'

जखिया (Wild mustard)

जखिया, उत्तराखंड में तड़के के रूप में लोकप्रिय मसाला है।  Cleome viscosa or Wild mustard is known as Jakhiya in Uttarakhand

जखिया (Wild mustard)

लेखक: शम्भू नौटियाल

जखिया या जख्या वानस्पतिक नाम क्लोमा विस्कोसा (Cleome viscosa Linn Synonyms: Polanisia viscosa) वानस्पतिक कुल Capparidaceae से संबंधित है। इसे संस्कृत में अजगन्धा हिन्दी में बगड़ा, हुलहुल तथा अंग्रेजी में एशियन स्पाइडर फ्लावर (Asian Spider Flower), वाइल्ड मस्टर्ड के (Wild mustard), Tickweed या Yellow spider flower कहते हैं। उत्तराखंड में स्थानीय नाम जख्या या जखिया है। जखिया उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तड़के के रूप में खूब इस्तेमाल किया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय मसाला है। उत्तराखंड के मसहूर गायक व गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी के गीतः ‘मुले थिंच्वाणी मां जख्या कु तुड़का, कबलाट प्वटग्यूं ज्वनि की भूख’
(मूली की थिंच्वाणी में जख्या का तड़का पेट में कुलबुलाहट पैदा करता है। आखिर जवानी की भूख जो है।)

जखिया का स्वाद एक बार जिसकी जुबान पर लग गया वह इसका दिवाना हो जाता है।  800 से 1500 मीटर की ऊँचाई में प्राकृतिक रूप से उगने वाला यह जंगली पौधा पीले फूलों और रोयेंदार तने वाला हुआ करता है।  एक मीटर ऊँचा, पीले फूल व लम्बी फली वाला जख्या बंजर खेतों में बरसात उगता है।  लेकिन पहाड़ी जखिया खरपतवार ही नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण फसल भी बन सकती है। अजगन्धा का उल्लेख कैवय देव निघण्टु, धन्वंतरि निघण्टु, राज निघण्टु में में भी मिलता है। जख्या की पत्तियों से घाव व अल्सर को ठीक करने में सहायक हैं। इसके अलावा बुखार, सरदर्द, कान की बीमारियों की औषधि हेतु उपयोग होता है।

इसकी पत्तियां डायफोरेटिक, रुबफैसिएंट और वेसिकेंट हैं, जिनका उपयोग घाव और अल्सर के लिए बाहरी अनुप्रयोग के रूप में किया जाता है।  पत्तियों के रस का उपयोग कान का दर्द दूर करने के लिए किया जाता है।  इसके बीज कृमिनाशक, कृमिनाशक, रूबेफेशिएंट और वेसिकेंट होते हैं।  इसके बीज में 0.1% विस्कोसिक एसिड और 0.04% विस्कोसिन होता है।  इसके पूरे पौधे और उसके हिस्सों (पत्तियों, बीज, छाल और जड़ें) का व्यापक रूप से पारंपरिक और लोक चिकित्सा प्रणाली में उपयोग किया जाता है।

दवा की पारंपरिक प्रणालियों में इस पौधे के  एक कृमिनाशक, एंटीसेप्टिक, कार्मिनिटिव, एंटीस्कॉर्बिक, फिब्रिफ्यूज के रूप में लाभकारी प्रभाव होने जानकारी हुई है। औषधीय अध्ययनों से पता चला है कि जखिया में विभिन्न जैविक गतिविधियों जैसे कि एंटीडायरेहियल, हेपेटोप्रोटेक्टिव एंटेलमिंटिक, रोगाणुरोधी, एनाल्जेसिक, एंटीइंफ्लेमेटरी, इम्यूनोमॉल्यूलेटरी, एंटीपीयरेटिक, साइकोफार्माकोलॉजिकल विशेषताएं मौजूद हैं। इसमें anti-helminthic, analgesic, antipyretic, anti-diarrhoeal, hepatoprotective तथा allelopathic गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ antiseptic, carminative, cardiac तथा digestive stimulant गुण भी पाये जाते हैं।

जखिया में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व खान-पान में इसके महत्त्व को और अधिक बड़ा देते हैं. इसके बीज में पाए जाने वाला 18 फीसदी तेल फैटी एसिड तथा अमीनो अम्ल से भरपूर होता है. इसके बीजों में फाइबर, स्टार्च, कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, विटामिन ई व सी, कैल्शियम, मैगनीशियम, पोटेशियम, सोडियम, आयरन, मैगनीज और जिंक आदि पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। पहाड़ की परंपरागत चिकित्सा पद्धति में जखिया का खूब इस्तेमाल किया जाता है। एंटीसेप्टिक, रक्तशोधक, स्वेदकारी, ज्वरनाशक इत्यादि गुणों से युक्त होने के कारण बुखार, खांसी, हैजा, एसिडिटी, गठिया, अल्सर आदि रोगों में जखिया बहुत कारगर माना जाता है।

