
कुमाऊँनी लोकगाथा-जिया राँणि
(भाग-२)(रचनाकार: अम्बादत्त उपाध्याय)
कत्यूरी रानी "जिया" के सम्बन्ध में कुमाऊँ में कई जन श्रुतियाँ प्रचलित हैं। जिनमें "जिया राँणि" के नाम से उनके बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है। ऐतिहासिक रूप से उनके बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। पर इतना अवश्य है की वह कुमाऊँ की एक वीरांगना थी, जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने किशोर पुत्र के साथ कत्यूरी राज की बागडोर संभाली थी। उनका समय लगभग १४००-१४५० ई. के दौरान का माना जाता है, जिस समय भारत में तुग़लक़/सैयद/लोदी वंश का शासन रहा।
यहां पर हम कत्यूरी "जिया राँणि" के जीवन पर केंद्रित खंड काव्य कत्यूरी "जिया राँणि" को प्रस्तुत कर रहे हैं। इस खंड काव्य की रचना श्री अम्बादत्त उपाध्याय जी द्वारा की गयी है। जिनका संक्षित्प्त विवरण खंड काव्य के प्रारम्भ में दिया गया है। यह खंड काव्य कत्यूरी "जिया राँणि" के चरित्र के साथ ही कुमाऊँनी साहित्य की एक उत्तम रचना भी है।
खाती ज्यु की राणी रामा रात गोठ रईं।
अधराति बींच मजा चेंलि पैद हई॥
नानी भौ चीचाट पाड़ी गोठ पना जबा।
बड़ियकी नीन टूटि, सुणी लिया तबा॥
मनमा स्वचण लागी, हैंगो म्यर च्यल।
बृड़ियनी बखत छा सुक सेव द्यल॥
कोई मजा धरि बटि करी ला्ड़ प्यार।
छातीं परा म्यर प्रभु आई दुदैं धार॥
धन धन महादेव, धन तुमै मया।
भितेर खातिज्यू लकी, तालै चितै गया॥
चैहैंछ चितैछ राणी, हैई रैछी नानी।
यतुका बीचम गोठ, खाति ज्यू ऐ जानीब॥
सनतान देखी बेर, खुशी है अपार।
राणि लै पगडि नानी, धरि हली भ्यार॥
गुस्सा मारी बुड़ियाका, आंखि हैगीं लाल।
बुड़े कणीं द्यखैं हरै, जस होंछ काल॥
लिजाबो यकणी कैछा, जांबै मांगि ल्यछा।
म्यकै जवां हणि तुम, घर किलै अछा॥
पैली घर बै है गेली, तुम हैं नि जाणी।
उल्ट काम कला कैबै, मैं गोछिया जाणि॥
कौछी च्यल बरदान, शिव है मांगिया।
तुमै उल्टी हैई कय, म्यक चेली दिया॥
गाई ढाई दिबै कैदी, बुड़े की चौपटा।
मन मनै खाती कनी, लगी ख्वरा फटा॥
हरे रामा हरे शिवा, अब कां जानू।
डंगकना राने कणी, कसि समझानू॥
मनमा धीरज धरि, एसीं बात कनी।
औंलाज है एकनसी, क्य नान क्य नानी॥
कतु बान हैई रैछ, हमरि ए चेली।
रुपसा मुखड़ि एकि, म्यकणी खैंदेली॥
बुढ़ापी उमर छा य, बनली सहार।
खुशी लै मनौल छ्वटा, ठुला वे त्यौहार॥
जालै कि य नानि छाये यकणि सैतु्ल।
सयाणी है जालीं कथै, यक ब्यवै द्युल॥
