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जिया राँणि - कुमाऊँनी लोकगाथा (भाग-४)

 कुमाऊँ की लोकप्रिय लोकगाथा जिया राँणि पर आधारित खंडकाव्य Famous folk tale of Kumaun Katyuri "Jiya Rani"


कुमाऊँनी लोकगाथा-जिया राँणि 
(रचनाकार: अम्बादत्त उपाध्याय)

कत्यूरी रानी "जिया" के सम्बन्ध में कुमाऊँ में कई जन श्रुतियाँ प्रचलित हैं 
जिनमें "जिया राँणि" के नाम से उनके बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।  
ऐतिहासिक रूप से उनके बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है 
पर इतना अवश्य है की वह कुमाऊँ की एक वीरांगना थी, 
जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने किशोर पुत्र के साथ 
कत्यूरी राज की बागडोर संभाली थी।  
उनका समय लगभग १४००-१४५० ई. के दौरान का माना जाता है, 
जिस समय भारत में तुग़लक़/सैयद/लोदी वंश का शासन रहा। 
 यहां पर हम  कत्यूरी "जिया राँणि" के जीवन पर केंद्रित खंड काव्य 
कत्यूरी "जिया राँणि" को प्रस्तुत कर रहे हैं।  
इस खंड काव्य की रचना श्री अम्बादत्त उपाध्याय जी द्वारा की गयी है 
जिनका संक्षित्प्त विवरण खंड काव्य के प्रारम्भ में दिया गया है।  
यह खंड काव्य कत्यूरी "जिया राँणि" के चरित्र के साथ ही 
कुमाऊँनी साहित्य की एक उत्तम रचना भी है।


जिया-
सुणिवे दादू की बात, के ददाज्यू म्यरा।
बैस भै फुल्यारा चैनी, बैंस मैं पढ्यारा।। 
डोली यों लिजैला मेरी, जाण हल दूर।
नीलकंठी कनी भुलू , म्यकैं मनजूर।। 
सतां फ्यर रिटणम, श्राजी ठड़ी गेछा।
ठड़ी किलै गई जिया, तिकणी क्य चैंछा।।
पछिना चे ठाड़ हैरी राजा पृथीपाल।
सामण चैहैनी मिक, बडु सुजेपाल।। 
अपण बामण जिया तिकणी दिदय। .
अठा फ्यरा रिटणमा, कमाल के दिय।।
 निउठानी जिया राणी आघिना कदम।
सैणी मैंस नना ठुला, हैई रैछी जम॥ 
जिया-
दिदिया म्यकणी कछ निसांगू महर।
रिटण अचवा मैंल, तबै अठा फ्यर।। 
सूर बीर चैछ एक, अपणा दगड़ी।
कैंद्या क्वे ऐगेई म्यपा मुसीबत बड़ी।। 
नन छिना चे करछ तुमुल खयाल।
आंखीरी बखत छा य है जाओ दयाल।। 
ना झना कया हो तुम, भला दादू म्यरा।
नीलकंठो कणीगे बहोतै फिकर।। 
शिव-
तम तब करि दिय रिसे बै मुखड़।
निसांगू महर रल जा त्यरा दगड़।।

कवि-
नवां फ्यर रिटणम, ठड़ी गेई आजी।
अपणा मनमा कैं य, आखिरी छा बाजी।।
 जिया-
म्यरा दादू एक आजि, दिदिया बचन।
तुमु कैं कहेछ मैंले, भौत परेशान।। 
शिव-
मांगि ले तिकणि जिया, ज्ये लागुंछ भल।
अपण बचन पारि, रहोंल अटल।।
दिदिय जा त्यकैणी जो, चीज मेरी पास।
मांगि ली जियले बाबू गुरू खेकदास।।
 कवि-
जिया का बचन सुणि, टस है कमर।
नीलकंठी ज्यू के आण, हैगोय चकर।।
शिव-
गुस्समा दिदनी तब, जिया कैं सराप।
य दिन बचन म्यर, निजावा खराप।। 
खेडूवा है जाली जा तू, त्यसरा दिनमा ।
त्या लिजि प्यार झन, रौ रजा मनमा।। 
तेजस लालच कभै, क्वै नानी करली।
स्वरासम हर घड़ी, दुखम रहली।।
य दिनक तोस उकैं, लागल जरूर।
मन मनै यतु कैबै, नहै गया दूर।।
 कवि-
मनखा का भेषम छी, कै उ जसी बात।
जैक भाग जनजाली, रोंह सांत सात।। 
जो बात जै हणी हली, लागी जां बहान।
अम्बा दत्त बात सुणौ, लगै बति ध्यान॥