पहाड़ों में किसी को चोट लग जाने पर घाव में इसकी पत्तियों को पीसकर लगाया जाता है जिससे घाव जल्दी भर जाता है। आज भी पहाड़ में मानसिक रोगियों को इसका अर्क पिलाया जाता है। जखिया के बीज में coumarinolignoids रासायनिक अवयव का स्रोत होने से भी फार्मास्यूटिकल उद्योग में लीवर सम्बन्धी बीमारियों के निवारण के लिये अधिक मांग रहती है। वर्ष 2012 में प्रकाशित इण्डियन जनरल ऑफ एक्सपरीमेंटल बायोलॉजी के एक शोध पत्र के अध्ययन के अनुसार जख्या के तेल में जैट्रोफा की तरह ही गुणधर्म, विस्कोसिटी, घनत्व होने के वजह से ही भविष्य में बायोफ्यूल उत्पादन के लिये परिकल्पना की जा रही है।

संक्षिप्त में उपयोग:

*आयुर्वेद में, यह एक एंटीहेलमेंटी, प्रचार खुजली,जठरांत्र संबंधी संक्रमण और आंत्र विकारों जैसे कई अन्य रोगों के रूप में उपयोग किया जाता है।
*दाद, पेट फूलना, पेट का दर्द, अपच, खांसी के इलाज में इस जड़ी बूटी का उपयोग किया जाता है।
*इसके कुचले हुए पत्तों को ग्वारपाठा के बीजों के उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है, ताकि खरपतवार की रोकथाम की जा सके।
*पत्तियों का उपयोग घाव और अल्सर के बाहरी अनुप्रयोग के रूप में किया जाता है। इसके बीज कृमिनाशक होते हैं।
*पत्तियों का रस कान से मवाद के स्राव के को रोकने के उपाय के रूप में उपयोग किया जाता है। जख्या के पौधे की पत्तियां घाव और अल्सर को ठीक करने में उपयोगी हैं।
*संक्रमण, बुखार और सिरदर्द का इलाज करने के लिए जख्या के बीज उपयोगी बताया गया है। जख्या के पेड़ की जड़ स्कर्वी और गठिया के लिए भी उपयोगी है।
*पौधे के सभी भागों का उपयोग यकृत रोगों, पुरानी दर्दनाक जोड़ों और मानसिक विकारों में किया जाता है।
*जख्या के पौधे का उपयोग , सूजन, लीवर की बीमारियों, ब्रोंकाइटिस और दस्त के इलाज के लिए अच्छा माना जाता है।

*जखिया के बीजों से निकाले गए तेल में औषधीय गुण होते हैं। कुचले हुए बीजों के ताजे तेल का उपयोग शिशु के ऐंठन और मानसिक विकारों के इलाज के लिए किया जाता है।
*खनिज पदार्थ इसे उच्च आर्थिक महत्व की फसल बना सकते हैं। जख्या के पौधे को जैवईंधन का एक कुशल स्रोत माना जा सकता है। पौधे के तेल में सभी गुण होते हैं जो जेट्रोफा और पोंगामिया में होते हैं।
*कुछ अन्य स्थानों पर पर, जख्या का उपयोग कभी-कभी पत्ती की सब्जी के रूप में भी किया जाता है। कड़वे पत्ते स्थानीय रूप से लोकप्रिय हैं और ताजा, सूखे या पकाया हुआ खाया जाता है।
*जख्या के अपरिपक़्व फल भी खाए जाते हैं। जिन बीजों में एक अनोखा स्वाद होता है, वे मसालेदार, सॉसेज, सब्जियां, करी और दालें तैयार करने में सरसों के बीज और जीरा के विकल्प के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
*जिन क्षेत्रों में यह बहुतायत में होता है, वहाँ पर इसका उपयोग आवरण संयंत्र के रूप में और हरी खाद के रूप में किया जा सकता है।
*अफ्रीका और एशिया में पत्तियों और बीजों को रुबफेशिएंट और वेसिकेंट के रूप में और संक्रमण, बुखार, गठिया और सिरदर्द के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
*पूरे जड़ी बूटी को गठिया रोग की रोकथाम के लिए शरीर पर मला जाता है। दाद संक्रमण के इलाज के लिए बाहरी रूप से लगाए जाने पर ब्रूस की पत्तियों को काउंटर-इरिटेंट माना जाता है।
*इससे बने काढ़े को एक एक्सपेक्टरेंट और पाचन उत्तेजक के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे कि शूल और पेचिश को ठीक करने हेतु काम में लाया जाता है।
*पूरे पौधे के वाष्पशील काढ़े से वाष्प को सिरदर्द का इलाज करने के लिए साँस लिया जाता है।
*बीज और उसके तेल में कृमिनाशक गुण होते हैं, लेकिन वे कवकजनित रोग राउंडवॉर्म (दाद) संक्रमण के इलाज में अप्रभावी होते हैं।
*जख्या या जखिया व्यावसायिक फसल नहीं है लेकिन वर्तमान में इसके सुखाये गये बीजों की कीमत 250 रूपये से अधिक है। हालांकि यह बरसात के दिनों में बहुत सी जगह एक खरपतवार के रूप में उगता है पर अगर इसे एक व्यवसायिक फसल के रूप में उगाया जाए तो कुछ हद तक पलायन को भी रोक सकता है।


श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक प्रोफाइल पर जायें

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