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'राजुला मालूशाही' भाग-३


राजुला मालूशाही-
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कुमाऊँनी लोकधुनो पर आधारित एक अमर प्रेमकथा।

प्रस्तुतकर्ता: कैलाश सिंह चिलवाल

---क्रमश: भाग-२ से आगे-- भाग-3
भै-बैड़ियो!!पैलाग/आशिर्वाद यथानुसार। 
आज रेल मे भै रयूँ, टैम मिलि गो पै काथ सूड़ूण'क।
भाग-3 शुरू करने से पहले पिछले दो भागों के वृतान्तों पर एक सरसरी निगाह डालते है--
"राजुला और मालूशाही के माँता-पिता की मुलाकात हरिद्वार के घाट पर होती है, एक दूसरे की कुशल-मंगल पूछने के बाद दोनो पक्षों में आत्मीयता बढ़ जाती है। दोनों पक्ष आपस में अगाध प्रेम के प्रभाव में आजीवन मित्रता का प्रण लेते है और इसी क्रम मे 'गांगुली सेठाड़ी'(राजुला की माँ)को 'पेट पिठ्या' लगा दिया जाता है"।।
कन्नरपुर ' बैराठ'मे मालू और 'भोट' मे राजुला का जन्म होता है,दोनों दिन दूनी रात चौगुनी प्रवृति से यौवन की दहलीज तक पहुंच जाते हैं, स्मरण रहे उस काल में संचार माथ्यम---कुछ भी नही थे--पक्षी ही चिट्ठी-पत्री और प्रेम सन्देश पहुचाते थे--या फिर 'सपनों'में ही प्रेम-वार्ता का चलन था।
"कालान्तर में दोनों पक्ष कौल कराण भूल गये, उधर सुनपात सेठ ने राजुला की सगाई मल्ला भोट निवासी 'कालूशौक' से कर दी।मगर राजुला -मालू का प्रेम 'दैवीय मनसूबा'था--अतःराजूला को सपने मे अपने प्रियतम की याद आ जाती है, और राजुला भोट छोड़कर " बैराठ" के लिए रवाना हो जाती है।"
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---उससे आगे------
भोट से बागेश्वर तक का आततायी पैदल सफर जिसमें साँप, बिच्छु, भालू, बाघ आदि मिलते रहे--पर बेखौफ सारी रात राजुला चलती रही, प्रातःकाल 'येन केन प्रकारेण 'बागेश्वर' पहुँच कर 'भगवान'बागनाथ जी के चरणों मे अपनी विनती रख देती है।:---
विरह गीतःश॔ख ध्वनि व घंटों की टनटनाहट------
टर-टर आँसू खेड़ी, बागनाथा थाना--आ--आ
करै दीयो देबो कूछो, मालू दरशना--आ--आ
राजुली की दाश् देखि, भोला भगवाना--आ--
खुद रूड़ बैठी ग्याया, दया का निधाना--आ--
( राजुला की करूण पुकार सुनकर भोले बाबा स्वय॔ रोने लगे)----
विनती: तर्ज-
"आ होली-आ होली कैनै है गेयी परायी---है गेयी परायी आज सार् गौ का मैती।
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तुम्हरी शरण आयूँ, भोला महादेवा--आ--आ
मेरी लाज धरी दिया, हे बागेनाथा--आ-आ
हे बागेनाथा----आ--
'रंगीली बैराठ' मे पुजै दियो स्वामी--ई--ई
मेरा मालू!! मिलै दियो, हे अन्तरयामी--ई--ई।।
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झर-झर नीर बहे अँखियों से रोने लगे कैलाशी,
देवो-के-देव, रो उठे, नीलकंठ के वासी---ई--ई।।

