ध्वै छ,
लक्षी-बछी पहाड़ो पै नजर लैगू छ।।

ओहो!! यहां भी एक मजनू टाईप ' महरा बंधु'
आ गए जी राजुला की राह में-----
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तर्ज:ओ परुवा बौज्यू चपल के ल्याछा यास--।

ठेकदारा!!सुणों मेरा,स्यैणी नी देखि यैसि,
चमुबाना मैंजी हो, आब् के बतू यैसि,
झटपटी ली आओ हो, जाड़ि कै नी जो भाजि,
सुणों! मेरा गुसै ज्यूं हो स्यैणी नी देखि यैसि।।
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विरह:
हे मेरा भगवाना!!राजुली सौक्याणा,
कसी कसी भुगुती रे त मालू कारणा,
घ्वाड़ मैजी भैटि आया, दी भाई 'मौहरा'--आ-आ
ल्ही ग्याया पकड़ि तब,राजुली कै घरा--आ-आ।।
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हास्य:तर्ज-अल्मोड़ै मोहनी बुलानी किलै नै---
ए--पंडिता बुलौनी तब काव् करनी यैसी,
लगना सुझाओ हो खोलि पातड़ी पोथी,
ब्या करो पंडिता ज्यूं, ग्रह नक्षत्र देखी।।
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(मित्रो! अगर ये प्रेमकथा इतनी आसानी से 'हैपी इन्डिग' वाली होती तो फिर 'अमर' ना होती। महरा बंधु भी अपना दीवानापन दिखा रहे हैं,साथ में पंडित जी को लेकर आए है--मगर हैं बिल्कुल 'संस्कारी कुमाऊँनी'--प्रेम विवाह का प्रस्ताव भी
'पोथी पातड़ी'देखकर ही रख रहे हैं। --अरे हटो!! मेहरा जी ये मछली पकड़ पाना आपके बस का नही, अब देखिये पंडित जी को कैसे बस मे करती है 'beauty with brain' राजुला।)
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जोड़-
राजुली! अंगूठी खोलि बामणै कै दिछौ,
ईशारों में सारी 'बात' पंडिता बतूछौ,
तब कूनी पंडिता ज्यूं, सुणों यजमानों
जैक दगणी ब्या करैली, ऊ ज्यूंन नी रौलो।।
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तर्ज: गीत
असगुनी छ भौतै हो,स्यैणी नी देखी यैसि
जै क दगाणा रौली हो, ऊकै देली टोकी
असगुनी भौतै छु हो, चेलि नी देखी यैसि।।
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(पंडित जी भी 'अंगूठी'के लालच में आ गए और' नाड़ी भेद' बता दिया।इतनी रूपवान, गुणवान,सुन्दर सुशील कन्या को 'अपसकुनी' करार दे दिया लालची बामण ज्यूं ने, लेकिन महरा बंधु क्रोधित हो गये--देखिये क्या करते है--)
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हे--ए--
दी भाई मौहरा ,तब करनी विचारा
बगस में बंद करी राजुली सौक्याणा
रौ का ताला डुबै दिनी अघोरा का बीचा--आ--आ
तब, राजुली की पड़ि जा छौ 'मय्या 'जी कै धाता।

(मेहरा बंधु क्रोध और खिसयाहट के चलते राजुला को एक बक्से में बंद करके तालाब में डुबा देते हैं। देवभूमि में तो हर संकट का एक रामबाण समाधान हैं--अपना ईष्ट-राजुला की 'देवी मैय्या')
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जागर: ईष्टो'क आह्वाहन---
ओ!काईगाड़ै मेरि कालिका
का लुकि गे छै,मेरि जगतमांता
ओ!कत्यूरियां राजमांता-
माँता जियाराणी--ई---ई--ई
आज डुबिगे,राजुली--ई--ई--ई।।।
(हुड़का,थाली और शंखध्वनि के बीच )

ए! तेरी धाता पणी गे छौ,मईया दरवारा,
एगे दौड़ी-दौड़ी मईया,सिंह में सवारा-आ--आआ-
ए! रौ का तावा बटी तब राजुली निकाली,
आंसू पोछा त्वीलै तब सुनपाता 'चेली'ई--ई
आ--हा---हे---ए---हे---हो।।।।
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ए!!मैया कै प्रणामा करी फिर लागी बाटा
'लखनपुर'में तेरि पड़िगे नजारा---आ--आ
ए!! नौकर-चाकर देखि फिर डरी जा छौ
विष'की पुड़ियां तब महल लुकौ छौ,
बागनाथ'क श्राप तब पूरण हैं जा छौ--औ-ओ,
मालूशाही महल मे बेहोश है जां छौ--औ।।।
(बागेश्वर में बागनाथ जी ने राजुला को श्रापित किया था , कि जब वह बैराठ मे 'लखनपुर' किले के अंदर बने मालूशाही के महल में प्रवेश करेगी तो वह उसे 'मरी या मुर्छित'अवस्था मे ही मिलेगा)