जिय राणि भाग पारि, दुखै कीछी लेख।
सैति पाई वे सराप, दि देखन देख।। 
गुरू व महर पारि, नीलकंठी प्यार।
नजिका बुलाया बडू, फुल्यार पढयार।
शिव का खेकदास, बडू सजेपाल, निसागू महर, फुल्यार पढ्यारों से 
तुम सब झण रला, जिया राणि पास।
एक काम कहैं दियो, गुरू खेक दास।।
बजै विजेसार झित, लगावो नौमता।
धौ द्यखणी, हैली अबा, तुमरी सुरता।। 
कवि-
सबै भण रुण लागा, यों वचना सुणि।
गुरू खेकदास उठा, ढोल बजों हुणी।।
ढौले की नौमत सुणि कत्यूरोंल जबा।
जै जिया जै गुरू कनी, नाचि पड़ा सब।।
वकसीश कैंहै दिया धिंगड़ा लूकुड़ा।
कत्यूरों हैं खेकदास यस कनी सुड़ा।।
गुरू खेकदास का कत्यूरों से बचन लेना 
शान्त है जाओ तुम चलना कत्यूर।
मैं जो काम बतै घुला उकें कलापुर॥ 
नौ लाख कत्युर मेरि, मुट्ठी में रहला।
जति मैं जहावो कोंला, सबै उति जला।।
गुरू खेकदास छिया, जादु विदवान।
बैराठ जणां हैं पैली माँगी लो वचन।।

मानुल तुमरीं बात, कोंनी सबै हामा।
उज्याव हैगोय आय, ढई डनू घामा।।
कवि-
जियै कैं ब्यवै ल्याया, राजा पृथीपाल।
शिबै लै खतम कैहै, माया जन जाल॥ 
सैणी, मैस, गोरु, भैंस खेति है खतम।
भोलेनाथ भैटि गया, पण ध्यानम॥
जिया का लिजिया सारे जाल छी रचिया।
आघिन क्य हय मित, घड़ि सुणीं लिया॥
दादू क बचन लाग, बिगड़ी गे बात।
जिया का लिजिया हैगे छन दिन रात।।
वैराठ में आई जसै, तीन दिन हया।
राजा पृथीपाल उनि, हंणी रूठि गया॥
सामणी ऎगेई उध्या मुख फेरी दिनी।
के वात कोहंल कैछ, रिसाँ हुणी जानी।।
 जिया-
किले की रिसानी म्यर क्य हय कसूर।
निबलना यो मिहै क्वे बात छा जरूर।।
क्य धना करनू रामा, कथां हंणी जानू।
अपणा स्वामी ज्यू कैं मैं कसिका मनानू।। 
दिन रात रूने काटी अपण मनमा।
नैंहैंति बैराठ मजी, रहण धरमा।। 
के करन यां रैबति, दिल जई गोछा।
राजा पृथीपाल बिना एति म्यर कोंछा।।

उनर सहार छिय, रिसैगी म्यहैणी।
रूठी जाँछ मैष जब खेडू हैजैं सैणी॥
मैषै लिबै स्वरारास म, सैणी की ईज्जत।
म्यरा भाग पारि ऐ य किलै की विपत॥ 
यौ तब मिकंणी कतु, भल मान छिया।
ब्यवैं बति कैलाश बे, जब यां ल्यछिया॥
क्य कहनू कथां जानू , म्यरा भगबाना।
किलैगोय हनल दाद ज्यू क बचना।। 
रिसै गछी जैध्या मैंल मांगा खेकदास।
कैलाश हैं नसि जानू, की उनरा पास।। 
कवि-
बडू सुजेपाल जां छी गेई जिया राणी।
बिपत ऐगेछ कैंछ बहोत मिकांणी।। 
जिया-
पन्डिता ज्यू रिसै गई, म्यहैं म्यर पती।
दादू का यों नहै जानू , निंरहन एती।। 
कवि-
राणी का बचन सुणी देखि है पतड़ी।
जिया आँखों मजि लैरै, सौड़ भादों झड़ी॥
बडू सुजेपाल का जिया से 
बड़सुजेपाल कनी सुण जिया बाता।
अरजा कहनू तिहैं जोड़ी बती हाता॥
धेई हैति भ्यार बना, निउठा कदम।
अपण स्वरास रा छों ते दगड़ी हम।।
रिसैले गई रजा ज्यू बैहैरा निचना।
ब्यवै वति निछाजनी, चेली मैत पना॥

