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किल्मोड़ा या किन्गोड़ (दारू हल्दी)

किल्मोड़ा या दारु हल्दी का नाम आयुर्वेद के जानकारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रस प्राप्त किया जाता है जिसका रसांजन बनाया जाता है।  Kilmoda or Botanical name Berberis aristata DC is a common wild medicinal plant in Kumaun region

किल्मोड़ा या किन्गोड़ (दारू हल्दी)

लेखक: शम्भू नौटियाल

कुदरत ने उत्तराखंड को बहुत से ऐसे उपहार दिये हैं जिनके बारे में अगर सही ढंग से जान लिया तो हमारे शरीर से बीमारियां हमेशा के लिए दूर भाग सकती हैं। हिमालय क्षेत्र में समुद्रतल से 1200 से 2200 मीटर की ऊंचाई पर उगने वाले किल्मोड़ा या किन्गौड़ या दारूहल्दी का वानस्पतिक नाम बरबरीस एरिसटाटा (Berberis aristata DC) है। बरबरीन नामक रसायन की मौजूदगी के चलते इसका रंग पीला होता है।

इसे दारुहरिद्राया दारु हल्दी भी कहा जाता है। इसकी करीब 450 प्रजातियां दुनियाभर में पाई जाती हैं। भारत, नेपाल, भूटान और दक्षिण-पश्चिम चीन सहित अमेरिका में भी इसकी प्रजातियां हैं। इसकी लकड़ी को उबालने के बाद भी उसमें पीलापन विद्यमान रहता है। दारु हल्दी का नाम आयुर्वेद के जानकारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रस प्राप्त किया जाता है जिसका रसांजन बनाया जाता है। इसमें पाया जानेवाला तिक्त क्षाराभ (बर्बेरिन) बड़ा ही गुणकारी होता है। इसके गुणों के कारण इसे कस्तुरीपुष्प भी कहा जाता है। 6 से 18 फीट ऊंचा यह पौधा पीले रंग के फूलों से युक्त होता है। इसकी लकड़ी को उबालने के बाद भी उसमें पीलापन विद्यमान रहता है।

किल्मोड़ा या दारु हल्दी का नाम आयुर्वेद के जानकारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रस प्राप्त किया जाता है जिसका रसांजन बनाया जाता है।  Kilmoda or Botanical name Berberis aristata DC is a common wild medicinal plant in Kumaun region

किल्मोडा पौधे में औषधीय गुणों की व्यापकता है। किल्मोडा की ताज़ा जड़ों का उपयोग मधुमेह और पीलिया के इलाज के लिए किया जाता है। किल्मोडा (बर्बेरिस एशियाटिक) अर्क ने शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि को दिखाया जो स्वस्थ दवा और खाद्य उद्योग दोनों में लागू होता है। किल्मोडा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है।

हालांकि वैज्ञानिकों और पर्यवरण प्रेमियों ने इसके खत्म होते अस्तित्व को लेकर चिंता जताई है। यह गठिया के इलाज में भी उपयोगी होता हैं। इस पौधे में एंटी डायबिटिक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी ट्यूमर, एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। डायबिटीज के इलाज में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस पौधे की जड़ो का रस पेट दर्द में तुरंत आराम देती है। कान के दर्द या स्राव में भी इसे ड्राप के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

किल्मोड़ा या दारु हल्दी का नाम आयुर्वेद के जानकारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रस प्राप्त किया जाता है जिसका रसांजन बनाया जाता है।  Kilmoda or Botanical name Berberis aristata DC is a common wild medicinal plant in Kumaun region

कहीं भी किसी प्रकार का घाव हो जाए तो किल्मोड़ा या किन्गोड़ के रसांजन का लेप बड़ा ही फायदेमंद होता है यह संक्रमण को खत्म करता है। दारुहरिद्रा से का काढा यकृत (लीवर) से सम्बंधित विकारों में भी लाभकारी होता है। यदि रोगी सूखी खांसी से परेशान हो तो दारुहल्दी का चूर्ण भी बड़ा लाभकारी होता है। बुखार में दारुहल्दी का काढ़ा लाभदायक होता है। ऐसे ही अनेक गुणों से युक्त यह वनस्पति बाजार में मिलावट के कारण निष्प्रभावी हो सकती है लेकिन इसे पहचानने का सबसे आसान तरीका यह है कि इसे जितना भी उबालें इसका पीलापन नहीं जाता है।

किल्मोड़ा या दारु हल्दी का नाम आयुर्वेद के जानकारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रस प्राप्त किया जाता है जिसका रसांजन बनाया जाता है।  Kilmoda or Botanical name Berberis aristata DC is a common wild medicinal plant in Kumaun region

दारुहरिद्रा की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। दारुहरिद्रा (Berberis aristata Tree turmeric), मांगल्यकी जड़म् (Berberis lycium Royle, वनमांगल्या (Berberis asiatica ex DC.) इनमें से मुख्यतः Berberis aristata DC. (दारुहरिद्रा) का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। इसमें फूल आने का समय मार्च से अप्रैल तथा फल आने का समय मई से जून तक होता है। किलमोड़े के फल में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व शरीर को कई बींमारियों से लड़ने में मदद देते हैं। दाद, खाज, फोड़े, फुंसी का इलाज तो इसकी पत्तियों में ही है। डॉक्टर्स यह भी कहते हैं कि अगर आप दिनभर में करीब 5 से 10 किलमोड़े के फल खाते रहें, तो शुगर के लेवल को बहुत ही जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है। सदियों से उपेक्षा का शिकार हो रहा ये पौधा बड़े कमाल का है। इसलिए लोगों को इसकी उत्पादकता को बढ़ाए रखने पर विचार करना चाहिए।


श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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