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सेम या पहाड़ी छेमी (Indian Flat Bean)

सेम या पहाड़ी छिमी को  कुमाऊँ के समुद्र तल से 2000 मीटर तक की ऊँचाई में उगाया जाता है। Dolichos lablab or Indian Bean is grown in Kumaon hills

सेम या पहाड़ी छेमी (Indian Flat Bean)
लेखक: शम्भू नौटियाल

सेम या पहाड़ी छेमी वानस्पतिक नाम डॉलीकॉस लैबलैब (Dolichos lablab) Syn. लैबलैब परपूरियस (Lablab purpureus (Linn.) Sweet), पादप कुल फैबेसी या लैग्युमिनेसी (Fabaceae or Leguminosae) से संबंधित है। संस्कृत में इसका नाम निष्पाव, वल्लक, श्वेतशिम्बिका तथा अंग्रेजी नाम Flat Bean (फ्लैट बीन) है। विश्व में छेमी की लगभग 60 प्रजातियां उगायी जाती हैं जोकि सबसे अधिक एशिया तथा अफ्रीका में उगायी जाती है।   समुद्र तल से 2000 मीटर तक की ऊँचाई तक उगाई जाने वाली छेमी की फसल को उत्तराखंड, हिमाचल सहित भारत के कर्नाटका, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु आदि राज्यों में बहुतायत मात्रा में उगाया जाता है। इसके अलावा भारत के अन्य राज्यों में इसको घरेलू सब्जी उपयोग के लिये ही उगाया जाता है।

इसके पौधे की ऊंचाई 10-15 फीट तक होती है। इसके फूल बैंगनी या सफेद होते हैं। इसके लिए अच्छी तरह से सूखी हुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी फली 4 से 5 सेमी लंबी होती है।  पोष्टिक आहार के अलावा सेम के तने तथा पत्तियां को पशुचारे में भी खूब उपयोग किया जाता है। इसके अलावा छेमी की फसल का विशेष एग्रीकल्चर महत्व भी है। यह भूमि की उर्वरक्ता बढ़ाने के साथ-साथ अच्छी नाइट्रोजन स्थलीकरण (Nitrogen fixation) करने में भी सहायक है।
सेम या पहाड़ी छिमी को  कुमाऊँ के समुद्र तल से 2000 मीटर तक की ऊँचाई में उगाया जाता है। Dolichos lablab or Indian Bean is grown in Kumaon hills

हरी सब्जी के रूप में उपयोग की जाने वाली छेमी के रासायनिक विश्लेषण के आधार पर इसमें सुगर, एल्कोहल, फीनोल्स, स्टेरोइड्स, इसेंसियल ऑयल्स, एल्केलॉइड्स, टेनिन्स, फलेवोनॉइड्स, सेपोनिन्स, काउमेरिन्स, टर्पिनोइड्स, ग्लाइकोसाइड्स तथा एथनानोइड्स आदि सामान्यतः पाये जाते हैं। एक शोध पत्र के अनुसार छेमी से एक डोलिचिन (dolichin) नामक रसायन आयसोलेट किया गया जिसे फूसारियम ऑक्सिसपोरम, राइजोक्टोनिया सोलानी तथा कोपरिनस कॉमेट्स नामक कवक (Fungi) के सापेक्ष प्रभावी पाया गया।  इसके अलावा छेमी में प्रोटीन 2.95 ग्राम, वसा 0.27 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट्स 9.2 ग्राम तथा विटामिन्स की अच्छी मात्रा पायी जाती है।

सेम के परम्परागत उपयोग को देखते हुये यह अनुमान लगाया जा सकता है कि छेमी को पहले से ही स्वास्थ्यप्रद का एक विकल्प भी माना जाता रहा है।  विभिन्न शोध पत्रों के अनुसार छेमी पर हुये शोध में इसे डाइबेटिक, आयरन डिफीसिएंसी, एनीमिया, हाइपर लिपिडिमिक, माइक्रोबियल इन्फेक्शन आदि हेतु प्रभावी पाया गया है।  औषधीय अध्ययनों से पता चला है कि सेम में एंटीडायबिटिक, एंटीइन्फ्लेमेटरी, एनाल्जेसिक, एंटीऑक्सिडेंट, साइटोटॉक्सिक, हाइपोलिपिडेमिक, रोगाणुरोधी, कीटनाशक, हेपेटाइट्रोडिव, एंटीथायलेटिक, एंटीस्पास्मोडिक प्रभाव होते थे और यह आयरन की कमी वाले एनीमिया के उपचार के लिए भी होता था।

*आयुर्वेद में सेम की फली को गला और पेट का दर्द, सूजन, बुखार, अल्सर जैसे अनेक बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग में लाया जाता है। सेम की फली में कॉपर, आयरन, मैग्निशियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन, कैल्शियम आदि अनगिनत पौष्टिकताएं होती है। सेम की सब्जी बनाकर खाने से भी कुछ हद तक इसकी पौष्टिकताओं का फायदा मिल सकता है साथ ही बीमारियों से भी राहत मिलने में मदद मिल सकती है। सेम मधुर, थोड़ा कड़वा, गर्म तासीर होने के कारण भारी भी होता है। सेम कफ, वात और पित्त को कम करने के अलावा सेम पेट फूलना, एसिडिटी तथा विष का असर कम करने वाला होता है। चलिये सेम के बारे में विस्तार से आगे जानते हैं।

