
लिंगुड़ा या लिगंडा अथवा लुंगड़ू
लेखक: शम्भू नौटियाललिगंडा या लिंगुड़ा अथवा लुंगड़ू जिसे अंग्रेजी में Fiddlehead Fern कहा जाता है। यह एक फर्न है जिसका वैज्ञानिक नाम डिप्लाजियम एसकुलेंटम (Diplazium esculentum) है। तथा एथाइरिएसी (Athyriaceae) कुल से संबंधित है। हिमालय की पर्वतश्रृंखला व देश भर में लिगंड़ा की सैकड़ों प्रजातियों का पता लगाया जा चुका है। उत्तराखण्ड में ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में समुद्र तट से लगभग 1800 मीटर से 3000 मीटर तक की ऊचांई पर नमी वाली जगह पर मार्च से जुलाई के मध्य पाया जाता है।
यह उत्तराखंड के अलावा हिमांचल प्रदेश में भी लुंगडू के नाम से जाना जाता है। गर्मियों के मौसम में पहाड़ों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली इस सब्जी को यहां के लोग दशकों से खाते आ रहे हैं। लिगंड़ा जहां रसायनों से दूर प्रकृति के आगोश में पैदा होता है। वहीं सब्जी के रूप में यह बेहद स्वादिष्ट भी होता है। काफी कम लोग जानते हैं कि यह सब्जी कई औषधीय गुणों से भी भरपूर है।

शोध से पता चला है कि इसमें Antioxidative गुण तथा Alpha-tocopherol गुण भरपूर पाए जाते है व सबसे अधिक Alpha- Glycosidase inhibitory का गुण होता है जिससे यह मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारियों लिये अत्यंत लाभकारी फर्न है। लिगंडे में मैग्नीशियम, कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, आयरन और जिंक के कारण इसे कुपोषण से निपटने के लिए भी एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत माना गया है। सामान्यतः इसमें प्रोटीन 54 ग्राम, लिपिड 0.34 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 5.45 ग्राम, फाइबर 4.45 ग्राम/100 ग्राम, विटामिन C- 23.59 mg , B- Caropenoid 4.65 mg, Phenolic – 2.39 mg/100g पाया जाता है। इसके अलावा इसमें मिनरल्स Fe-38.20 mg, Zin- 4.30 mg, Cu-1.70mg, Mn-21.11, Na- 29.0, K-74.46, Ca- 52.66, Mg- 15.30mg/100g पाये जाते है। इसमें पौटेशियम और कैल्शियम की प्रचुर मात्रा होने के कारण इसकी भरपाई के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
लिगड़ा में विटामिन ए, विटामिन बी कॉप्लेक्स, कैरोटिन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में मौजूद हैं। नवीन शोधों के अनुसार लिगंड़ा चर्म व मधुमेह रोग से काफी बचाव करता है। इससे त्वचा अच्छी रहती है। लिगंडा हार्ट के मरीजों के लिए भी अच्छा माना जाता है। सबसे बड़ी बात है कि लिगंडा पूरी तरह से प्राकृतिक है व लिगंडा में मधुमेह जैसी बीमारियों से लडने व जीतने की शक्ति है। संभवतः अन्य बीमारियों के इलाज हेतु भी वैज्ञानिकों के शोध जारी होगें। अन्य देशों के साथ भारत के कतिपय राज्यों में अब टिशू कल्चर के माध्यम से भी इसका उत्पादन होने लगा है, जिससे सालभर में कभी भी उगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों के इन शोध द्वारा उत्तराखंड में इसे पूरा वर्ष उत्पादिक किया जा सकता हैं एवं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी वैज्ञानिक तरीके से खेती करके इसे राज्य की आर्थिकी के लिए बेहतर विकल्प बनाया जा सकता है।

लिगड़ा के कुछ फायदे:
हमारे शरीर इम्यून सिस्टम ठीक-ठाक रहे तो लिगंड़े की सब्जी खाइये। इसमे सब प्रकार के विटामिन, मिनरल, ओर Macro nutrients का अच्छा स्त्रोत माना जाता है।
- सब्जी के अंदर भरपूर मात्रा में विटामिन ए होता है जो आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
- सारे पोषक तत्व होने की वजह से यह सब्जी लिवर को स्वस्थ बनाने का कार्य करती है। और अगर किसी व्यक्ति का फैटी लीवर हो रहा है तो उसके लिए भी यह फायदेमंद होती है।
- डायबिटीज की बीमारी में यह सब्जी बहुत फायदेमंद होती है। रक्त में मौजूद शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करती है। जिसकी वजह से आपकी डायबिटीज समय से नियंत्रित रहती है।
- जोड़ों के दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए यह बहुत अच्छी सब्जी मानी जाती है। इस को पीसकर उसका लेप बनाकर जोड़ों के दर्द पर भी लगा सकते हैं और इसकी सब्जी का भी सेवन कर सकते हैं।
- शरीर में रूधिर संचरण को सुचारू रूप से नियंत्रित रखने में सहायक है। इसमें fats बिल्कुल नही होता, न ही Cholesterol इसलिए ये हार्ट के मरीजों के लिए लाभकारी सिद्ध होती है।
- फर्न की सब्जी खाने से कैंसर से लड़ने की शक्ति मिलती है। क्योंकि छोटी फर्न में एन्टीआक्सीडेन्ट मौजूद होते हैं। इसलिए कैंसर से पीड़ित व्यक्ति को छोटी फर्न की सब्जी और इसे उबालकर जरूर खायें।
- चोट लगने पर फर्न की जड़ गांठ को पीसकर लेप चोट वाली जख्म के चारों ओर लगाने से दर्द से छुटकारा मिलता है। और शीघ्र ठीक भी होता है। फर्न जड़ गांठ बेस्ट एक तरह का प्राकृतिक पेन किलर है।
- फर्न की जड़ को बारीक पीसकर लेप बनाकर जोंड़ों पर लगायें। इससे गठिया की बीमारी दूर हो जाती हैं। और साथ ही इसकी सब्जी खाने से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत हो जाती हैं।
- इसे अधिकांशतः सिर्फ सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जबकि इसका अचार भी बनाया जाता है। हमारे क्षेत्रों में भले ही इसे सामान्य रूप सब्जी के रूप में देखा जाता हो, लेकिन अमेरिका जैसे देशों में इसका उपयोग अचार के रूप में लोग खूब करते हैं।

श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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