
कौंच या केवांच (Common Cow itch)
लेखक: शम्भू नौटियाल
कौंच या केवांच या दाकुली वानस्पतिक नाम मुकुना प्रुरिएन्स (Mucuna pruriens (Linn.) DC. Syn-Mucuna prurita (Linn.) Hook.) है और यह पादप कुल फैबेसी (Fabaceae) या पैपिलियोनेसी से सम्बंधित है। हिन्दी में इसे केवाँच, कौंच, कौंछ, केवाछ, खुजनी, संस्कृत में कपिकच्छू, आत्मगुप्ता, मर्कटी, अजहा, कण्डुरा, प्रावृषायणी, शूकशिम्बी, वृष्या, कच्छुरा, दुस्पर्शा तथा अग्रेंजी में हॉर्स आई बीन (Horse eye bean), वेल्वट बीन (Velvet bean), काउहेज (Cowhage), Common Cow itch (कॉमन कॉउ इच) कहते हैं।
इस खुजली करने वाली बेल (दाकुली या दागुड़) से तो सभी परिचित होंगे। बचपन में सभी ने इसके द्वारा छोटी मोटी शरारते जरूर की होंगी। यह 10 से 12 फीट लम्बी एकवर्षीय शाकीय लता है। पत्तियाँ त्रिपर्णक व पर्णक अण्डाकार तथा रोमिल छोटे है। पुष्प बैगनी रंग के तथा फली 5 से 10 से.मी. लम्बी तथा 1.2 से 1.8 से.मी. चौडी ओर 4 से 6 बीज युक्त होती है। बीज अण्डाकार तथा सफेद या काले रंग के होते है। केवांच के लता भारत सभी मैदानी इलाकों में के साथ-साथ हिमालयी क्षेत्रों में भी मिलती है।
भारतवर्ष के सभी मैदानी भागों में तथा हिमालय के निचले क्षेत्रों में 1200 मीटर की ऊँचाई तक केवांच मिलती है। भारत में कुछ स्थानों पर इसकी खेती भी की जाती है। आमतौर पर लोग केवांच को बहुत ही साधारण-सी लता समझते हैं लेकिन असलियत कुछ और है। केवांच एक औषधीय वनस्पति है। केवांच का प्रयोग कई रोगों का इलाज करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में यह बताया गया है कि औषधि के रूप में केवांच की पत्तियां, बीज, जड़, रोम आदि का उपयोग किया जाता है।
कौंच या केवांच की मुख्यतः दो प्रजातियां होती हैं। एक प्रजाति जो सामान्यतया जंगलों में पैदा होती है। इस पर बहुत अधिक रोएं होते हैं। इसकी दूसरी प्रजाति जिसकी खेती की जाती है। वह कम रोएं वाली होती हैं।
*जंगली कौंच या केंवाच पर घने और भूरे रंग के बहुत अधिक रोएं होते हैं। अगर यह शरीर पर लग जाए तो बहुत तेज खुजली, जलन करते हैं। इससे सूजन होने लगती है। केंवाच की फलियों के ऊपर बन्दर के रोम के जैसे रोम होते हैं। इससे बन्दरों को भी खुजली उत्पन्न होती है। इसलिए इसे मर्कटी तथा कपिकच्छू भी कहा जाता है।
कौंच या केवांच की दोनों प्रजातियां ये हैंः-
1. कौंच या केंवाँच (Mucuna pruriens (Linn.) DC.
2. जंगली कौंच या केवाँच या काकाण्डोला (Mucunamonosperma Wight.)
कौंच या केवाच (मुकुना प्रुरियंस) में बहुत सारे पोषक तत्व होते है जो हमारे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। कौंच बीज में ग्लूथियोन, लेसितिण, गैलिक एसिड, ग्लाइकोसाइड्स, निकोटीन, प्रुरिनिन, प्रुरनिडाइन, अल्कोलोइड्स म्यूकेनाइन (Alkaloids mucanine), टैनिक एसिड आदि की अच्छी मात्रा होती है। इनके अलावा कौंच या केवांच बीज में प्रोटीन, फाइबर और बहुत से खनिज पदार्थ होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। कौंच या केवांच के बीज अवसाद और पार्किंसंस रोग का संभावित इलाज कर सकता है, फिर भी इसका उपयोग करने से पहले डॉक्टर द्वारा सलाह लेना जरूरी है।
प्रजनन कार्य और स्तनपान के लिए आवश्यक प्रोलैक्टिन को कम करने की इसकी क्षमता के कारण गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए केवांच का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। केंवाच या कौंच के बीज एल डोपा द्वारा शरीर में मेलेनिन बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। यह अपने आप में हानिकारक नहीं है लेकिन कुछ कारणों से यह त्वचा कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। इसलिए इन खतरों से बचने के लिए एल-डोपा के स्तर को बढ़ने से रोकना चाहिए।
कौंच या केवांच का उपयोग करने से मधुमेह के स्तर को कम कर सकते हैं। लेकिन जो लोग पहले से ही मधुमेह की दवा का उपयोग कर रहे हैं उन्हें केवांच का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए। कौंच या केवांच के बीज महिला और पुरुष दोनों के लिए फायदेमंद होते हैं। इसका पावडर भी आयुर्वेदिक औषधालय पर आसानी से मिल जाता हैं।

अगर रोज इसके पाउडर को दूध में मिलाकर पिया जाए तो 7 दिन में ही यह बॉडी का स्टेमिना बढ़ाने में मदद करता है। कौंच के बीज में मौजूद पोषक तत्व पिता बनने की अक्षमता को दूर करने के लिए भी कारगर है।
1. केवांच बीज टेस्टोस्टेरान को बढ़ाता है।
2. केवांच के बीज के नियमित सेवन से थकान एवं शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
3. कौंच पाक मांसपेशीयों के विकास में भी फायदेमंद रहता है।
4. केवांच के बीज का चूर्ण अच्छी नींद के लिए भी होता है।
5. इसमें डोपामाइन की बहुत अधिक मात्रा होती है।
6. केवांच पाक जीवनशैली में सुधार के लिए भी लाभदायक होता है।
7. केवांच पाक के फायदे पुरुष बांझपन को दूर करने में भी लाभदायक होता है।
8. केवांच पाक मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है।
9. केवांच के बीज खाने से पीनियल गंथि पर सक्रिय होती है।

*नोटः कौंच या केवाँच के बीजों का प्रयोग शोधन के बाद करना चाहिए। इसकी फलियों पर लगे हुए रोम बहुत अधिक खुजली करते हैं। इसलिए इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

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