
भृंगराज (False Daisy)
लेखक: शम्भू नौटियालभृंगराज वानस्पतिक नाम एक्लिप्टा एल्बा: Eclipta alba (L.) Hassk. (syn. Eclipta prostrata L.) इसे अंग्रेजी में इसे फाल्स डेजी कहते हैं तथा पादप कुल एस्टेरेसी से संबंधित है। (Commonly known as False Daisy and bhringraj is a plant belonging to the family Asteraceae.) हिंदी में इसे भृंगराज, भंगरैया, भंगरा, केशराज, केशरंजन कहते है। "भृंगइव राजते राज्र दीप्तो" अर्थात इसके पुष्प भौरों की तरह प्रकाशित होते है। "मारयति केशशौत्तन्य विनाशयति" अर्थात यह सफेद बालों को काला बनाता हैं।
भृंगराज का पौधा एक खरपतवार न होकर औषधीय पौधा है जो अनेक रोगों के निदान के लिए प्रयुक्त होता है। इसके पौधे सम्पूर्ण भारत में 1800 मीटर की ऊँचाई तक नम स्थानों, तालाब के किनारे, बंजर भूमि, उपजाऊ जमीनों में पनपते है। भृंगराज के पौधों में एक विशेष प्रकार की गंध होती है। इसके सम्पूर्ण पौधे में घने रोयें होते है। इसकी पत्तियां पर्णवृंत रहित नुकीली एवं रोयेंदार होती है। इसकी पत्तियों को मसलने से हरा रस निकलता है जो शीघ्र ही काला हो जाता है। पत्तियों के अक्ष से छोटे, चक्राकार सफेद रंग के पुष्प निकलते है।

इसके पौधों में अक्टूबर से दिसंबर तक पुष्पन एवं फलन होता है। इस पौधे के सभी भागों का औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। भृंगराज अल्सर, कैंसर, चर्म रोग, पीलिया, यकृत विकार दांत एवं सिर दर्द में बहुत उपयोगी औषधि मानी जाती है। इसके पौधे का रस बलवर्धक टॉनिक होता है। यकृत वृद्धि, पुराने चर्म रोग,अतिसार, अपच, पीलिया दृष्टिहीनता, दृष्टिहीनता, बुखार आदि रोगों में इसका काढ़ा लेने से आराम मिलता है। हंसिया या दरांती आदि से कटने पर किसान इसकी पत्तियों के रस को लगाते है। खांसी, सिर दर्द, बढे हुए रक्त चाप, दांत दर्द में इसका अर्क शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
इसके पौधे का रस पीलिया रोग में बहुत कारगर होता है। इसके लिए 50 ग्राम पौधे को 100 मिली पानी में पीसकर छान कर 4-5 दिन पीने से पीलिया रोग समाप्त हो जाता है। या भृंगराज के पत्ते और काली मिर्च को पीस कर इसको मठ्ठे में मिलाकर दिन में दो बार पिने से पीलिया को दूर कर सकते है। सिर में गंजापन तथा जोड़ों की सूजन होने पर तिल के तेल के साथ इसका प्रलेप लगाने से फायदा होता है। पौधों को कुचल कर त्वचा के रोगों यानि प्रभावित हिस्सों एवं फटी एड़ियों पर लगाने से आराम मिलता है। बालों को काला करने, बालों के झड़ने की समस्या को दूर करने में भृंगराज बहुत कारगर है।

भृंगराज की ताजा पत्तियों को कुचलकर लेप तैयार कर उसमे दही मिलाकर सिर पर 15-20 मिनट तक लगाकर रखने से बालों के झड़ने की समस्या से निजाद मिलती है। इसके शाक से निर्मित तेल का हेयर डाई के रूप में तथा मस्तिष्क को ठंडा रखने में प्रयोग किया जाता है। पहले ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों में ब्लैक बोर्ड को काला करने के लिए भृंगराज का इस्तेमाल किया जाता था। भृंगराज के पौधे में फैटिक एसिड और निकोटीन जैसे कई तत्व पाए जाते है। यह हमारे हर भाग के लिए बहुत फायदेमंद होता है। शरीर के कई अंगो के लिए इसका इस्तमाल लाभप्रद है। भृंगराज से मसाज करने से चिंता और सिरदर्द से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
प्रजातियाँ:
पुुष्प के आधार पर इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती है। श्वेत पुष्प से युक्त प्रजाति को भृंगराज तथा पीतपुष्प युक्त प्रजाति को पीतभृंगराज या अवन्तिका के नाम से जाना जाता है। पीतभृंगराज, श्वेत भृंगराज से अल्प गुण वाला होता है। इसके पौधे बंगाल, आसाम, कोंकण और तमिलनाडू में अधिक बहुतायत से पाए जाते हैं। चरक और सुश्रुत संहिता में कास एवं श्वास व्याधि में भृंङ्गराज तैल का प्रयोग बताया गया है। वाग्भट में रसायनार्थ एवं श्वित्र में भृङ्गराज का उल्लेख मिलता है। भृङ्गराज मूल को विरेचक कहा गया है।
Eclipta prostrata (Linn.) Linn. (भांगरा) इसका 15-70 सेमी ऊँचा, सीधा अथवा जमीन पर फैलने वाला, छोटा वर्षायु शाकीय पौधा होता है। इसकी शाखाएं रोमावृत और ग्रन्थियों पर मूलयुक्त होती हैं। इसके काण्ड कृष्ण वर्ण के, मृदु रोमों से युक्त तथा अनेक शाखा-प्रशाखायुक्त होते हैं। इसके पत्तों को मसलने से कृष्णाभ, हरितवर्णी रस निकलता है, जो शीघ्र ही काला पड़ जाता है। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं। इसके फल कृष्ण वर्ण के होते हैं। इसके बीज अनेक, छोटे तथा काले जीरे के समान होते हैं।

