'

जिया राँणि - कुमाऊँनी लोकगाथा (भाग-३)

 कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा जिया राँणि पर आधारित खंडकाव्य Famous folk tale of Kumaun Katyuri "Jiya Rani"


कुमाऊँनी लोकगाथा-जिया राँणि 
(रचनाकार: अम्बादत्त उपाध्याय)

कत्यूरी रानी "जिया" के सम्बन्ध में कुमाऊँ में कई जन श्रुतियाँ प्रचलित हैं 
जिनमें "जिया राँणि" के नाम से उनके बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।  
ऐतिहासिक रूप से उनके बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है 
पर इतना अवश्य है की वह कुमाऊँ की एक वीरांगना थी, 
जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने किशोर पुत्र के साथ 
कत्यूरी राज की बागडोर संभाली थी।  
उनका समय लगभग १४००-१४५० ई. के दौरान का माना जाता है, 
जिस समय भारत में तुग़लक़/सैयद/लोदी वंश का शासन रहा। 
 यहां पर हम  कत्यूरी "जिया राँणि" के जीवन पर केंद्रित खंड काव्य 
कत्यूरी "जिया राँणि" को प्रस्तुत कर रहे हैं।  
इस खंड काव्य की रचना श्री अम्बादत्त उपाध्याय जी द्वारा की गयी है 
जिनका संक्षित्प्त विवरण खंड काव्य के प्रारम्भ में दिया गया है।  
यह खंड काव्य कत्यूरी "जिया राँणि" के चरित्र के साथ ही 
कुमाऊँनी साहित्य की एक उत्तम रचना भी है।


बेचैन रहण लागिंगो, जिय क मन।
कसिक खबर भेजू करनू क्य धन॥
दिनै की टूटिगे भुक, रातै बड़ै नीन।
पृथीपाला नाम पारि हैगेई लौलीन॥ 
नै कैकणी दिख कैंछ, नै बुलें हैंसिछा।
एकान्त में भैटी भैटी स्वचनै रहैंछा॥
नै स्योंनि सिंगार कभै, नै भल पैरण।
कसिका पूजन कैंछ, उना सरण॥ 
शक्मिान चेली हैई, बनें एक घुघूती।
दिन भरि लागि रहै, वीकी थुति बुति॥
पाई पोसि बनै हली घुगुती कै ठुलि।
एसि सिखै हैई ना जो, क्वे चीजकैं भुली।। 
राजा पृथीपाल ज्यू हैं, चिठि मैं लेखुल।
य घुगुति गवा बादि, उनू है भेजुल॥
चिठि ल्यखों होंणी जिया, है गेई तैयार।
निलकंठी ज्यूकि पास, न्हैगी समाचार॥ 
उनरी माया छौ भाई, जलमा थलमा।
जिय लै उठाई हली, ल्यखे हैं कलमा॥
जिया फा पत्र पृथीपाल को 
लिखी हैछ रजै हणी, सेवा व सलामा।
आशवा कुशवा लेखि, दुशरि हो रमा॥

आघिना ल्यखणा लागि, अपां समाचार।
बिना देखिये हैगोछ, तुम दगै प्यार॥ 
जैद्या बति द्यख स्वामी, तुमर मुलुक।
उध्या बे मनमा म्यर, आग जै सुलुक॥ 
भौते भल मिकै लाग, दूर बै महल।
दिल मजि हण लागी, तां वै हल चल॥ 
ब्या कणछा तुमु दगै, य म्यर परण।
नतर है जाल स्वामी मिहणी मरण।।
तुमै राणि हण मैंले, सुण लिया बात।
मैं झना छोड़िया म्यरा, जोड़िया छै हाथ॥
तुमरा चरणों मजी लगे हैछ ध्यान।
कि तुमरी होंल राणि, कि दिद्युल ज्यान॥
पूरूबा बद्यला सुर्ज, पछिमा निकला।
धरती पलटी जाली, मैं रौंल अटला।।
नका भला जसा हला, मिकै मनजूर।
बर्यात लिबति तुम, ऐ जया जरूर॥ 
रैगोछ तुमर स्वामी, म्यकणी सहार।
जनम जनम सांथ, तुमु दगै म्यर।। 
मेरि य अरजै कणी, ध्यानम धरिया।
तुषु के पहाडि हैलि, मैं बाबु किरिया॥ 
यों बातुक स्वामी म्यर, नक निमानण।
अत पत नाम वाम, लिखि दी आपण॥

