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'राजुला मालूशाही' भाग-4

राजुला मालूशाही-
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कुमाऊँनी लोकधुनो पर आधारित एक अमर प्रेमकथा।

प्रस्तुतकर्ता: कैलाश सिंह चिलवाल

--क्रमश: भाग-3 से आगे--भाग-4
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भै-बैड़ियो!!पैलाग/आशिर्वाद यथानुसार।आज एतवार छु काथा'क तीन फांग पुर करिबेर पैलिकै भेजि हैली गुरूप में ,लियो आज चौथु सुड़ो हो-------

भाग-4 शुरू करने से पहले भाग-3 का स्मरण करते हैं। राजुला अपने प्रियतम मालूशाही से मिलने उसके राज्य 'रगीली बैराठ' को जा रही हैं।'जोहार'से बागेश्वर-लोद- कैड़ारौ तक का सफर तय कर चुकी थी कि अचानक' कैड़ारौ' नामक गाँव के ठेकेदार हरसिंह कैड़ा के सात बेटे राजुला को रोक देते है। सातों बेटे (उ जमान् में 10-11 च्याल हुड़ लै साधारण घटना भै हो) राजुला की सुन्दरता के कायल हो जाते है और हरसिंह से कहते है ," पिता जी इस सुन्दरी के साथ हमारा ब्याह रचा दो"--दा हाई!! हरसिंह बुढ़ा'क मुँख'म दाँत नै पेट'म आँत, पै फिर लै कूण लाग रौ " सुणो रे च्यालो यो तुमरी ईज छु"-- अर्थात हरसिंह बुढ़ खुद ही शादी करेगा राजुला से। फिर राजुला कहती है तुम लोग आपस मे लड़ लो जो बाहुबलि होगा अर्थात जीत हासिल करेगा --राजुला उसको पति वरण कर लेगी--- सातों बेटे मिलकर बुढ़ को मार देते है--- राजुला उनको चकमा देकर अपने ग॔तब्य के लिए आगे बड़ जाती हैं।

-----अब उसके आगे-------'------

तर्ज: अल्मोड़ै मोहनी बुलानी किलै नै---
भाव: हास्य ( comedy)--

भाजि राजुली पुजिगे छौ,
'उखिलेख' माजा आब्
'फतुआ दोर्याव' मिलिगो-
'भैंसियाछाना' में तब।।
(फतुआ दोर्याव भैसियाछाना गाँव का किसान था,चरवाहे के रूप में 'ग्वाला' आया हुआ था। राजुला थी ही इतनी सुन्दर कि उस पर राजे-महाराजे मोहित हो जाएँ, फिर बेचारे 'फतुआ' का क्या दोष)
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हे---हे---आ---आ---हे---हे--
काकि छै 'जनेरा' बुलानी किलै ना,
तेरि जैसि क्वे बाना देखी वे मीलै ना।।

सुण फतुवै बाता, राजुली कूछौ तब,
बिन हत्यारै भैंसा मारैलै ख्वरल जब,
तब करूलो बाता, जब कैलै बै तब।।

( कथा के भाग-3 में हमने देखा था कि किस तरह राजुला 'सुन्दर व होशियार' ( beauty with brain)थी। एक बार फिर उसकी बुद्धीमता की 'अग्निपरिक्षा का वक्त आ गया, जब फतुआ का आग्रह ठुकराना है और कुछ ऐसा करना हैं कि'साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे')
हुं---हुं---हा----हा---'

धरि ख्वारम लुवौक परात,
पकड़ तब भैंसक पुछड़।
राजुली तब खेलछौ चाला
पिछौड़ी ओढ़ै किलमोड़ी भुजा,
आपु भाजिगे 'गैली-गिवाड़ा'।।

भैंस मारिबे 'फतु दोरियावा'
खितुं भुज में जब अंगावा,
उचेड़ी जानी वीक फांगावा।

राजुली'ल दिदि फतु कै ध्वक
फतुआ करू 'स्याक्क-स्याक्'।।
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गीत' में जो कथा कही गई हैं उसका सार यूँ हैं--
फतुआ राजुली की सुन्दरता पर मंन्त्रमुग्ध हो जाता हैं -"तुम जैसी सुन्दर नवयुवती मैने आज तक नही देखी"और येन केन प्रकारेण अपना 'प्रेमाग्रह' उस तक पहुंचाना चाहता हैं।राजुला उसके सामने शर्त रखती हैं कि यदि वह बिना किसी हथियार के भैंस को मार देगा तो वह 'बातचीत' के लिए राजी हो जाएगी।
साथ ही राजुला एक कुटिल चाल चलती हैं और किलमोड़ी के भुज को अपना पिछौड़ा ओढ़ाकर स्वय॔ वहा से गैली गिवाड़ के लिए रवाना हो जाती हैं। फतुआ जब थक हारकर वापस आता हैं तो राजुला के भ्रम में किलमोड़ी-भुज को प्रेमालाप के वास्ते गले लगा लेता हैं, फतुआ बेचारा झाड़ी, काँटो से लहुलुहान हो जाता हैं और 'स्याक्क स्याक्क ' करने लगता हैं।राजुला अपने गंतब्य 'रंगली बैराठ' के लिए ----'
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मित्रो! कैसी चल रही है 'हमारी राजुला' बान की प्रेमयात्रा। जो विकट पदयात्रा 'जोहार' ( कही-कही लोककथा में 'भोट'का भी उल्लेख है')से प्रारम्भ हुई थी उसका पहला पढ़ाव बागेश्वर , दूसरा कैड़ारौ और तीसरा भैसियाछाना रहा।
हर कठिनाई, विपत्ति यहां तक कि भोलेनाथ के श्राप को ढोते हुए , राजुला ,पहाड़ की पवित्र नारी, सरयू सी निश्छल सरयू की भाँति अनवरत अपने प्रियतम के देश की दिशा में जा रही हैं।
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---आगे भाग में राजुला का 'चमुबान' में स्नान और बैराठ की पवित्र धरती में आगमन-----'-
जै ईष्ट देव 'गोल् ज्यू।।
कैलाश सिंह ' चिलवाल'
बनौड़ा भैषड़गाँव सोमेश्वर अल्मोड़ा।
वर्तमान स्थान: गुड़गाँव, लखनऊ।
छायाचित्र काल्पनिक तथा प्रतीकात्मक है, इसका कथा से कोई सम्बन्ध नही है।

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1 टिप्पणियाँ

  1. ठेकेदार हर सिंह कैड़ा और उसके सात पुत्रों के सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य अथवा लोक परंपरा से कोई उद्धरण है या फिर केवल कपोल कल्पना है ?

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