भौतै दिन मैत रैछ, लैजे मेष आँखीं।।
मैं बाबू लिजिया हैजैं, दै मजै के माखी॥ 
अपण धरम काट, विपता सुपता।
अच्छा अबा मैं करनू तीरथ बरता॥
जिया-
चैहै दियो भल जस लगना बहार।
हिंटला दगड़ा म्यरा, है जाओ तैयार॥ 
पैजै जैबे गुरू हैति कैछ एसि बाता।
ऐगेछ वैराठ मजी, म्यकणी विपता।।
यां आई हैगई गुरू मैहैण छै सात।
त्यसरा दिन बे निकै रजा ज्यू लै बात।। 
अबा पैटी गोयु सुणों मैपुरी जाँ होंणी।
दगड़ा हिटण लिजी कनू तुमु होंणी।। 
कवि-
यतू मैं ऐगया तांलै निसांगु महारा।
हात जोडि द्विनू हैती कय नमस्कारा।। 
पैजै पुछी हली बाबु कुशल मंगला।
जिया कैछ म्यरा मैतू मिकणी टोकला॥
जिया-
निलागण हैरय यां भया म्यर मन।
रिसैंगई रज मिहैं करनू क्य धन।।
तीरथों में जांण मैंल कै हैछ परण।
मेदगे हिटला म्यरा मैतू सबै झण॥
कवि-
न्हैगे जिया जां भैरैं छी कत्युरु का रजा।
हाता जोड़ि उनू हैति करिछा अरजा॥

जिया-
जांण हैयु स्वामी ज्यु मैं एति हैबे दूर।
बचि रौंल ओल आजि बैंराठा जरूर।। 
मरि गोय कथै मेरि कहै दिया गता।
नि छोड़ मैं कमै पति बरता क सता।। 
कवि-
यतु कैबे मारि डाढ़ कत्युरु राँणी लै।
जिया का उज्याणी चाय पृथींपाल ज्यु लै॥ 
अच्छा जक कैछै कनी मरिया मनै लै।
भ्यार ऐबै रूनें कय सबू हैं जियै लै।। 
जिया-
हिटा अब छोड़ि द्युल महलक सुख।
रूण लागि यतु कैबे छोपि दिय मुख।। 
कवि-
बैस भै फुल्यार हैंगी बैंस भै पढ्यार।
निसागु महर भया हैगया तैयार॥
गुरु खेकदास और वडूसुजेपाल।
जिया राणी पेटि गई सुणि लिया हाल।
बैराठ बे ड्वल ऐगया केदार।
अशनान ध्यान कय राम गंगा पार।। 
मांसी व सनण आया भिकुवा का सैण।
चौतरफी फुलि रैहै राड़ और दैंण।।
नौरड़ नौ पार केबे पैपुजा खांनमा।
बेताला का घाट ऐगि कने विसरामा॥
क्वसाँ नाव पार कैबे खैरना भुजाण।
जांक परसिद्ध हय लटूवा मसाण॥