*आयुर्वेद में सेम के फली, बीज तथा पत्ते का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है। इसके अलावा सेम की सब्जी बनाकर इसका सेवन कर सकते हैं। यह शरीर से पोषक तत्वों को अवशोषित करने और भोजन से प्राप्त प्रोटीन को डाइजेस्ट करने में मदद करता है। लोहे की कम उपस्थिति से सुस्ती, कम सक्रिय और थकावट पैदा होती है।
*मौसम के बदलाव के साथ गले में दर्द , सर्दी-खांसी जैसी बहुत सारी समस्याएं होने लगती है। गले के दर्द से आराम पाने में सेम की फली का ऐसे सेवन करने पर आराम मिलता है। 5-10 मिली सेम के पत्ते के रस का सेवन करने से गले का दर्द कम होता है।
*सेम के बीजों का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से उल्टी, दस्त, मूत्र संबंधी समस्या एवं पेट के दर्द से लाभ मिलता है।
*अक्सर मसालेदार खाना खाने पर पेट में गैस हो जाता है जिसके कारण पेट में दर्द होने लगता है। सेम के पत्तों को पीसकर पेट पर लगाने से पेट का दर्द कम हो जाता है।
*इसमें पर्याप्त मात्रा में पोटेशियम होता है जो मांसपेशियों की ऐंठन को कम करता है और मांसपेशियों की ताकत में सुधार करता है।

*अगर अपच के कारण पेट फूलने की समस्या होती है तो उसमें सेम बहुत काम आता है। सेम के बीजों को आग में भूनकर खाने से आध्मान या पेट फूलने की समस्या में लाभ होता है।
*सेम की फली अल्सर का घाव सूखाने में बहुत काम आता है। राजशिम्बी के बीजों को भैंस के दूध में पीसकर शाम के समय अल्सर पर लगाना चाहिए इस तरह लगाने से अल्सर का घाव शीघ्र भर जाता है; क्योंकि शाम के समय गर्मी कम होती है।
*कभी-कभी एलर्जी के कारण खुजली की समस्या होती है। सेम के पत्ते के रस को खुजली वाले जगह पर लगाने से परेशानी कम होती है।
*दाद की समस्या है तो वहां सेम के पत्ते का रस लगायें। इससे दाद या रिंगवर्म जल्दी ठीक होता है।
*सेम बीजों का काढ़ा बनाकर 15-30 मिली काढ़े में 1 ग्राम सोंठ मिलाकर पीने से ज्वर या बुखार के लाभ होता है।
*सेम बीजों को पीसकर सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन से जल्दी आराम मिलता है।
*एक रिसर्च के अनुसार सेम में एंटी कैंसर गुण होने के वजह से ये कैंसर के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
*सेम की फली पाचन संबंधी समस्याओ में भी फायदेमंद होती है विशेषरूप से डायरिया में क्योंकि रिसर्च के अनुसार सेम में एस्ट्रिंजेंट यानि कषाय का गुण होता है जो कि डायरिया जैसी समस्याओं को दूर कर पाचन को स्वस्थ्य बनाये रखने में मदद करती है। फाइबर पाचन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अघुलनशील फाइबर मल को बल्क प्रदान करता है और शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को निकालने के लिए समय की गति बढ़ाता है।
*एक रिसर्च के अनुसार सेम में ऐसे गुण होते हैं जो कि रेस्पिरेटरी यानी श्वसन प्रक्रिया को स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है। खनिज जैसे कि सेलेनियम, मैंगनीज और जस्ता आदि फेफड़े के विकार (लंग डिसऑर्डर) जैसे पुराने अवरोधक फुफ्फुसीय रोग (chronic obstructive pulmonary disease) से पीड़ित लोगों की सहायता करते हैं। ऑक्सीडेटिव तनाव श्वसन विकार और पुरानी प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग का कारण है। मैंगनीज ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में सक्षम है और साथ ही सूजन का उत्पादन करके फेफड़ों को ठीक करने में मदद करता है।
*एक रिसर्च के अनुसार सेम में कार्डिओवस्कुलर सिस्टम को स्वस्थ बनाये रख क हृदय संबधी रोग को दूर रखने में सहायक होती है।
*प्रोटीन खाद्य पदार्थ में अमीनो एसिड होता है जो हार्मोन संतुलन, मूत्र नियंत्रित करने और चिंता का इलाज करने के लिए आवश्यक हैं। प्रोटीन न्यूरोट्रांसमीटर के कार्यों में सहायता करता है और हार्मोन जैसे सरेरोटोनिन और डोपामाइन को संयोजित करता है जो हमें शांत करने में मदद करते हैं। प्रोटीन ग्लूकोज को संतुलित करते हैं और चिड़चिड़ापन, मनोदशा और लालच को रोकते हैं जो रक्त शर्करा के स्तर में उतार-चढ़ाव के साथ जुड़ा हुआ है।
नोटः
सेम फली का सेवन आंतरिक रूप से बिना पकाकर नहीं करना चाहिए। कच्ची और बड़ी मात्रा में खाए जाने पर पेट की समस्याएं पैदा हो सकती है और इसे विषाक्त माना जाता है। ठंड, फ्लू या ठंड से पीड़ित लोग सेवन से बचना चाहिए।

 

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