
-:गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु:-
कुमाऊँनी भाषा में नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)
पात्र परिचय:-
१. पद्मा एक पैंतीस छत्तीस बर्सैक दुबय पतय शैणि२. नरैण सिंह पद्माक दुल्हौ लगभग चालीस बर्सौक चौड़ चाकौव मैंस
४. तीन चेलि रीता, नीता, सुनीता, उमर बार, दस और छः
५. गौकं पड़ौसी नरवर सिंह वीक दुल्हैण बसंती
६. जैंतु, रघुबर और बिशनी बाखयिक नानतिन
७. भागुलि बुब एक साठ-सत्तर बरसैक बुढ़ी बाल बिधौ
८. बादल सिंह हौलदारैक शैण परुलि और वीक एक च्योल रमेश और एक काखिक चेली लछिम।
भूमिका:-
भोल रत्तै धार बै बस पकड़ बेर पद्मा आपण दुल्हौ नरैण और तीनातीन चेलिन कं ल्हिबेर इलाहाबाद जाणैं। नरैण सिंह हाइकोर्ट में किलर्क छु आय जांलै आपण इजबाबनाक कारण नरैणैल आपण नानतिन गौंपनै धर राख छी। "मरण बखत आपण देइ नि छाड़ सकन हम" कून-कुनै पिछिल डेढ़ साल में छः-छः म्हैणाक अंतर में द्वियै न्है ग्यान। पौरुं वार्षिक श्राद्ध लै हैगो।आब सब ख्यात और गोरबाछ नरवर सिंह और बसंती कं सौंपबेर घरैक नरै निस्वास ल्हिबेर परदेस जांणैं। रातभर टांज-पांज करणाक कारण और पैल बखत यो डान कान छोड़ बेर जाणौक पैल मौक भौय हालांकि आपण दुल्हौ और नानतिननाक दगै जांणै पर आपण गोर बाछ, ठै,छन सबै गाव जौ उणौ और पद्माकं निस्वासाक मारी गावन बुज जौ लाग जाणौ।
मैत लै बगलाकै गौं में भौय कभ्भै मोटर में लै नि बैठि, बस डोलि में बैठ बेर सौरासैक देइन के पुजि और जब लै मैत गे आपण खुटनैलै गे। तीनातीन चेलि वीक यैं पैद भाय, न अस्पताल न नर्स ने कभै दवाय न पुड़ि। ऐस मैंस जब भ्यारैक दुनि देखौल तो अणकस्सै हुनेरै भै, आय तो बस नरैणाक मुखैल शुणि बात भाय। ऐस हौलदिली जै हैरैय पद्माकं, पेटन हौल जौ चितइणौय।
खैर रात भर काम करि बेर द्विघड़ि कं लधरी पद्मा औरि पेटक्यूड़ जा लाग्याय। रत्तै अन्यारै में उठ पाणि भरि गोरुन कं प्यार करि नै ध्वे, ठै में दि जगै, सबन कन चहा पेवा सबनैल मिलबेर सामान जब भ्यार धरौ तो पद्माक आंखनाक आंस रुकणै नि लाग राय।
तब तक नरवर सिंह, बसंती ,परूलि,भागुलि बुब लै ऐग्याय। बसंतील सबनाक कपावन पिठ्या लगाया सबै गाव मिल और फिर बसाक उणी जाग तक नरवर सिंह कुछ सामान पकड़ दगाड़ गोय।
तब तक नरवर सिंह, बसंती ,परूलि,भागुलि बुब लै ऐग्याय। बसंतील सबनाक कपावन पिठ्या लगाया सबै गाव मिल और फिर बसाक उणी जाग तक नरवर सिंह कुछ सामान पकड़ दगाड़ गोय।
-अंक एक-
स्थान रोड परनरैण - दाज्यू आपुं जाओ पै हम बैठ जूंल"
नरवर सिंह - हाय थ्वाड़ देर में न्है जूंल पै। नानतिननौक नरैणौ धियान धरिए पै, यांक चिंत झन करिए,आपण यो भाइक बिस्वास करिए पै।
नरैण - क्या दाज्यू तुमन पर पुर भरोस भौय,तुमलै आपण ध्यान धरिया, उ बेसहारा भागुलि बुबुक कं लै चांनै रैया।
नरवर सिंह - किलै नै, यो गौंक चेलिबेटि भइन,हमरि पुर जिम्मेवारी भै।
तब तक बस ऐगेयी,बस में चढ़ने बखत रीता ,नीता ,सुनीताक उत्साह देखणि लैकौक है रौय। बसाक सीटन में नानि सुनीता उछल उछल बेर बैठणैय, उकं बसाक सीट औरै गुदगुदान लागि।
फिर कंडक्टरैल जो एक अधेड़ उमरौक मैस छी कौ - "अरे चेली तस नि कर हो लफाइयली"
पद्मा कं बैठण मैलै संकोच जौ भौं तो नरैणैल हाथ पकड़बेर आपण बगल में बैठा और रीता नीताअघिलैक सीट में बैठी और सुनीता पद्माक काखि में। जब गाड़ि घड़घड़ कर चलण बैठी तो पद्मा और नानतिन डरण जा लागिं पैल्ली तो सबनैल डराक मारी आंख बुज ल्हिं।
यो बात सन् सत्तरैक छु। उ टैम हमार पहाड़ाक गौं काफि भल आबाद छि पर मांठूमांठ गौंनैक आबादी शहरों हुं ऊंण लाग गेछी।
अंक दो-
स्थान बसाक भितेरकुछ देर में रात बै जागि रैयी पद्मा कं नींन एगेय। ठुलि रीता और नीता भ्यार चाणांय और नरैण आपण निकांस्सि चेलि सुनीता कं पकड़ बैठौ और आपण रीता नीता कं बस है भ्यार हाथ निकाउण हुं मना कर बेर उनन थैं भ्यार नि देखण हुं कुणौय पर उनन कं चल्त गाड़ि बै भ्यार देखण में मज ऊंण लागि, थ्वाड़ देर में एक चहाक दोकान में बस रुकि तो नरैणैल चहा और गर्म पकौड़ि लै बेर आपण घरवाय और चेलिन कं दिं, सब लपक बेर खाण लाग।
नरैण - कस लागौ?