मालू कै 'बिहोश'देखि दु:खी हैगे भौत
मालू कै देखि बे तब विलाप करै छौ--अ--आ--हे-
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(मित्रो!अपना पहाड़ स्यैणियों यानि कि 'नारी'शक्ति के लिए पौराणिक काल से ही जाना जाता रहा हैं, यूं कहैं कि 'आदिशक्ति 'का रूप नारी में विद्यमान है तो अतिशयोक्ति ना होगी,राजुला भी उस अदभुत शक्ति-स्वरूपा को अपने विचारो एवं भावों मे अवतरित कर लेती हैं)
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विरह गीत: तर्ज-"आ-होली आ-होली कैनै है गेई परियाई,है गई परियाई आज सारै गौ का मैती"
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मेरा मालू!तुमरी राजुला,सिराणा भैटी रै,
तुमर खातिर-अ माँ-बाप छोड़ि ऐ,
उठो!!उठो मालू-उ-उ कसिक सी रा छा,
के हैगो 'नरैणा', के धना करैनू
हे भगवाना--हे भगवाना--आ--आ
मेरा मालू!!----।।
(हे ईश्वर ! ये कैसी परीक्षा है??एक निष्छल नारी और उसके निष्कपट प्रेम की,क्या उस 'अबला' की करुण पुकार 'तेरे' कानों तक नही पहुंच रही?)।
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नी उठना मालूसाई,अचेत रै ग्याया,
तब राजू-मालू लिजी 'तलाक' लेखि छ--
मेरा मालू! तेरि खुटि में मेरि पैलाग
मेरि सेवा ल्याख लगै ल्हिये
मेरि माया आपु हिय लगै दिये।।
मी त्यरो खातिर आयूं, बड़ दु:ख भोगि,
म्यर भागा फुटि गोयो,तू रै गेयै सिती।
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आब्, सुण मेरी बाता राजा-रे-बैराठा
ज्यूंन माँ क च्यल् हैलै,पुजि जैये भोटा।
नौ लाख कत्यूरी सेना, जोगि भेष माजा
एड़ा-हथियार सब छुपै ल्यैए साथा।

एक म्हैड़ा भीतेरा ए जैयै जरूणा
नी आलै, मी मरी जूलो राजा-रे-बैराठा,
लेखि बे तलाक रामा ल्है गे छ राजुलि।

राजुली पुजीगे भोटा , तब टुटि नीना
देखनी तलाक जब राजा मालूसाई
आपातकालीन सभा बुलै है छ भाई--ई--ई।।

( मालू अचेत पड़ा था, राजुला की लाख विनती,उसकी अस्रुधारा, उसके ह्दय का रूदन भी मालू को सचेत' नही कर पाए। अन्तत: 'म्यार भाग फुटा' अर्थात इसको अपना दुर्भाग्य समझ राजुला मालू के सिरहाने तलाक यानि की चिट्ठी लिखकर छोड़ देती है। जिसमें उसने अपने संघर्ष एवम 'दैवीय प्रेम का व्यौरा देते हुए 'मालू' को चेतावनी दे दी," अगर जीवित माँ का पुत्र होगा तो अपनी नौ लाख कत्यूरी सेना के साथ पूरी राजसी साजो-सामान के साथ 'जोहार' आ जाना और पूरे 'बोज-भरम' के साथ मुझे ब्याह के लखनपुर ले आना"-तुम्हारी राजुला)
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मित्रो!! रात बहुत हो गई है--अब शब्दो को ह्दय से निकालना दुष्कर हो रहा हैं---अगले भाग में राजा जी को सेना समेत 'जोहार' पहुंचा देंगै।
जै हो माँता जियाराणी, जै हो नौ लाख कत्यूरी देबो की, जै ईष्ट गोल ज्यूँ।
---भलौ कै पढ़िया हां---'-

जै ईष्ट देव 'गोल् ज्यू।।
कैलाश सिंह ' चिलवाल'
बनौड़ा भैषड़गाँव सोमेश्वर अल्मोड़ा।
वर्तमान स्थान: गुड़गाँव, लखनऊ।
छायाचित्र काल्पनिक तथा प्रतीकात्मक है, इसका कथा से कोई सम्बन्ध नही है।

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