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हर्याव एक उत्तराखण्डि त्यार


--लोक पर्व हर्याव--
 (रचनाकार देवेन्द्र सती)

हर्याव आई हर्याव आई
चौ दिशी बहार आई
भ्यार जाई नान घर आई
चैली बेटी मैत आई
सोणाक महैन हर्याव क त्यार आई

जी रया जाग रया बची रया
हर साल हर्याव मनूनें रया
सोण मनाया हर्याव
भादों तीज त्यार
कार्तिक मनाया दिवाई
फागुन उडाया गुलाल

क्वे दिल्ली क्वे मुबंई क्वे बैगलोंर रुछा
घरवाल खुशि तब हुछी
जब य हर्याव घर उछिया
पैली ना डर ना चोरि सब बैखोफ छी
उतराखण्डी सभ्यता लै गजब छी

हयाव फुलदैयी घ्यू संग्रात घुघुती याक त्यार छी
नाखेक नथूली हाथोंक पौजी महिलाओंक श्रृगार छी
लाग हर्याव लाग दशै लाग बगवाव
जी रया जाग रया यो दिन महैन भेंटने रया
चाहे उतराखण्ड मे रया
या
सात समुन्दर पार रया
जी रया जागि रयाजी रया जागि रया!

देव सती
तरफ बटि आपु सबों कैं उतराखण्ड लोक पर्व की भोत भोत हार्दिक शुभकामनॉए
 
कविता: देव सती, 
चौबटियक थोड़ तलि बटि,पपनैपुरी पाखुडा़

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