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मुहावरे और लोकोक्तियाँ - कुमाऊँनी भाषा में (भाग-२२)

 कुमाऊँनी भाषा के कुछ प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों के अर्थ Idioms and phrases of Kumauni language , Kumauni Muhavare aur Lokoktiyan


कुमाऊँनी भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियाँ


यहाँ पर हम कुमाऊँनी की कुछ प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों को उनके अर्थ के साथ जानने का प्रयास करेंगे:-

पढ़न बखत धुं, खांण बखत कजि, हई कुड़ि जौ बंजि
अर्थात
पढ़ाई के समय धुंआ तथा खाना खाते समय विवाद से बचना चाहिये।

पढ़ी लेखी गुणि च्याल
अर्थात
संस्कारवान संतान होना

परबुधिया मर किलै नि जानै, ठौर नै
अर्थात
कुतर्क करने वाले मंदबुद्धि व्यक्ति की समाज में जगह नहीं बनती है।

पराय ख्वर खै, हगते गीत गै
अर्थात
निर्लज्ज होकर जीवन यापन करना

पराय गोरु में गोदान
अर्थात
दूसरे के काम से अपना उल्लु सीधा करना

पराय च्यल पालण, छार छाणन
अर्थात
दूसरे की संतान या सम्पति से अपने लिए उम्मीदें नही करनी चाहिए

पराय पूत, घ्वड़’क मूत
अर्थात
दूसरे की संतान से अपनी संतान की तुलना ना करें

परायी जोबरियों'क काच्चे साग
अर्थात
अपने परिवार या समाज का अलग महत्व है

पहाड़ झन जन्मौ च्यौल, देश झन जन्मौ ब्यौलो
अर्थात 
पुरुष का पहाड़ पर तथा बैल का मैदानी क्षेत्र में जीवन मुश्किल भरा होता है

पहाड़ समान दाता नै, बिना लट्ठी दिन नै
अर्थात
दबाव या डर दिखाने पर ही सहायता करना

पाई पूत, है अवधूत
अर्थात
अच्छे लालन-पालन के बाद भी संतान का संस्कारहीन होना

पांणि'क सोत नै, धुंओं'क निकास नै
अर्थात
 जीवन यापन की कठिन परिस्थिति होना

पांणि'क सांस, छुतड़ौ'क बास
अर्थात
जहां पर रहने की सुविधाएं अच्छी हों वही पर रहना चाहिए

पांणि'कि धौ, पन्यारै'कि मौ
अर्थात
बेमेल समन्वय कराना, उपयोगिता के अनुसार वस्तु या व्यक्ति का उपयोग ना करना

पांणि में जाँठ मार बेर, पाणि'क द्वी नि हुन 
अर्थात
किसी व्यक्ति की अकारण निंदा करने से उसकी छवि प्रभावित नहीं होती

पातर धरण, हाथि’क खुराक
अर्थात 
परस्त्रीगमन का व्यसन सम्पति को तेजी से समाप्त कर देता है।

पिठो (अनाज का भूसा) है रूख नै, जवैं है निठुर नै
अर्थात
अनाज के भूसे से मिठास या कोमलता तथा दामाद से सहयोग की आशा नहीं करनी चाहिए

पिनाऊ'क पातौ'क जस पाणि
अर्थात
बहुत ही अस्थिर या अविश्वसनीय व्यक्ति होना

पिनालु'क पातौ'क पांणि, गरिबै घरै'कि मांणि
अर्थात
निर्धन व्यक्ति की कभी स्थायी सुख नहीं मिल पाता

पिसि सबै चोरि ली गै, घट किलै चोरौ
अर्थात
चोर का कोई भरोसा नहीं वह सब कुछ चोरी कर सकता है

पिल फुटौ, पीड़ ग्ये
अर्थात
जैसे भी हो, किसी प्रकार एक बड़ी मुसीबत से पीछा छूटा

पिंण बखतौ’क बाछ, चरण बखतौ’क बौहौड़ (बछड़ा)
अर्थात
अवसर के अनुसार व्यवहार बदल लेना या अवसरवादी होना

पीठि'कि और कोखि'कि आग बराबर हैं 
अर्थात
अपने सहोदर भाई-बहिनो या संतान से आत्मीयता अधिक होती है

पुठ पछिन तो राज कैं लै गाई मिलैं
अर्थात
किसी के पीठ पीछे कोई किसी भी निंदा कर देता है

पुराण पातै’ल झणन, नयी पातै’ल लागण
अर्थात
मृत्यु का शोक नहि करना चाहिये जन्म और मरण जीवन का अंग हैं

पूसै ब्याँण, पूसै औतांण
अर्थात
किसी कार्य को शुरू करते ही बिना कारण छोड़ देना

पेट को रीता, मुख को फीटा/तीता
अर्थात
अप्रिय पर सच बोलने वाला निस्वार्थ व्यक्ति

पेट’म मुस नाचण
अर्थात 
अत्यधिक भूख लगना

पेट में नानतिन, हात में कनज्योड़ि
अर्थात
अत्यधिक उतावलापन या अधीरता दिखाना

पैलि गै सुख, तब गर्भ सुख
अर्थात
गो-सेवा सबसे महत्वपूर्ण सेवा है

पैलि जै बूड़ि गीत गाँछि, अब नाति जै है गो
अर्थात
किसी की प्रसन्नता में और वृद्धि होना

पैलि हाथि'क दांत भ्यार नि औन, भ्यार ऐ बेर भितेर नि जान
अर्थात
प्रभावशाली व्यक्ति पहले बोलता नहीं है और अगर बोलै तो फिर सबको चुप करा देता है

पौंण पर मन हो तो चुल में भिनेर हो
अर्थात
 मेजबान का मेहमान को उचित सम्मान ना देना

पौ भरिचुन में, तिबारी में डयर
अर्थात
बिना किसी बात के छोटी सी बात पर इतराना या हनक दिखाना

उपरोक्त मुहावरों और लोकोक्तियों के सम्बन्ध में सभी पाठकों से उनके विचारो, सुझावों एवं टिप्पणियों का स्वागत है।

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