रीता - औरै भल,बाबू कैसी बणां न्हौल?
पद्मा - हाय जैसी मैं पकौड़ि बणूनू, वी छन बस जरा बेशण में और क्याप क्याप हाल राखौ।
नीता - तु इतु खुश्याणि नि हालनी, भौत्तै झौई छु, मलिबै गरम चहा सू सू---
तब तक सुनीता लै उठ गे, आंख मिनन मिन्नै बैठ गे और मांगण लागि,
सुनीता - मैंलै, बाबू
पद्मा - नै इजा औरै झौईपट्ट छु पोथा, नरैण थैं कूण लागि, के यैक खाणि लै छु?
नरैण - पुछनू हां
नरैणैल पत्त करौ तो बस कुछ बिलैंत मिठ्ठै मिली जो सबनैल पड़्क्क-पड्क्क खैंयीं।
फिर कंडक्टरैल सीटी बजै तो नरैणैल सबन थैं भ्यार जै बेर ---
सब भ्यार बै हल्क है बेर बस में बैठ ग्याय।
फिर नरैणैल आपण घरवाय और तीना-तीन चेलि कं एक एक गोलि ऐवोमीनै'क दे, किलै कि अघिलाक मोड़न में उखाल हुणैक संभावना छि। गोलिक कारण सब सित ग्याय बस नरैण टकटक उठिए रौ। नरैण कं यो बाटौक भली कै पत्त भौय।
अंक तीन-
स्थान काठगोदामसबन कं उठै नरैणलैल भ्यार उतारौ पद्मा थै कौ - "तु नानतिन और यो सूटकेश और झोल पकड़, कैं और झन जै, यैं ठाड़ हैरै"।
फिर एक कुल्ली कं सामान दिबेर सब जणि रेलवे स्टेशन पुज ग्याय। वांक चहल पहल देखि पद्मा रणि गे।
फिर वैकै एक ठ्याल बै गरम दाल भात रोट साग ल्हिबेर सब नैल एक बैंच में बैठ बेर खाण खाय जो पद्मा कं भौत भल लागौ, पैल बेर भ्यार खाणौक मौक मिलि भौय, बिना आपण हाथ खुट फतोड़ियै।
आब जब नानतिनन कं गरम रसगुल्ल खाण हुं मिलीं तो सब मानो आसमान पुज ग्याय नानि सुनीता कूण लागि- "बाबू आब बै मैं रोज योयी खूंल हां"
नरैण कं हंसि ऐगे - "रोज ने पर कभै कभै खालि हां"
सुनीताल आपण बाबू कं चुमि चाटि बेर औरि कर दी तो रीता और नीता लै नरैणाक खुटन कं पकड़ि प्यार करण लाग।
पद्मा सोचणै - "कतु तरसी भाय आपण बाबुक प्यार हुं आग लागौ मोह माया, नरैण लै आपण चेलिन कं अत्ति लाड़ करणी मैस भौय।
अंक चार-
रेलाक प्लेटफार्म में
नरैणैल जोरैक आवाज करते ट्रेन कं प्लेटफार्म पर रुकते देखौ और बता "यमै बैठ बेर जूंल हां आपण इजौक हाथ पकड़ि रैया"पद्माक मन घबरयी जौ भौय पर नरैण थैं वील के नि कौय। चुप्प झोल सूटकेस और चेलिनौक हाथ थामि नरैणौक अघिल आदेशौक इंतजार में ठाड़ि भै।
क्रमशः अघिल भाग-०२ ->>
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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