
तिमिल, तिमुला या तिमला (Ficus auriculata)
लेखक: शम्भू नौटियाल तिमिले का उत्तराखंड से बहुत ही पुराने समय से गहरा संबन्ध है यहाँ के लोकगीतों मैं तिमले का जिक्र किया जाता है- "फूल्यां पय्यां, तिमला फूली ग्या।"
पहाड़ो में तिमिले को अनेको नामो से जाना
जाता है जैसे तिमला, तिमुला, तिमिल, तिरमल आदि। तिमिले का वानस्पतिक नाम फाइकस आरिकुलाटा है। यह मोरेसी कुल का पौधा है, गूलर भी इसी प्रजाति से है। वास्तविक रूप
में तिमिले का फल, फल नहीं बल्कि एक उल्टा (इन्वरटेड) फूल है जिसका खिलना दिख नहीं पाता है।
उत्तराखण्ड में तिमला समुद्रतल से 800 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर आसानी से हो जाता है। तिमिले के पत्तों को दुधारू पशुओं को खिलाया जाता है कहा जाता है कि तिमिले के पत्तों से दुधारू पशु अधिक दूध देती है ये पत्ते चारे का काम करती हैं। जब पेड़ में फल लगने शुरू होते है तो तिमले के कोमल फलों की सब्जी बनाई जाती है और इसके फल पक जाने में हल्के लाल हल्के पीले दिखाई देते हैं। पके हुए फल काफी स्वादिष्ट होते हैं। इसके फल ज्यादा पक जाने में काले पड़ने लगते है जिस कारण इन फलो को कीड़ा खा जाता हैं। इस फल का उपयोग सब्जी के रूप में और स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। तिमिले का रायता भी बहुत लोकप्रिय है। इस पेड़ की पत्तियों का उपयोग प्लेटों के प्रतिस्थापन के रूप में किया जाता है।

तिमिले बेहद गुणकारी फल है जो पेट के रोगों को खत्म करता है। तिमिले के पेड से सफ़ेद रंग का दूध जैसा द्रव निकलता है यदि किसी को काँटा चुभ जाये तो इसका दूध उस जगह पर लगा दो तो थोड़ी देर बाद काँटा बड़ी आसानी से बहार निकाल सकते है। इसके पेड़ के पत्तों को पूजा पाठ के कार्यो में तथा पत्तल बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। इस पेड़ को पीपल के पेड़ जैसा पवित्र माना गया है।
तिमिले के तेल में कैंसररोधी क्षमता वाला वैसीसिनिक एसिड भी पाया जाता है। दिल की विभिन्न बीमारियों के इलाज में कारगर लाइनोलेनिक एसिड भी इस फल में पाया गया है। यह दिल की धमनियों के ब्लॉकेज हटाने में सहायक होता है। इसके अलावा इसमें पाया जाने वाला ऑलिक एसिड लो-डेंसिटी लाइपोप्रोटीन की मात्रा शरीर में कम करता है, इस प्रोटीन से कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है। कीड़े भी इसके पत्तों को काफी पसंद करते हैं।

पहाड़ों में लंबे समय तक तिमिले के साफ पत्तों से पत्तल बनायी जाती थी। अब भले ही शादी या अन्य किसी कार्य में 'माल़ू' के पत्तों से बने पत्तलों या फिर से प्लास्टिक या अन्य सामग्री से बने पत्तलों का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन एक समय था जबकि पत्तल सिर्फ तिमिले के पत्तों के बनाये जाते थे। इसके पत्तों को शुद्ध माना जाता है और इसलिए किसी भी तरह के धार्मिक कार्य में इनका उपयोग किया जाता है। अब भी धार्मिक कार्यों से जुड़े कई ब्राह्मण कम से कम पूजा में तिमिले के पत्तों और उनसे बनी 'पुड़की' का उपयोग करना पसंद करते हैं।
वैज्ञानिकों ने जब इस पर रिसर्च की तो इसमें काफी मात्रा में कैल्सियम मिला। इसमें कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फाइबर तथा कैल्सियम, मैग्निसियम, पोटेसियम और फास्फोरस जैसे खनिज विद्यमान होते हैं। पक्के हुए फल में ग्लूकोज, फू्क्टोज और सुक्रोज पाया जाता है। इसमें जितना अधिक फाइबर होता है उतना किसी अन्य फल में नहीं पाया जाता है।

इसमें कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं जिनकी एक इंसान को हर दिन जरूरत पड़ती है। इस फल के खाने से कई बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है। पेट और मूत्र संबंधी रोगों तथा गले की खराश और खांसी के लिये इसे उपयोगी माना जाता है। इसे शरीर से जहरीले पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद मिलती है। तिमिले के फल इसकी जड़ से ही लगना शुरू हो जाते हैं और हर टहनी पर लगे रहते हैं। कई बार तो पेड़ तिमिले से इतना लकदक बन जाता है कि सिर्फ इसके पत्ते और फल ही दिखायी देते है।

श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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