कतुक विघन टावा कतु अशगुना।
जगों जगा ड्यर कैनी जगै हड़ा खूना।।
कैध्या ड्वल पारि आनि चौहूड़ा चमारी।
महरु भजाने रनी द्यखै बे कटारी।। 
याकि पटै जिया मैतू हई गया चूर।
बैराठ चितर शिला, बति हय दूर।। 
आजकलू राणीबाग कनी जैक नाम।
परसिद कत्युरों’क वाँ तीरथ धाम।। 
पूजि मई जिया राणीं, मैपुरि थबामा।
नानी धूनी सबै झणा, उज्याव हणमा।। 
थ्वड़ै दिन मैपुरिमा, रनै हया जबा। 
बात ऐसि जियै हैंति, गुरू कौंनी तबा।।
जिया से गुरू 
नाण हणि जये जिया, भोवा राति पार।
उमर भरिक तिकैं, चहैंछ सहार।। 
शुभ घड़ी भलि छा य, झन कये डर।
मैं तिकैं दिहनू च्यल, हणिया मन्तर।। 
तेजस्वी उ हल कल, वैराठ क राज।
सैणिक सहार मैंस, कि अपै औलाज।।
सामणी ठाड़ि कहये, पंचब शिवाई।
जिय क प भारि हय, उ दिना बै भाई।।
कबि-
तुम लोग कम कला, म्यर बिसवास।
तंतरों मंतरों ज्ञानि छिया खेकदास।।

कतु दुख झेलैं हैरै, महलू की राणी।
ईश्वरै की माया कैल, कभै नि जहांणी।। 
एक दिनै वात छा य, जिया गे नाहणी।
ढूंगमा घागर डाई, हल सुकों हणी।। 
आजि तक पथरमा, बुटों की छा छाप।
ध्यान लगै म्यरा भया, सुणों चुप चाप।। 
नाण मजी टूटी गोय, मुनवक बाल।
गरदिश ऐगे बाबू, आई गोय काल॥ 
कथै बति आन हया, बैश भै मुनिला।
कसी कसी हैंछ माई, ईश्वरै की लीला।। 
बाईसा भै घ्वड़ों मजी, हैरईं सवार।
सबै सब आई गया, तब गाड़ पार॥ 
तीस लागि रैहनली, कनी घ्वड़ों कणी।
य ग्वावमा पिलाण चैं, यनु कणी पाणी॥ 
उतारि दी बैश घ्वड़ा, अदम खावमा।
जालकी यों पाणी पीनी, केन्युल आरामा॥
बगने बगने केश, आई गोय उति।
मुनिलों का घ्वड़ा पाणी, पिण मछी जती॥ 
एके कै बै लपेटी गो, सबू खुटों पारा।
धांगि गई बैस घ्वड़ा, नि ऐसका भ्यारा॥ 
जिया राणि केशै पारी, यतु छी सगती।
खेंचा तानि कनै हैगे, घ्वड़ों दुरगती।।

तुम सब यों बातुक, यकीन कैलिया।
पहाड़ै की देबि छीउ, शिब की सैतिया॥ 
लौटि बै निआय घ्वड़ा, मुनिला स्वचनी।
फट लागि ख्वरा कियों, एति रहै जानी।। 
मुनिलों का-
पाणि पिबै ठाड़ हैई, हैगे भौते देर।
घर जाण हंणीं हंण, लागि रै अबेर॥ 
सबूं हैबे ठुल कोंछ, सुण म्यरा भाई।
गरदिश हमू कैं य, आज कसी आई॥ 
घ्वड़ों मजि जादू कै है, को दुशमणै लै।
यतु देर तक पाणी, मजी रना किलै॥ 
लौटै ल्यानू यनुकै मैं जैवति खावमा।
डूबण लागुल जब, खैचि लिया तुमा।। 
कवि-
बैस भै मुनिलों मजी, एक छीय कांण।
देखण चहांण मजी, निमु कस दांण।। 
एक आँखि कोंछ सब, सुणौ मेरी बात।
सबै जोंल खाव मजी, थामि थामि हात।। 
एक हाथ एक थामु, न्है गया खावमा।
सबै सब कंठा जसा, क्वे नैहैंति कमा। 
अदम खावम जैबे घ्वड़ों कैं हकानी।
निपलटा घ्वड़ा जब, के कणीं निआनी।। 
मुनिलों का-
क्य कवा य हई गेई, अब कां जानू ।
के अन्ताज निआंरय, का हाति मरानू।।

(अगला भाग-५)

खंड काव्य "जिया राँणि" की मुद्रित प्रति pdf फॉर्मेट में Kumauni Archives पोर्टल पर उपलब्ध है
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