
-:कुणौक घर भाग-३:-
(कोने का घर)
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
-:कुणौक घर-भाग-२ से आगे:-
ब्याल हुं जब हम सब एक दगाड़ बैठां तो हमौर बातचीतौक विषय ज्याठज्यूक बिमारी ही जी, फिर हमुल निर्णय करौ कि अस्पताल जै बेर पत्त करुंल जैक लिजि हमन कं नैनताल जाण पड़ौल। जब हम अस्पताल पुजां तो पैल्ली कैलै हमन कं ल्याखै नि लगाय (महत्त्व नहीं दिया) तो अचानक एक डॉक्टर कूण लागौ कि "क्या करोग ? किडनी दे सकते हो अपनी!, मरीज की दोनों किडनी खराब हैं डायलिसिस पर है"।
तब हम कुछ देर वैं चड़म्म चारै बैठ गयां फिर अचानक यों उठी "कूण लागीं"दाज्यू कं मैं आपण किडनी द्यूंल", फिर इनन कं सब समझा डाक्टरैल और फिर अघिल द्वितीन दिन जांच में लागी पर द्वियै भैनैक कुछ चीज मैच निकर पछा पत्त चलौ कि ब्लडग्रुप फरक छु, सब निराश हैं ग्याय फिर मैं रमोली अघिल ऐयूं मैल कौ "मेरी जांच करो" ऐस शुण बेर सब अचकचै (अचंभित) जै गेयीं।
फिर जब जांच में सब सही निकलौ तो डाक्टर और इनार घरवालनैल मथै फिर से म्यार निर्णय पर विचार करणाक लिजि समय दे पर मैल आपण शब्दन बै नि हटणौक मन बणै हाल छी। अतः अघिल द्विदिन बाद मेर एक गुर्द म्यार जाठज्युकं लगै दे डाक्टरनैल और इनौर पुर परिवार म्यार सेवा टहल में लाग गो। पुर १५ दिन मैं अस्पताल में रैयूं वीक बाद लै मेरि पुर देखभाल और म्यार घरौक ध्यान मेर साससौरज्यूल धरौ बस मकं तो योयी लागौ कि मेर एक गुर्दैल उ काम कर दे जो इतु बर्सन में इनैरि और म्यार नानतिननैक मोह ममता नि करि सकि।
पर जब मैं आपण घर पुज्युं म्योर स्वागत मेरी पुर परवारैल उसीकै करौ जैसी क्वे ब्या दिनैक दुल्हैणिक करनी। आब हम सब साथ रुनूं पर म्यार दुल्हौ बड़ मुश्किलैल दगाड़ रुणाक लिजी मंसाणी (तैयार हुए)। आज यो घटना कं घटी पुर चार बरस है गेयीं पर म्यार सौरज्यू कभै लै हमार सामुणि आपण खोर सिध ठाड़ कर बेर नि बैठ,उनैरि मुनयः हमेशा झुकी रैं। हमार सामुणि जो म्यार हाथौक पाणि नि पिन्यु कुंछी आब हमन दगै बैठ बेर खाण खानी।
सबै नतमस्तक छन पर मकं आब यो सब भल नि लागन किलै कि यो सब जणिंल हमन कं एक उच्च सिंघासन में बैठै हालौ जमै पारिवारिक एकरसता स्नेह और ममता न्हां, बस एक एहसानौक बोझ छु जो हमार रिश्तन कं स्वाभाविक नि हूण दिन।
खैर मकं म्योर सौरास्सी मिल गेयी इनन कं इनौर परिवार और म्यार नानतिनन कं ठुलनैक छत्रछाया।
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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