कविः-
चिठि लेख लिफाफमा, करि हैछि बन्द।
डोर वादि घुघुति का गवा मारि फन्द॥
जिया घुघुति से 
सुण ये घुघुति कैंछ, बात मेरी आज।
सबुका बींचम धरि, दिहालिये लाज॥ 
य चिठि लिजाणी त्वीले, पृथीपालै पास।
रंगीली वैराठ मजी, महला छ खास॥
पृथीपाले अलावा य के के झन दिये।
पति बरता धरमें कै, म्यर बचै दिये॥ 
य हल घुघूति त्यर, म्यर इम्त्यान।
मैंल हँण मेरि बबा, पृथीपालै बान॥ 
ज्य करली जस कली, धरि दिये पति।
सिदि बड़े जये उति स्वामी हैंला जति॥ 
बड़े दि घुघुति कणी करि बति प्यार।
अपण शिव लै कैहै, बाज तगिंयार॥ 
कविः-
उड़िगे घुघुति भाई, भौतै आसमान।
पड़ि गोय बाज बाबू, उनिका पछिन॥ 
आपणा पछिन आई, देखि बाजै कणी।
मनमा घुघुति कैछ, ऐगेछ जै जाणी॥ 
बाज जांछ आसमान, घुघुति ऐं मुण।
दैंण बौं कैध्या हैजैंछ, डवा बोटि कुण॥

पूरी ताकत लग बै, भरी है उड़ाना। 
मरमै तरनै ऐगे, भटकोटा डाना॥
आघिना घुघुती छी हो पछिना छी बाज।
पुजि गया द्वियै जांछी, पृथीपाल राज॥ 
सांचि लगन लगै जो, क्वे काम करुछ।
वीकी सहायता खुद, ईशवर कुंछ॥ 
जिया का मनम भया, सांची छी लगन।
घुघुति दगड़ बाज, कौं जैबै पछिन। 
उड़ि बे घुघुती न्हैगे, महला भितेरा।
आघिन क्य हय सुणौ, लगै बेर ध्यान।। 
भितेरा घुघुती पुजो, भ्यार रय बाज।
ठाट बाट देखी हय, बड़े अचराज॥ 
ज्य देखिछ घुघुती वां सुणि लियो तुम।
रंगीली बैराठ में छी, कत्यूरों की धूम॥ 
रज छै वां कत्यूरों का, राजा पृथीपाल।
बुड़ हैगी जांणी कतु, हई रई साल॥ 
विराजी छै पृथीपाल सिंघासन मजा।
सबुका बीचम भैरी, कत्यूरों का रजा।। 
पैरी छी रजा ज्यूलैं, पाग रेशमें की।
मखमल कोट और, सुराव लठै की॥ 
राजा पृथीपाल ज्युक भैटि रौछ दल।
बुड़ हैगई तलैकि देख्य मैरी भल।।

