
भंगीरा, भंगजीर या भंगजीरा
लेखक: शम्भू नौटियालभंगीरा, भंगजीर या भंगजीरा (Bhangjra), वानस्पतिक नाम परिला फ्रूटीसेंस (Perilla frutescens) है, जो लमिएसिए (Lamiaceae) कुल से संबधित है। यह एक मीटर तक का लम्बा वार्षिक प्रजाति का पौधा है। यह हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों विशेषकर उत्तराखंड की पहाड़ियों में 700 से 1800 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है। गढ़वाल में इसे भंगजीर व कुमाऊं में झुटेला आदि नामों से जाना जाता है। इसके बीज चावल तथा चूड़ा के साथ बुखणा (दुफारि) व भंगजीर की चटनी भी पारंपरिक रूप से पहाड़ों में खाई जाती है।

भंगीरा खेती (Farming):-
यह पूर्वी एशिया में भारत, चीन, जापान एवं कोरिया तक के पर्वतीय क्षेत्रों में भी पाया जाता है। भंगजीर का औषधीय महत्व भी कम नही है। खाँसी, उच्च रक्तचाप, कैंसर जैसी बीमारियों में फायदेमंद कॉड लीवर आयल का उपयोग कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज को कम करने के अलावा हृदय रोगों, ओस्टियोआर्थराइटिस, मानसिक तनाव, ग्लूकोमा व ओटाइटिस मीडिया जैसी बीमारियों के इलाज में होता है। मृत कोशिकाओं को हटाने के साथ-साथ कैंसर एवं एलर्जी में भी यह बेहद लाभकारी माना जाता है।


भंगीरा का रासायनिक संगठन (Chemical composition):-
वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि सरकार व दवा कंपनियां इस दिशा में पहल करें तो भंगजीर की व्यावसायिक खेती करके रोजगार के बेहतर अवसर पैदा किए जा सकते हैं। विश्वभर में इसके इसेन्सियल ऑयल की वृहद मांग है तथा इसका बहुतायत मात्रा में उत्पादन किया जाता है। भंगजीर में 0.3 से 1.3% इसेन्सियल ऑयल पाया जाता है, जिसमें प्रमुख रूप से पेरिएल्डिहाइड 74%, लिमोनीन- 13%, बीटा-केरियोफाइलीन- 4%, लीलालून-3%, बेंजल्डिहाइड- 2% तथा सेबिनीन, बीटा-पीनीन, टर्पिनोलीन, पेरिलाइल एल्कोहॉल आदि 1% तक की मात्रा में पाये जाते है। भंगजीर में पाये जाने वाले मुख्य अवयव पेरिलाएल्डिहाइड, पेरिलार्टीन (Perillartine) को बनाने का मुख्य अवयव है जो कि शर्करा से 2000 गुना अधिक मीठा होता है तथा तम्बाकू आदि में प्रयोग किया जाता है।
भंगीरा के औषधीय गुण (Medicinal Properties):-
भंगजीर के बीज में लिपिड की अत्यधिक मात्रा लगभग 38-45 प्रतिशत तक पायी जाती है तथा ओमेगा-3, 54-64 प्रतिशत एवं ओमेगा-6, 14 प्रतिशत तक की मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा भंगजीर में कैलोरी 630 किलो कैलोरी, प्रोटीन- 18.5 ग्रा0, वसा- 52 ग्रा0, कार्बोहाइड्रेटस- 22.8 प्रतिशत, कैल्शियम- 249.9 मिग्रा0, मैग्नीशियम-261.7 मिग्रा0, जिंक - 4.22 मिग्रा0 तथा कॉपर-0.20 मिग्रा की मात्रा प्रति 100 ग्राम तक पायी जाती है।
इसके तेल में रोगाणुरोधी गुण की विविधता की वजह से पौधे में एक विशिष्ट गंध होती है जो आवश्यक तेल घटक इसके पोषण को प्रभावित करते हैं और औषधीय गुणों से भरते हैं। इसका तेल सीमित जांच का विषय है, जो गुलाब के एक समृद्ध स्रोत के रूप में सूचित किया जाता है, इससे स्वादिष्ट मसाला और इत्र भी बनाया जाता हैै। उत्तराखंड के अलग अलग पहाड़ी इलाकों में भंगजीर उगाने की बात समय-समय पर उठाई जाती रही है। अगर ऐसा किया जाता है तो पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ राज्य की आर्थिकी व स्वरोजगार की दिशा में ये बेहतर कदम होगा।

श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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