
देवदार (Cedrus deodara)
लेखक: शम्भू नौटियाल
देवदार, वानस्पतिक नाम: सिड्रस देवदारा (Cedrus deodara) पाइनोप्सीडा वर्ग का सीधे तने वाला ऊँचा शंकुधारी वृक्ष है। जिसकी लकड़ी मजबूत किन्तु हल्की और सुगंधित होती है। इनके शंकु का आकार सनोबर से काफी मिलता-जुलता होता है। यह 50-80 मी ऊँचा, विशाल, पुष्ट, शंकुकार, सुंदर, सदाहरित वृक्ष होता है। इसका तना सीधा, स्थूल तथा शाखाएँ-फैली हुई होती हैं। छाल स्थूल, काले रंग की, खुरदरी, भीतरी अंश-तैलीय, सुगन्धित, सख्त, हल्के पीले-भूरे रंग की होती है। इसके पत्ते त्रिकोणयुक्त, सूई के आकार, तीखा, 2.5-8 सेमी लम्बे, लगभग-3-5 वर्ष तक स्थायी होते हैं। इसके फूल साधारणतया उभयलिंगाश्रयी, प्रशाखाओं के अंत पर, पुरुष केटकीन एकल, बेलनाकार, 4.3 सेमी लम्बे, शंकु-गोलाकार अथवा अण्डाकार प्रशाखाओं के अंत पर एकल होते हैं। इसका फल शंकु सीधा 10-12.5 सेमी लम्बा तथा 7.5-10 सेमी चौड़ा होता है। बीज 6-15 मिमी लम्बे, भूरे रंग के होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अप्रैल से जनवरी तक होता है।
देवदारु का वृक्ष सौ-दो सौ सालों तक जिंदा रहता है। इसको बढ़ने के लिए जितनी जगह मिलती है उतना ही बढ़ता जाता है। देवदारू का वृक्ष जितना पूराना होता है उतना ही उसकी उपयोगिता औषधि और इस्तेमाल करने के सामान के तौर पर बढ़ता जाता है। इनका मूलस्थान पश्चिमी हिमालय के पर्वतों तथा भूमध्यसागरीय क्षेत्र में है। यह विश्व में एशिया माईनर, अफगानिस्तान, उत्तरी-बलूचिस्तान एवं हिमालय में पाया जाता है। भारत में यह उत्तर-पश्चिमी हिमालय में पूर्व की ओर उत्तराखण्ड के कुमाऊँ और गढ़वाल में 1800-3600 मी की ऊँचाई तक पाया जाता है।

इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है जिसमें दीमक का असर नहीं होता है।यह इमारत और फर्नीचर बनाने के काम आता है।कोमल होने के कारण पुराने जमाने में इससे राजाओं के सिंहासन तथा राज सैय्या बनाई जाती थी। उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेज यहां से देवदार और अन्य प्रजाति के हर साल लाखों पेड़ काटते और लकड़ी (गिल्टों) को नदियों में बहाकर पहाड़ों की तलहटी तक पहुंचाते थे। इसके बाद इन गिल्टों को रेलगाड़ी से बंदरगाहों तक ले जाते थे। बताया जाता है कि उत्तराखंड में रेल लाइन का निर्माण अंग्रेजों ने मुख्य रूप से इसी मकसद से करवाया था। विलियम एगस्टस ने अपने सर्वे में लिखा है कि उत्तराखंड में उपलब्ध देवदार के पेड़ों से देवदार के तेल के साथ ही इसकी लकड़ी पानी के जहाज बनाने के काम आएगी। देवदारु का वृक्ष सौ-दो सौ सालों तक जिंदा रहता है। इसको बढ़ने के लिए जितनी जगह मिलती है उतना ही बढ़ता जाता है। देवदारू का वृक्ष जितना पूराना होता है उतना ही उसकी उपयोगिता औषधि और इस्तेमाल करने के सामान के तौर पर बढ़ता जाता है।
बेहतरीन लकड़ी देकर देवदार का पेड़ पहले ही उत्तराखंड आर्थिकी का अच्छा जरिया रहा है। देवदार के पेड़ के जिस छिलके को जंगलों में फेंक दिया जाता था। उससे एक पाई की स्थानीय लोगों से लेकर सरकार तक को कमाई नहीं होती थी। लेकिन अब तक अनुपयोगी समझी जाने वाली देवदार की छाल के तेल की कीमत चार सौ से पांच सौ रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रही है। देवदार का तेल बाम, कई तरह की दर्द निवारक दवाएं आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता है। देवदार की छाल के पाउडर का प्रयोग कई तरह के सप्लीमेंट बनाने में भी किया जाता है। यह एक प्रकार का नैचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसका प्रयोग कई बीमारियों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। यह संक्रमण से भी बचाता है। देवदार की छाल से होने वाले फायदों के बारे में जानते हैं।देवदार के पेड़ के छाल बहुत ही औषधी के दृष्टि से उपयोगी है। देवदारु कषाय, तिक्त, कड़वा, गर्म, लघु, स्निग्ध, कफ वात दूर करने वाला, अल्सर का घाव ठीक करने वाला, वक्र-शोधक, पुंस्त्वघ्न तथा स्तन्यशोधक होता है।
इसके अतिरिक्त: शुगर की मात्रा अगर शरीर में अधिक हो जाये मधुमेह हो जाता है। शुगर को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल काम होता है। देवदार की छाल को इस मामले में बहुत फायदेमंद माना जाता है। चीन में हुए शोध की मानें तो देवदार की छाल से बने पाउडर के प्रयोग से ब्लड शुगर को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह बहुत ही गुणकारी औषधि है। कान की सबसे सामान्य समस्या है या सुनने की क्षमता का ह्रास होना। चोट लगने या फिर दवाओं के संक्रमण से सुनने की क्षमता प्रभावित हो जा सकती है। इसके कारण ही वेस्टीब्यूबलोकोक्लीयर (vestibulocochlear) नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती है और इसके कारण दिमाग को सही संदेश नहीं मिल पाते जिससे सुनने में कठिनाई होती है। ऐसे में एंटीऑक्सीडेंट युक्त देवदार की छाल फायदा पहुंचाती है। यह प्राकृतिक औषधि है जो सुनने की क्षमता को बढ़ाती है। चोट लगने के बाद संक्रमण होना आम बात है, उन लोगों में अधिक संक्रमण होता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। ऐसे में एंटीऑक्सीडेंट ही इस संक्रमण को रोकने का काम करता है जो देवदार की छाल में बहुतायत में होता है।

