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चुआ, चौलाई या रामदाना (Amaranthus cruentus Linn)


चुआ, चौलाई या रामदाना (Amaranthus cruentus Linn)
लेखक: शम्भू नौटियाल

रामदाना गढ़वाल में इसे मारसा, मारछा तथा कुमाऊं में चुआ और हिंदी में चौलाई या राजगिरा नाम से जाना जाता है।  इसका वानस्पतिक नाम-Amaranthus cruentus Linn. (ऐमारेन्थस क्रुऐंटस) Syn-Amaranthus paniculatus Linn है। राजगिरा Amaranthaceae (ऐमारेन्थेसी) कुल का होता है। रामदाना या राजगिरा अमरांथ या चौलाई का बीज होता है। ये चौलाई हरी नहीं बल्कि लाल होती है।  लाल चौलाई को लाल साग या लाल भाजी भी कहा जाता है। लाल चौलाई में आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाती है। रामदाना उपवास के समय बहुत ही पौष्टिक फलाहार होता है। चौलाई शाकाहारी लोगों के लिये प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत बन सकता है।

प्राचीन युग में किसान या गरीब इसको खाकर शरीर में पौष्टिकता की कमी और ऊर्जा को पूरा करते थे। इसलिए वे राजगिरा को भगवान का दान मानते थे और इसी संदर्भ में इसका नाम रामदाना रख दिया गया। चौलाई का पौधा सीधा, लगभग 1.5 मी ऊँचा, तनायुक्त पौधा होता है। इसके पत्ते चारो ओर से कोण-अण्डाकार होते हैं। इसके फूल गुलाबी रंग के, एकलिङ्गी होते हैं। इसके फल के बीज छोटे, अर्धगोलाकार, पीले-सफेद रंग के होते हैं। इसकी दो किस्में लाल और हरे रंग की होती हैं। चौलाई अगस्त से सितम्बर महीने में फलता-फूलता है। इसका उपयोग स‍ब्‍जी और अनाज के रूप में स्‍वास्‍‍थ्‍य लाभों के रूप में करते है।




यह अनेकों औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके पत्तों और बीजों में प्रोटीन, विटामिन ए और खनिज की प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। इसलिए आयुर्वेंद में चौलाई को अनेक रोगों में उपयोगी बताया गया हैं।रामदाना को फलाहार के रूप में ग्रहण करते हैं। चौलाई को दुनिया का सबसे पुराना खाद्यान्न माना जाता है। इससे हरा साग, रोटी, लड्डू, हलुवा जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं। सर्दियों में बारिश और बर्फबारी के दौरान पहाड़ में लोग चूल्हे के इर्द-गिर्द बैठकर आग भी सेंकते हैं और कढ़ाई में भुना चौलाई खाते हुए मजे से गप-शप भी करते हैं।

पौष्टिकता की लिहाज से चौलाई के दानों में गेहूं के आटे से दस गुना अधिक कैल्शियम, तीन गुना अधिक वसा और दोगुने से अधिक लोहा पाया जाता है। धान और मक्का से भी चौलाई श्रेष्ठ है। शाकाहारी लोगों को चौलाई खाने से मछली के बराबर प्रोटीन मिलता है। चौलाई का हरा साग भी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी है। चौलाई के आटे की रोटी भी बनती है, जो मुंह में मिठास घोल देती है। लेकिन, आटा बेहद चिपचिपा होने के कारण रोटी मुश्किल से बनती है। इसलिए लोग चौलाई को मंडुवा और गेहूं के साथ मिलाकर पिसाते हैं। इस मिश्रित आटे की रोटी भी बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। आप इसे बिना साग के भी खा सकते हैं। वैसे हरे साग, कढ़ी और दही के साथ भी यह मजेदार लगती है।




भुने चौलाई के खील को शहद, बादाम, सिरोला, अखरोट व किशमिश के साथ अच्छी तरह मिला लें, यही म्यूजली है। आप नाश्ते में म्यूजली का आनंद ले सकते हैं। म्यूजली पौष्टिक होने के साथ ही कैंसर रोधी भी मानी जाती है। चौलाई के लड्डू सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माने गए हैं। इसके लिए पतीले में सौ मिली पानी उबालकर उसमें गुड़ के छोटे-छोटे टुकड़े तब तक पकाएं, जब तक कि चासनी तैयार न हो जाए। चासनी कच्ची होगी तो लड्डू नहीं बन पाएंगे। तैयार चासनी में तत्काल माप के हिसाब से भुना हुआ चौलाई मिला लें। इसमें भुने हुए तिल भी मिला लें तो स्वाद और बेहतर हो जाएगा। लड्डू बटने में विलंब न करें, क्योंकि चासनी ठंडी होने पर लड्डू नहीं बन पाएंगे। ये लड्डू स्वाद के साथ पौष्टिकता से भी भरपूर होते हैं। चिकनाई या वसा से परहेज करने वाले भी इन्हें बेझिझक खा सकते हैं।




साबुत चौलाई को अच्छी तरह साफ कर उबाल लें और फिर पानी को उससे अलग कर दें। चौलाई के वजन का दो तिहाई गुड़ या चीनी को पानी के साथ अलग से उबाल लें। इसके बाद देसी घी में उबले हुए चौलाई को तब तक भूनें, जब तक कि वह भूरा न हो जाए। अब उबले पानी को उसमें डालकर थोड़ी देर तक पकाएं। कद्दूकस किया हुआ गोला और किशमिश भी इसमें मिला लें। जब हलुवा कढ़ाई छोड़ने लगे तो समझिए ये पककर तैयार है। इसे आप नाश्ते में भी खा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चौलाई में बहुत अधिक मात्रा में लौह तत्व और प्रोटीन और विटामिन्स होते हैं। इसमें कैल्शियम होने के कारण हडि्डयों को भी मजबूती देता है। चौलाई की सब्जी दिल के लिए बहुत लाभदायक होती है। इसके साथ-साथ ये पथरी और हाई रक्त चाप और गठिया बाव में भी बहुत गुणकारी लाभ देती है।


 

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