Wedelia chinensis (Osbeck) Merr. (पीत भृंगराज) इसका 15-45 सेमी ऊँचा, जमीन पर फैला हुआ, सीधा तथा मांसल शाकीय पौधा होता है। इसका काण्ड गोलाकार तथा खुरदरा होता है। इसके पुष्प पीत वर्ण के होते हैं।
सावधानी :
भृंगराज के रस को गर्म करने और उबालने से इसके गुण नष्ट हो जाते हैं। कुछ खास उपयोगः
1. फोड़े-फुसी खत्म करे भृंगराज :-
भृगराज की पत्तियों को पीसकर फोड़े-फुसी पर दिन में 2-3 बार लगाते रहने से कुछ ही दिन में ठीक हो जाएंगी।
2. नए बाल उगाने के लिए भृंगराज :-
उस्तरे से सिर मुड़वा लेने के बाद उस पर भृगराज के पतों का रस दिन में 2-3 बार मलते रहने से कुछ हफ्तों में नए बाल घने निकलेंगे।
3. बाल कालेघने, लंबे बनाने के लिए भृंगराज :-
भृंगराज के पंचांग का चूर्ण और खाने वाले काले तिल सम मात्रा में मिलाकर सुबह खाली पेट 2 चम्मच की मात्रा में खूब चबा-चबाकर रोजाना खाते रहने से 4-6 महीनों में बालों का गिरना रुक कर वे स्वस्थ बन जाते हैं।
4. अनिद्रा को दूर करे भृंगराज :-
सोने से पूर्व भृगराज के तेल की सिर में मालिश करने से अच्छी नींद आ जाएगी।
5. बिच्छू दंश पीड़ा के लिए भृंगराज :-
मूंगराज के पत्तों को पीसकर दंश पर लगाने से आराम मिलेगा।
6. यकृत पीड़ा में इस्तेमाल करे भृंगराज:-
पत्तों के एक चम्मच रस में आधा चम्मच अजवायन चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से यकृत पीड़ा में लाभ मिलेगा।
7. जीर्ण उदरशूल होने पर भृंगराज :-
2 चम्मच पत्तों के चूर्ण में आधा चम्मच काला नमक मिलाकर जल के साथ सेवन करने से आराम मिलेगा।
8. शक्ति वर्द्धक भृंगराज :-
भृगराज के पत्तों का 100 ग्राम चूर्ण और 50-50 ग्राम खाने वाले काले तिल व आंवला चूर्ण मिलाकर 200 ग्राम मिस्री के साथ पीस लें। एक कप दूध के साथ सुबह-शाम 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना सेवन करने से शरीर में शक्ति बढ़ती है।
9. आग से जलने पर भृंगराज का इस्तेमाल :-
भृगराज और तुलसी के पत्ते बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लें और तैयार लेप को आग के जले स्थान पर लगाएं, तुरंत आराम मिलेगा।
10. भृंगराज उच्च रक्तचाप में :-
भृगराज के पतों का रस 2-2 चम्मच की मात्रा में एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार नियमित सेवन करने से हाई ब्लडप्रेशर में कुछ ही दिनों में आराम मिलता है। एक बार बी.पी. नार्मल हो जाए, तो कब्ज की शिकायत पैदा न होने देंगे, तो वह सामान्य बना रह सकता है।
11. सिर दर्द में लाभकारी भृंगराज :-
सिर में भृगराज के पत्तों का रस लगाकर मालिश करने से सिर दर्द में राहत मिलेगी। माइग्रेन (अधकपाटी) का उपचार करने के लिए इसे नाक आसवन (नस्य) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इस प्रयोजन के लिए, भृंगराज रस को समान मात्रा में बकरी के दूध में मिलाकर, उसकी 2 से 3 बूंदों को सूर्योदय से पहले दोनों नथुनों में डाला जाता है।

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