धतूरा (Thorn Apple)
लेखक: शम्भू नौटियालधतूरा: (काला व सफेद धतूरा) वानस्पतिक वैज्ञानिक नाम:-
1- काला धतूरा (धतूरा स्ट्रोमोनियम: Dhatura stromonium)
2- सफेद धतूरा (धतूरा इनोक्सिया: Dhatura innoxia)
कुल: सोलेनेसी Solanaceae (Potato family)
संस्कृत में धतूरे को कनक, धृत, धत्तूर, मातुल तथा अंग्रेजी में इसे थोर्न एपल (Thorn Apple) कहते हैं। धतूरा प्रायः गरम देशों में पाया जाता है। भारतवर्ष में यह सर्वत्र मिलता है। प्रदेशभेद से पौधों में थोड़ा बहुत भेद पाया जाता है।
दक्षिण प्रदेशों का धतूरा उत्तराखंड के धतूरे से देखने में कुछ भिन्न मालूम होता है। धतूरे का पौधा 3 से 4 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तिया 6 से 7 इंच लम्बा आगि से नुकीली होता है। धतूरा के सफेद, काला, नीला, पीला तथा लाल 5 प्रकार के फूल हो सकते हैं। इसके फल हरे रग के कटहल की तरह अनेक काँटेदार होता है। इसमें अनेक छोटे छोटे चीपटे सफेद या भूरे बीज होते है। धतूरे वंश की 11 प्रजातियाँ है जिसमें मुख्यतः सफेद धतूरा और काला धतूरा और कहीं कहीं पीला धतूरा भी सामान्यतः मिल जाते हैं।
इस वानस्पतिक जाति का प्रतिनिधित्व लगभग 11 प्रजातियों धतूरा सेराटोकौला(Datura ceratocaula), डी. इनोक्सिया(D. innoxia), डी. मेटेल(D. metel), डी. क्वेरसिफोलिया(D. quercifolia), डी. स्ट्रैमोनियम(D. stramonium), डी. टाटुला(D. tatula), डी. डिस्कोलर(D. discolor), डी. राइटी(D. wrightii), डी. अल्बा(D. alba), डी. फास्टुओसा(D. fastuosa) और डी फेरॉक्स(D. ferox) द्वारा किया जाता है। जिनमें से डी. इनॉक्सिया(D. innoxia), डी. मेटल(D. metel) और डी. स्ट्रैमोनियम(D. stramonium) महत्वपूर्ण औषध पादप हैं जबकि डी. इनॉक्सिया(D. innoxia) और डी. मेटेल(D. metel) कुछ सजावटी पौधों की प्रजाति हैं।
काले धतूरे (D. stramonium) के डंठल, टहनियाँ और पत्तों की शिरायें गहरे बैगनी रंग की होते है तथा फूलों के निचले भाग भी कुछ दूर तक रक्तकृष्णाभ होते हैं। साधारणतः लोगों का विश्वास है कि काला घतूरा अधिक विषैला होता है, परंतु यह भ्रम है। औषध में लोग काले धतूरे का व्यवहार अधिक करते है। वैद्य लोग धतूरे के बीज तथा पत्ते के रस का दमें सें सेवन कराते हैं और वात की पीड़ा में उसका बाहरी प्रयोग करते हैं।
डाक्टरों ने भी परीक्षण करके इन दोनों रोगों में धतूरे को बहुत उपकारी पाया है। सूखे पत्तों या बीजों के घुएँ से भी दमा का कष्ट दूर होता है। पहले डाक्टर लोग धतूरे के गुणों से अनभिज्ञ थे पर अब वे इसका उपयोग करने लगे हैं। सफेद धतूरा ( D. innoxia) पागल कुत्ते के काटने पर उपचार में भी धतूरा बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुआ है। धतूरे के फूल फल शिव को चढ़ाए जाते हैं। वैद्यक में धतूरा कसैला, उष्ण, गुरु तथा मंदाग्नि और वातकारक माना जाता है।
औषध के अतिरिक्त विषप्रयोग और मादकता के लिये भी धतूरे का प्रयोग होता है। आचार्य चरक ने इसे ‘कनक’ और सुश्रुत ने ‘उन्मत्त’ नाम से संबोधित किया है। आयुर्वेद के ग्रथों में इसे विष वर्ग में रखा गया है। अल्प मात्रा में इसके विभिन्न भागों के उपयोग से अनेक रोग ठीक हो जाते हैं। दमा, शरीर में सूजन, गर्भधारण, मिर्गी, बवासीर और भगन्दर, यौन कमजौरी जैसी अनेक बीमारियो में इसका उपयोग किया जाता हैं।
नोटः इस विष वर्ग के पौधे का उपयोग कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर ही करें।श्लोक:
धत्तुरो मदवर्नाग्निवताक्रुद ज्वरकुष्टनुत।
कषायोमधुरस्तिक्तो यूकालीक्षावीनाशक:।।
उष्णो गुरुर्व श्लेष्म क न्डू क्रिमी विषा पह:।
धत्तुर: कटूरुष्णश्च कान्तिकारी व्रनार्तीनुत्।।
कुष्ठानि हन्ति लेपेन प्रभावेण ज्वरं जयेत्।
त्वगदोष कच्छ्र कंडूतिज्वहारी भ्रमावह:।।
श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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