किलैकीं उठाड़ मेंछैं, यतन तूफान।
चेलीं बेटी हैछ मैसै पराई की धना॥
आबाद कै हैछ एल, हमर भितेर।
सैंति ले यकणि मुये, ध्यान लगै बेर॥
शिब लै सुधारि दिया, हम द्विनू दान।
औलाजा लिजिया कसा, छिया परेशान॥
मल घरों सैणी देख, जिद नि करना।
बड़ि मुसीबत पैचै, हैरै सनताना॥
करणी चैं हमू कणि, एकी कई कई।
खाती ज्य की बात सुणी, राणि गेई जई॥
ना ना ना मैं निसैतुन, यकणी लिजाओ।
मेतरुबै यकैं तलै, ज्यौनै खड़ै आओ॥
जब तक तुमुलै य, यां बै नि लिजाणी।
उद्या तक मेरी हली, खण की निखाणी॥
मरौ हणी मैंले खाणौ, नतर जहर।
दूर निन्है जाओ यकैं, सामणी बै म्यर॥
खाति ज्यु लै राणि हाँति, एसि बात कई।
त्वील मिकै मुसीबत, कसि य द्यखई॥
खान दानै की तू हनी यस नि कहनी।
चेली हमैं हैई गेछा, यकणी सैतनी॥
जबा वती हम हणी, आई गेछ जून।
त्यरा यों वचना सुणि, जई गोछा खून॥
कैरु कसी केति कणी, काहुणी लिजानू।
ल्वैंडवा भौ कणी क्य, खवै बति पावनू॥
छातिमा धरि है नानी, पैवादी कमरा।
मैं चेली के निन्है जानू , तू यकलै मरा॥
सक-सक कनै खाति, लागि गया बटा।
तिरिया जाते की देखो, कसि हैछा हटा॥
नारियों का हनी बाबू, कतुका हो रूपा।
वे हैजैछ महाकाली, क्वे मलि स्वरूपा॥
सिदी-सादी हैंई जैं क्वे, महा अभिमानी।
खाति रज चेली हैति, जानै जानै कनी॥
क्यलकी कैलाश गोय, मैं मेरी चेहड़ी।
आँखों में आंसु की ऐरै, सौण भादों झड़ी॥
मां बाब औलाज पानी, पैद है वै सुख।
त्यर लिजि पाण हैयू, ओ चेहणी दुख॥
तू पैद निहल त्यर, निरन मलाल।
बुड़ियन बखत मजि, निहना यों हाल॥
भल भाग हन तिक, सैतून पाउन।
फुटिया करम हया, रोजै रौल रुन॥
किहणी मांगी ली भोले नाथ ज्यू हैं वर।
त्यकै छोड़ी क्य मुखैलै, जहानू मैं घर॥
जानै जानै खाति पूजा, एक बगीचम।
चेलि कणी छोड़ी दिनी, डवों का बीचम॥
देवी के मूरत हैई, अनारै जै कली।
हरीघा में देख्य मरै और लकी भली॥
कोई मजा लिलि आजि, कर लाड़ प्यार।
अमर है जये चेली, तू पहाड़ सार॥
सिरी भोलेनाथ तेरी रकसा करीला।
उनरी देईया हैई, आफी ऊं सैतीला॥
कसी जानू छोड़ी बति, तिकणी मैं चेली।
कुरक्वस जसि तेरि, आंखि मैं खै देली॥
भुकि चाटि लिबै धर, नानि कणि मुण।
खाति ज्यु ले गया बाबु, उति भै बे रूण॥
मरियै सबै छ-बड़ेछी, पापणी औलाज।
ज्योंने छोड़ि गोय चेली, तिकणी मैं आज॥
जौहणी उठनी ठाड़, खाति रजा तब।
मुकद्दर खेल छिय, क्य करछी अब।।
द्वी कदमा जैवै आजि, पछिना चहानी।
चेली को मुखड़ी देखी, पै डाड़ मारनी॥
हरे रामा हरे शिवा, घर कसि जौल।
य चेहणी याद कणि क्य देखि भुलौल॥