(भोलेनाथ स्वय॔ दु:खी हो गए और सोचने लगे 'कि रंगीली गिवाड़ तो कोसों दूर है--फिर ये निर्दोष, निश्छल कन्या बिना किसी संगी-सहारे के इतनी विकट यात्रा कैसे करेगी--मालू से इसका 'मेल' कैसे सम्भव होगा??? ऐसा विचार करते- करते भगवान खुद रो पड़े)
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राजुली मना बसि कुमति,
राजुली कूछौ यैसी बाता,
मेरि के कैला, तुम मद$दा,--आ
खुद रूड़ो छा, आपु आप$--आ
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आकाशवाणी---
"त्वील म्यर अपमान करौ,
सुण मेरि बात आब्
मूरछित रूप मे मिलौल
मालूशाही बैराठ आब्।।
(भोलेनाथ क्रोध भी जल्दी करते थे अतः राजुला के 'टौन्ट' ने इस श्राप को आमंत्रित कर ही लिया-जहाँ सुमति तह स॓पति नाना, जहाँ कुमति तह विपति निदाना')
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जी हाँ मित्रो!! इन्सान गलतियों का पुतला हैं।और कभी-कभी जीवन में ऐसी गलतियाँ हो ही जाती है। हमारी नायिका 'सुन्दरता की मूरत' , प्रेम की देवी 'राजुला' ने भी 'धृष्टता ' कर ही दी।---खैर आईये --आगे चलते है----राजुला ने बागेश्वर से बैराठ के लिए अपनी पदयात्रा प्रारम्भ कर दी----सोमेश्वर---लोद---कैड़ारौ होते हुए------
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तर्ज; पारमपरिक झोड़ा---माँगि दिछा के ---
चट् उठि लागिगे बाटा-
सुनपाता शौकै कि चेलि,
पुजि गे छौ राजुली बाना -
माठु-माठु 'कैड़ारौ' बेलि,
ठेकदारा हरसिंह कैड़ा'क -
सात च्यला'ल राजुली देखि,
चट पकैड़ि ली ग्याया रामा-
हरसिंह'क सामड़ी बेलि।।

हास्य:
ओ बौज्यू ओ बौज्यू -
भ्यार आओ धै भ्यार,
हाम् ल्यै रू एक बाना-
भ्यार आओ धै भ्यार,
ओ बौज्यू-------''----।
छाज् बै बुड़ै'क पड़ि नजरा-
राजूली ऊपरा
गिच ताड़नै भैर ए गोयो,
हरसिंह कैड़ा-
म्यर ब्या करो तैक दगाड़ा
यो तुम्हरी ईजा।।
बाब्-च्यैला कि बात सुड़ि
राजुली रगै द॔गा,
तब कूछौ राजुली बाना
सुण रे हरसिंगा,
जो जीत'ल लड़ि-भिड़ि बे
ब्या कूलो वीकै स॔गा।।
सुण राजुली बाता रामा
बाब्-च्यैला में हैगे ज॔ग,
बुड़ मारिहै सात च्याला'ल
राजुली रे त्यौर कारण।।

(ऐतिहासिक और पुरातन लोक -प्रेम गाथाओं यानि कि love ballads में नायिका अमूमन सुन्दर ही होती है---अब पाठक पूछेगा ' लो भाई--इसमें कैलाश 'दा'क्या नया बता दिया??
मित्रो!! 
आब् यौस कूनों कौला, "राजुलि बान लै छी और डिमाग लै भगवान'ल भौतै दी भौय ऊकै"। किसी अंग्रेज कवि ने कही लिखा हैं" beauty and brain does not exist together...अरे jhon भाई ' आपने राजूला को नही देखा या नही पढ़ा--वरना आप ऐसा नही कहते"।
जी, बागेश्वर से कैड़ारौ तक का यात्रा वृतांत जो ऊपर गीत के रूप में लिखा है वो यूँ है ---सात आठ घंटे की पदयात्रा के बाद राजूली ' लोद गाँव से आगे 'कैड़ारौ' नामक गाँव पहुंचती हैं, वहाँ ठेकेदार हरसिंह कैड़ा के सात बेटे (उ जमान् में 10-11 च्याल हुड़ लै साधारण घटना भै हो) राजुला की सुन्दरता के कायल हो जाते है और हरसिंह से कहते है ," पिता जी इस सुन्दरी के साथ हमारा ब्याह रचा दो"--दा हाई!! हरसिंह बुढ़ा'क मुँख'म दाँत नै पेट'म आँत, पै फिर लै कूण लाग रौ " सुणो रे च्यालो यो तुमरी ईज छु"-- अर्थात हरसिंह बुढ़ खुद ही शादी करेगा राजुला से। फिर राजुला कहती है तुम लोग आपस मे लड़ लो जो बाहुबलि होगा अर्थात जीत हासिल करेगा --राजुला उसको पति वरण कर लेगी--- सातों बेटे मिलकर बुढ़ को मार देते है--- राजुला उनको चकमा देकर अपने ग॔तब्य के लिए आगे बड़ जाती है।))
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क्रमश:---'-----
---आगे फतुवा सिंह दोर्याव के साथ ' राजूला की झड़प ' हमारे जवान पाठको के लिए' एनकान्टर'-----------

जै ईष्ट देव 'गोल् ज्यू।।
कैलाश सिंह ' चिलवाल'
बनौड़ा भैषड़गाँव सोमेश्वर अल्मोड़ा।
वर्तमान स्थान: गुड़गाँव, लखनऊ।
छायाचित्र काल्पनिक तथा प्रतीकात्मक है, इसका कथा से कोई सम्बन्ध नही है।

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