
गंगा दशहरा पर कुमाऊं के घर द्वार
(लेखक: डा.मोहन चन्द तिवारी)🏠🏡🏠🏡🏠🏡🏠🏡🏠🏠
🔥गंगा का धरती पर अवतरण का दिन🔥
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आज एक जून को गंगा दशहरा का पावन पर्व है। स्नान, ध्यान और पतित पावनी मां गंगा की पूजा आराधना का यह विशेष पर्व माना जाता है।आज के ही दिन पुरातन काल में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त नक्षत्र में मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था।इसी दिन राजा भागीरथ सुर-सरिता गंगा को अपनी घोर तपस्याओं के फलस्वरूप धरती पर लाए थे इसलिए यह दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।इस दिन गंगा स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।
पर दैव दुर्विपाक से इस बार कोरोना काल के संक्रमण के कारण सार्वजनिक, सामाजिक और धार्मिक आयोजनों पर रोक है। ऐसे में एक जून को गंगा दशहरा पर्व पर श्रद्धालु गंगाघाटों पर स्नान करने नहीं पहुंच सकेंगे और उन्हें घर पर बैठे ही पतित पावनी गंगा का ध्यान और स्मरण करना होगा।

कुमाऊं उत्तराखंड में गंगा दशहरा का पर्व विशेष हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। श्रद्धालुजन आज के दिन अल्मोड़ा जिले के मासी-चौखुटिया मार्ग पर स्थित रामगंगा के किनारे ‘पन्याली’ में रामपादुका के घाट पर स्नान करते हैं। 'मानसखंड' के अनुसार राजा भगीरथ गंगा को यहां 'रथवाहिनी' के नाम से लाए थे। तभी से इस स्थान पर गंगा का नाम 'रामगंगा' पड़ गया। यहां राम का सबसे प्राचीन ‘रामपादुका’ मन्दिर विद्यमान है जो न केवल उत्तराखण्ड का एक प्राचीन मंदिर है बल्कि पूरे देश में राम के सबसे प्राचीन मंदिरों में भी इसकी गणना की जाती है। इसी मंदिर के गर्भगृह में पांचवीं सदी ई. के समय की सबसे प्राचीन और अत्यन्त दुर्लभ राम की मूर्ति विद्यमान है। यही कारण है कि कुमाऊं उत्तराखंड के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से गंगा दशहरा के अवसर पर रामपादुका के निकट रामगंगा में स्नान करने का विशेष माहात्म्य है।
आज के दिन कुमाऊं के घर घर में दरवाजों पर गंगा दशहरा का द्वारपत्र लगाने की भी प्रथा है। यहां दिल्ली में हमारे पंडित जी मुख्य द्वार पर लगाने के लिए जो छपा हुआ द्वारपत्र दे गए थे उसे आज हमने अपने गेट के ऊपर चिपका दिया है। बहुत दुःख भी होता है कि हमारे प्रकृति संरक्षण से जुड़े त्योहार अब इस पाश्चात्य उपभोक्तावादी महानगरीय संस्कृति के परिवेश में अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं। भारत के त्यौहार हमें केवल धार्मिक आस्था ही प्रदान नहीं करते बल्कि अपने देश की पुरातन संस्कृति और मातृभूमि की राष्ट्रीय भावना से भी जोड़ते हैं।

संयोग से तीन वर्ष पहले मुझे गंगा दशहरा के दिन में अपने पैतृक गांव जोयूं में रहने का सौभाग्य मिला था तो वहां की बात ही कुछ और थी। सुबह सुबह गाय के गोबर से घर देहली को लीप कर तथा उसमें ऋतु पुष्प चढ़ा कर इस पर्व के आगमन का सुस्वागत करने का मौका मिला। गांव की भाभी जी ने प्रातः काल माल पूए बना दिए थे, उन्हें मैंने देवताओं के मंदिर में चढ़ाया,पूजा अर्चना की और मां गंगा के साथ अपनी मां और मातृभूमि की भी आरती उतारी। बहुत खुशी हुई कि लंबे अर्से के बाद अपने पैतृक गांव में गंगा दशहरा मनाने का शुभ अवसर मिला। मैंने द्वार पर लगे गंगा दशहरा द्वारपत्र सहित अपनी मां अपनी जन्मभूमि और अपने इष्ट देवताओं के मंदिर की सेल्फी भी ली। उसी अवसर के सुखद और कुछ यादगार पुराने चित्र आज दिल्ली से इस पोस्ट के साथ शेयर कर रहा हूँ।सभी मित्रों को गंगा दशहरा की हार्दिक शुभ कामनाएं।
-© डा.मोहन चन्द तिवारी

डा. मोहन चन्द तिवारी जी की फेसबुक वॉल पर पोस्ट साभार
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