दिलम धीरज धर, खाति लैं आपण।
बुद्ध ज्यू ऐ गया घर, रूनै सण सण॥
कवि का
अबा तुम सुणि लियो, आघिना का हाल।
ईश्वरा भगवाना कनी, सबूक खयाल॥
नानि कैणि पैद हुई, दिन हया चार।
गौराज्यु मनमा देखो, कस आं विचार॥
पारवती शिब जी हैं, कैछ महाराज।
घूमण हिटूल प्रभू तहाँ हम आज।।
बाग व बगीचा स्वामी जनतु व जीव।
सबै पराणिक दुःख दूर करो शिव॥
मानि जानी बात कणी, सिरी भोलेनाथ।।
शिब पारवती जानी, द्विय झण साथ॥
घुमनै घामनै ता उ, बगिचमा गया।
खाति रज चेलि कणि, जति छोड़ि अया।।
बोड़ै डवै जड़ि वीलै, धरी है गिचमा।
सुदै पड़ि रहै नानी, हरिया घासमा।।
ल्वैडवा य नानी एति, कां आई गेछा।
मन मजो पारबती, स्वचण में रैंछा।।
पैजै की चहाय बाबू, शिव जी उज्याणी।
गौराजी मन की बात शिव गया जाणी ।।
शिव जी
मेरि बात सुण कनी, गौरा पारवती।
यनानी की कसि हैरैं, देख दुरगती।।
लिजोल यकणी घर, ज्योंन जै य हली।
बखरा चहाण में य, छा कतुका भली॥
आज बै यकणी मानूल, मैं नानि बैणी।
मोलेनाथ जाणछिया, सबै बातों कणी।।
कवि का
यतु बात सुणि माता, गौरा पारवती।
पहुँची म्परा भाई, से रै नानी जती॥
कोई मजा घरों हणी लगाछिय हात।
झस कय नानि भोलें, पाड़ि दी चिचाट।।
भुकि चाटि हिलें डुलै, चुप कर हैछ।
मन मजी पारवती, खुशी हैई गैछ।
हैसनै बुलाने अया, द्विय झण घर।
नाम करण में कौल, खूब झर फर।।
मोलेनाथै महिमा का अपरम पार।
करण ले गया प्रभु, मनमा विचार।।
शिव जी
अपणी शक्ति लै मैंले, दिछी य नानी।
खातिज्यु की राणि हई, दुनिये की जानी॥
दिहैछी उकणी पाई, पोसि लिनी अबा।
ब्याकोंल कसिक ऐक, ज्वान हली जबा।।
कवि का
शिव जी करण लागा, आघिना उपाई।
कैलाश में बसें दिय गांव एक भाई॥
माया लै आपणी उती, बनै खेती पाती।
बड़ा भैसा गोरू बछा, या भांति भांति।।
जतूका छी दूत बना, नौकर चाकर।
शक्तिमान पैद करा, निसागूं महर।।
बडु सुजेपाल और गुरू खेक दास।
कैलाशा का गौमें हैगो, आदिमु का बास।।
अपू बना सैणि मैंस, मनख का मेसा।
आदिमू ज रण खाण, कलैश ना लेसा।।
नीलकंठी नाम धरि, हैल य आपण।
जां लेकी नि व्यवायनी, य मेषम रण।
भगतू लिजिया प्रभू, के के बनी जानी।
यकीन करनी जो ऊं, मैष हँनी ज्ञानी।।
शिव जी का
बुलै लिनी नीलकंठी, नौकर चाकर।
न्योत दिण हणी जायो, कनी घरों पर।।।
आज बे छ चौथा दिन, कया नाम कण।
जो निभला पै द्यखला, हालत आपण॥
कविः-
न्योत दिहैं जग जगा नौकर न्हैगया।
चौथा दिन कैलाश में, सबै आई गया।
खाण पिण बनणे की हैं है रै तैयारी।
नीलकंठी घर हैई, भीड़ बड़े भारी।।
