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गंगा दशहरा का पर्व, कुमाऊं अंचल में

ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। Ganga Dashhra celebrated on 10 day of shukla Paksh of Jyeshth month

कुमाऊं अंचल में गंगा दशहरा का पर्व


लेखक: श्री चन्द्रशेखर तिवारी

पौराणिक आख्यानों के अनुसार धरती में गंगा जी का अवतरण ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को माना गया है।  इसीलिए इस तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से इतर यदि हम पर्यावरणीय नजरिये से गंगा अवतरण की कथा और गंगा दशहरा पर्व की मान्यता देखें तो हमें इसमें साफ तौर पर हिमालय सहित सम्पूर्ण परिवेश को बचाये रखने का संवेदनशील भाव दिखायी देता है। राजा भगीरथ के कठिन तप के बाद गंगा जब धरती पर आने के लिए राजी हो गयी तो संकट इस बात का था कि गंगा के प्रचंड वेग को धरती एक साथ नहीं संभाल पायेगी।

अन्ततः समाधान के तौर पर उपाय आया कि यदि शिव अपनी विशाल जटाओं में गंगा के आवेग को समाहित करते हुए उसकी मात्र एक धारा छोड़ सकें तो धरती गंगा का वेग आसानी से संभाल सकती है। अंत में शिव ने गंगा को जटाओं में समेटने के बाद ही छोटी धारा को धरती पर छोड़ा। यथार्थ में देखें तो हिमालय और अन्य पहाड़ (जलागम क्षेत्र) ही शिव की विशाल जटाओं के प्रतीक स्वरुप हैं जहां से प्रचंड वेग वाली गंगा विभाजित होकर अलग-अलग नदी धाराओं के रुप में उद्गमित होती हैं।

सम्भवतः इसीलिए हमारे देश में सप्त नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी सहित अन्य सभी छोटी-बड़ी नदी को गंगा सदृश्य मानने की परम्परा रही है। मध्य हिमालयी भाग में हिमानी और गैर हिमानी स्रोतों से निकलने वाली कई आंचलिक नदियों के नाम गंगा से जुड़े हुए है यथा-रामगंगा, कालीगंगा, सरयू गंगा, गोमती गंगा, कैल गंगा, धौली गंगा व खीर गंगा आदि।

चार-पांच दशक पूर्व उत्तराखण्ड का गंगा दशहरा पर्व बरबस याद आ जाता है। यहां के कुमाऊं अंचल के गांव-कस्बों में दशहरा पर्व अत्यंत उल्लास के साथ मनाये जाने की परम्परा है। जेठ की तपती गरमी के बीच घर व मंदिरों के चैखटों में रंग-बिरंगे द्वार पत्र लगाये जाते हैं । गांव के कुल पुरोहित अपने हाथों से बनाने के बाद इन्हें जजमानों को दिया करते हैं और बदले में उन्हें दक्षिणा प्राप्त होती है।

स्थानीय मान्यता है कि यह द्वार पत्र सुरक्षा कवच की तरह काम करता है और इससे घरों की प्राकृतिक आपदा और वज्रपात से सुरक्षा होती है तथा चोरी, अग्नि आदि का भय व्याप्त नहीं रहता। दशहरा द्वार पत्र रंग-बिरंगी ज्यामितीय डिजायनों से अलंकृत रहते हैं।पुराने समय में रंग के लिए इनमें दाड़िम, किलमड, अखरोट व बुरांश सहित अन्य स्थानीय फूल-पत्तियों का प्राकृतिक रंग उपयोग में लाया जाता था। परंतु अब बाज़ार से छपे हुए दशहरा पत्र चलन में दिखाई देते हैं। दशहरा पत्र को पुरोहितों द्वारा सुरक्षा मंत्र से पूरित किया जाता है। इसमें लिखा एक श्लोक/मंत्र इस तरह का है-

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चते वज्रवारकाः
मुनेः कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात्
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डले
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वरः
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा

इस दिन यहां के लोग प्रातःकाल होते ही सरयू व गोमती के संगम स्थल बागेश्वर, भागीरथी व अलकनंदा के संगम देवप्रयाग, ऋषिकेश हरिद्वार, रामेश्वर, थल सहित कई अन्य तीर्थ व संगम स्थलों में स्नान कर पुण्य अर्जित करते है। मान्यता है कि पहाड़ के लोक में हर छोटी-बड़ी नदी गंगा का ही प्रतिरूप है। गंगा दशहरा पर्व के पीछे गंगा नदी द्वारा पृथ्वी में पहुंच कर वहां के जन-जीवन को तृप्त करने की जो लोक भावना दिखायी देती है उस दृष्टि से गंगा और इसकी सभी सहायक नदियों को भी गंगा के सदृश्य ही पवित्र समझा गया है।

अतः प्रकृति में प्रवाहमान सभी जलधाराओं व नदियों को साफ सुथरा रखने औ उन्हें पर्याप्त संरक्षण प्रदान करने की हमारी यह लोक मान्यता भारतीय संस्कृति व दर्शन को अलौकिक और महान बनाती है। इस दिन यहां चीनी, सौंफ और कालीमिर्च के मिश्रण से स्वादिष्ट शरबत तैयार करने की भी परम्परा है। यह शरबत गंगा-अमृत जैसा माना जाता है। पहाड़ में यह मान्यता चली आयी है कि इस दिन इस शरबत के सेवन करने से लोग वर्ष पर्यन्त निरोग रहते हैं।

June 1 at 6:49 AM

श्री चन्द्रशेखर तिवारी जी की फेसबुक वॉल पर पोस्ट से साभार
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