ठंडी जगह पर विशेष रुप से उगने वाले इस पेड़ के बीज सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं:
1.आंखों की रोशनी बढ़ती है- आंखों की रोशनी उम्र के साथ-साथ कम होती जाती है। लेकिन देवदार के बीजों में मौजूद बीटा-कैरोटीन आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए काफी फायदेमंद होता है।
2. डायबिटीज की समस्या के लिए कारगर- डायबिटीज की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए भी यह काफी लाभकारी होता है। देवदार के बीज ग्लूकोज और बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने के लिए काफी मददगार होते हैं।
3. दिल के लिए फायदेमंद- देवदार के बीजो में विटामिन ई और विटामिन के पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इसमें मौजूद मैग्नीशियम ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी कम हो जाता है।
4. बालों के लिए फायदेमंद- देवदार के बीजों में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होता है इनका सेवन करने से बाल खूबसूरत बनते हैं। मसल्स बनाने के लिए यह काफी फायदेमंद होता है।
5.हड्डियां मजबूत बनती है- देवदार के बीज में कैल्शियम भी होता है इसलिए इनका सेवन करने से हड्डियां मजबूत बनती हैं। देवदार के बीजों को रोजाना अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।
1.आंखों की रोशनी बढ़ती है- आंखों की रोशनी उम्र के साथ-साथ कम होती जाती है। लेकिन देवदार के बीजों में मौजूद बीटा-कैरोटीन आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए काफी फायदेमंद होता है।
2. डायबिटीज की समस्या के लिए कारगर- डायबिटीज की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए भी यह काफी लाभकारी होता है। देवदार के बीज ग्लूकोज और बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने के लिए काफी मददगार होते हैं।
3. दिल के लिए फायदेमंद- देवदार के बीजो में विटामिन ई और विटामिन के पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इसमें मौजूद मैग्नीशियम ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी कम हो जाता है।
4. बालों के लिए फायदेमंद- देवदार के बीजों में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होता है इनका सेवन करने से बाल खूबसूरत बनते हैं। मसल्स बनाने के लिए यह काफी फायदेमंद होता है।
5.हड्डियां मजबूत बनती है- देवदार के बीज में कैल्शियम भी होता है इसलिए इनका सेवन करने से हड्डियां मजबूत बनती हैं। देवदार के बीजों को रोजाना अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।
पहाड़ी संस्कृति का अभिन्न अंग देवदार का वृक्ष से मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी बनी रहती है। इसमें कई ‘आर्गेनिज्म’ पैदा होते हैं और जल संरक्षण भी अच्छा होता है। देवदार के जंगलों में जैव विविधता का संरक्षण होता है। जंगलों से चीड़ के वृक्षों की जगह तवज्जो देवदार को दी जानी चाहिए क्योंकि चीड़ के जंगलों में पशु-पक्षी वास स्थल कम बनाते हैं। इसके पतले पत्ते आग जल्दी पकड़ लेते हैं। इसलिए देवदार की वनियां और स्थापित की जानी चाहिए। देवदारों में आस्था होने का लोगों के पास जो भी तर्क हो, लेकिन देवदार में श्रद्धा होने की वजह से इनका संरक्षण जरूरी है और साथ ही देवदार के वृक्ष से एक सीख लेने की जरूररत भी है कि कितने भी ऊपर या जीवन में बहुत उन्नति करलो घंमड मत करो यानि अपने आधार या नीचे की और झुके रहना चाहिए।

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