धूम धड़ाक्लै हय, नाम कन बड़।
नानी कणी सुणि लिया, जिया नाम पड़॥
द्वी दिना कैलाश मजी, रई झर फर।
न्योंत खैबै सबै गया, अपा अपा घर।।
अब तुम सुणि लिया, जियाका यों हाल।
खैच पिछ मौज मजी, रहेछ बहाल।।
दिनै और रातैं और, ऐसी बड़ी गई।
कुछैं सालू मजी जिया, ज्वान हैई गई।
दिखण चहाण में है, बहौतै सुन्दर।
दादू की अलावा कैकी, निमाननी डर॥
तप हय मुखड़मा, देवी का समान।
दगड़िया नानियों के, कैदि परेशान।।
जिया की सहेलियां
क्वे नानि कैं जिया म्यकैं मारि दिछ लात।
कैकि ऐ सिकैत म्यर अमोरि है लात॥
रुनै ऐबै क्वे दिखैंछा, फाटिया धिंगड़ा।
तुमरि वैणि करि दी हमू हैं झगड़ा।।
कवि:-
दिख हैई जानी रोजे, सिकैतों के सुणि।
बात ऐसी कण लागा पारवती हुँणी॥
शिव:-
जियै कणी लिजा कथैं, मौकै बति दूर।
एसि जगा जया जोंह, थाकि बटी चूर॥
दगड़ी नानियों के य, कैदी परेशान।
ब्यबांड़ी उमर हैगे, जिया हैगे ज्वान।।
कविः-
स्वामी का वचना सुणि, गौरा पारवती।
पूजि गेछ म्यरा भया, भै रै जिया जती॥
जियै पास भैटि बति, अंगामा किटिछ।
मिठि मिठि बात तब उनि हैं करिछ।
गौरा:-
हिट जिया हम द्वियै घुमौ हणि जौला।
पहाड़ा मुलूका का मैं गौं तिकै द्यखौला॥
कविः-
बैरी पैरी बति द्विय, झण लागा बटा।
उ उच्ची ढईम जौल, जिया कैदि हटा।।
उठनै भैटनै पुजा, ढई मजी तबा।
यथां उथ चांण लागा, द्विवै झणा जबा।।
तिब्बत मुलुक द्यख, भोटिया जां रनी।
कुमाऊं गढ़वाल जांका, सिद मैंस हनी॥
द्वरहाट इलाक द्यख, द्यख बागेश्वर।
गिवाड़ बैराठ हणि, लागि गे नजर॥
जिया:-
जिया कैंछ बौजि बता, यइलाक कोछा।
सामणी जो धार मैजि, चमकण रौछा।।
कवि:-
जिये बात सुणि कैछ पारवती तबा।
एके कैबै देखी ले तू मुलूक कैं सबा॥
आँगुई ईसार कैबै, दिखै हैली गाम।
जियै कणी बतै हली, सबै जगूं नाम॥
गौरा-
यछा कय देख बबा, ईलाक गिवाड़।
बीचमा बगण मै रै रामगंगा गाड़।।
सामणी में देख भाणी, रंगोली बैराठ।
चलना कत्यूरों क छा एति जिया ठाट।।
नौ लाख कत्युरू का वां, रजा पृथीपाल।
उनरा राजम भागी, सबै छैं बहाल।।
घ्वड़ा भैंस गोरु बछा, बकरों दंगल।
रंगोलो बैराठ मजी, सुनूक महल।।
नौ लाख कत्यूरों वांका बड़े भारी वीर।
बात सुणि जिय मन है गोय अधीर।
जिया-
मन मनै कैछ जणि, क्य हैगो म्यकणि।
पृथ्वीपाल नाम सुणि के है गोछ जाणि।।
मैंलै मानि है उनू कैं आज बति पति।
कि उनरी राणि हौल, कि पैं दुरगति।।
कवि:-
जिया का मनम लाग, पृथ्वीपाल ध्यान।
द्विय झण घर अया, सुणों भगवान।।
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