चलना कत्यूर हया, सैनिक उनरा।
पृथीपाल रजा ज्युका, सात छै कुवरा॥ 
धाम यो अशल, बसया द्यौ नाम साई।
सात बरसा का छिया, डूनालाड़म साई॥
शिगूवां घिगूंवां और राजा गढ़भुजिया।
एके कैबे घुघुती लैं सबै देखि लिया।। 
मनमा करण लागि, अपण विचार।
बुड़ज्यु कैं दिण चैल्ब, जिय समाचार।।
 यौं हनला पृथीपाल, कत्युरों का रजा।
उड़िये भैगई बाबु, उने कोई मजा।।
पृथीपाल का मन में सोचना 
द्यखनी कोईमा भैटि घुघुती कै जबा।
विचार करनी रज पृथीपाल तबा॥ 
सुन्हरी घुघुती रामा, कांबै ऐ हनली।
द्यखणा चहाण मैं य, कतुका छौ भली॥
 कागज द्यखनी जब गवामा बांदिया।
नाम हय पृथीपाल, भ्यार बे लेखिया॥ 
घुघुती का गला खोलि चहानी चितानी।
चिठी बांचि बति भया के कंणी निआनी॥ 
क्य धन करनू कनी, अबा कथां जानू।
बुड़यनि बखत मैं कस ब्या करनू।। 
मुखड़मा पड़ि गई, म्यरा यो चिमड़ा।
उ हई लौडिया आजि, मैं बुड़घिंगड़ा॥

क्य कैला मिहौती मैष सारे पहाड़ा का।
जियै कै निदिण चैछी यतु ढूल ध्व का॥
समझ हनल व्यीले म्यकंणी जवान।
के करंण चैंछ अबा म्यरा भगवान॥ 
जानु जबा ध्वक होंछ, जिया का दगड़ी।
मुसीबत आई गेछ, म्यपार य बड़ी॥
निजणे सोचनु नैहैं, छत्री क धरम।
विलहाड़ि रई मिकै मैं बाबु कसम।। 
जस हल ज्य हल मैं जिया का यां जानु।
अपै राणी बने बति, उनि के लिआनू।।
राजा पृथीपाल का 
सब झण हैति कनि, रज एसि बात।
भोवा राति पार मेरि, जहालि बर्यात ।। 
सजि धजि जम हया यां तुम कत्युर।
 बरयात जहालि भाई लोगों भौत दूर।।
सभा सदोंका 
कवि-
रजा का बचन सुणि सबै यो स्वचनी।
बुड़यनि बखत कै यौ, कस ब्या करनी।।
 यनुकै बरस हैगि द्वी बीसी अठार।
दिन वछै नैहै गोय, गाड़ धार पार।। 
आपसम बात चित कनी सानि सानि।
चौथि अवस्था मेजि कसि ऐ जवानी॥

सभा उठि सबैं गया, अंप अंप घर।
रात भरि रजै नीन, हैगे छू मंतर।। 
कसिका निभल प्रभु, य उलट काम।
पती धरि दिया मेरि, भगवान राम।। 
रात भरि रजज्यू की, निलागनी आँखी।
मैं हय कतिक और उहई कथां की।। 
उति हम जांण, हैयु, नैजांण पछाँड़।
पृथीपाल ज्यु कैं ऐरों, बहोत असांण।। 
ठाड़ उठी गया रजा उज्याव हणमा।
वैराठ कत्युर, सबै हैई गया जमा॥ 
ठुल ठुल सरदार, घ्वड़ौ में भैगया।
बाकी पलटना गई हिटी बति भया।।
धूल माट यस ऊड़, दिन में अन्यार।
कलाटै लै गुंजि गया, गौं गाड़ गध्यार॥ 
यस लाग पहाड़म ए गोछ भुचाल।
ब्यल बनी जांण मैरौ राजा पृथीपाल।। 
क्षत्रि बंशी च्यला छिया, लागी रैई बटा।
जियै कणी ल्यौंल कनी अपणी बैराठा।। 
सबु में सवार हैरै, सिरफ य धुना।
कतुक विघन आवा कैबटी सगुना॥ 
कती के खाहणी खानी क्वे जग कैं डयर।
रजै कें स्वैंण में शिव ऐगि राति पर॥

शिव का पृथीपाल के सपनों में आना: 
किलकि उदास हंछा, राजा पृथीपाल।
अपण भगतुक मैं, कहनु खयाल।।
तुम दगै जिय सांत जनम जनम।
प्यार भौत तुमा लिजी, उनिका मनम॥ 
जसी हल भल कोंल, मैं उसी उपाई।
यतु मजी रज ज्य की, नीन टूटि गई।।
 कवि-
ठाड़ उठा बदन में, हैई झर झर।
आपूकैं तागत चितै, ज्वानू बराबर।।
दयाल है गई भोलेनाथ भगवान ।
रजा ज्यू देख्यण हैंरी, क्य भला का बान॥ 
ज्वान देखि रजै कंणी, के कंणी निआई।
सारे बरातियों मजि खूशी फैली गई।। 
अपणां अखां पै कैके, यकीन निआय।
राता का बिचम जै य कस जादु हय॥ 
एका मुख एक चाँछ पगलु समान। 
कस जादु हैई गोय, म्यरा भगवान।।
बरातियों का राजा से कहना 
सबै झण रजै हैति, कहंण भै गया ।
क्य खाय तुमुलै कसी जवान है गया॥
पृथीपाल का 
म्यकै लकी हैई रोंछ, बड़ अचरजा।
ईश्वरै लै सुणी दिय य हमरी अरजा॥

सिरी भोलेनाथै कृपा, जैपारी है जैंछा।
विक हो कठिन काम, अउपै है जांछा।। 
सबै सब खुशी भारी, हैरई बेहाल।
कैलाश नजिका पुजा, राजा पृथीपाल।। 
दिन भोत छिय बाकीं, हणमा अन्यार।
बरयात जियै कि ऐगे, है सब खबर॥ 
शिव-
नीलकंठो जियै हैति, कनी मेरी भुला।
पृथीपालै दगै त्यकैं तब मैं ब्यहुला॥ 
तिकंणी मानण हली, पैलीय सरता।
अजमानू त्यर पति बरता क सता॥
 य ले हात पारी भुलु फूलों की य मवा।
एति बे पड़ण चैंछ ऐल रजा गवा।। 
दुशरा का गवा जव पहड़ मवै लै।
त्यर हात विक हत थमै दिण मैं लै॥ 
कवि-
फूलमवा लिछ जिया, लिने शिव नाम।
पृथीपाला चरणों में लगै बति ध्यान। 
जिया-
नारायणों धरि दिया आज मेरी पती।
फुल मव पुजि जो य पृथीपाल जती।। 
य मवा परिजो प्रभु उनरा गवमा।
बरो बाद जाल म्यर नतर धरमा।। 
कवि-
बड़ै दी जियलै बाबू मव पौन मजी।
सिदि वड़ैं पृथीपाला गवा मजी पूजी॥

पृथीपाल-
सबु हतै रज कनीं य उ निसाणी।
को टाई सकुछा भया ईश्वरै करांणी॥ 
हिटो जोल हम लोग, बेहोलि का घरा।
बर्यात एगेछ जिया, चांण लागि भ्यार।। 
द्यख ब्यौला पृथीपाल कत्यूरों का रजा।
खुशी भौत हैई गेई अपा दिला मजा।। 
जिया-
मने की मुराद आज हैगे मेरी पुरी।
यनरा लिजिया रह छिया झुरी झुरी।।
 कबि-
कन्यादाने हँणा लागि भाइयों तैयारी।
कत्यूरों की हैई उती बड़ी खातिरदारी।।
धुलिक अरघ भोंड़ गोतर का चार।
धेलि रूगै लिण लागा बामण गीदार॥
रीत व रिवाज जसी दी गड़ुबे धार।
गोठक ब्या पूर कैबे आई गया भ्यार।।
पृथीपालै घरवाली बनी, जिया राणी।
भैंटी गई भ्यार अन चव फीरों हांणी।। 
द्विय झण मन मनै खुशी हैई रया।
ब्योली ब्यल अनचवा, रिटण लैं गया।। 
एक द्विय तीन चार, पांछ फ़्यरा हया।
छटां फ्यरों मजी जिया, ठड़ी गेई भया।
 शिव-
नीलकंठी कनी माँग, क्य चहैं तिकैणी।
ज्य मांगली स्य में द्युल, मेरी भली बैणी।।


खंड काव्य "जिया राँणि" की मुद्रित प्रति pdf फॉर्मेट में Kumauni Archives पोर्टल पर उपलब्ध है
फोटो सोर्स: गूगल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