
-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-
कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)
->गतांक भाग-०२ बै अघिल->
अंक छ-
त्रिवेणी एक्सप्रैस रात साढ़ ग्यार बाजि बाद स्टेशन पुजी। तीना-तीन नानतिन सित गोछी। उ तौ भल हौ गोपाल प्रसादौक जैक मददैल सामान और शिण पड़ी तीनों नानतिन जीप में पुजैयी जै सकी। पद्माल तौ कभै भ्याराक मैंस देखिए नि भै गोपालाक सामुणि लै ठाड़ हैयी में शरमाक मारी औरै सिकुड़ि जै गे। बस के ढंगैल एक झोल और सुनीता कं पकड़ हिटण लागी।
जब गोपालैल - "भाभीजी नमस्ते" कौ तो वील के जवाबै निदी। नरैण समझ गो पद्माक शरमाण कं, और वील कौ पद्मा थैं - "ये हमारे मित्र गोपालप्रसादजी है बड़े साहब की जीप चलाते हैं और बड़े साहब ने ही मेहरबानी करके इन्हें भेजा है।" जाणि बुझि बेर जोरैल हिंदी में कौ। पद्मा घुंघुट में हूं हां कुनि रै।
करीब आदू घंट में कैंटन धूमनगंज न्याय मार्गाक पास बणी सरकारि क्वाटरन में बै एक घराक सामुणि जीप रुकि और वां तालै पड़ौश्यणिल पुर घर ठीक ठाक करि भौय। नरैण उनन कं घरैक चाबि दि गोछी। द्वि कम्रनौक मकान भौय आंगण, रिश्या और अघिल कै बरंड मुणी खालि जाग, गोसल, शौचालय सबै भौय। रिश्या में नल, एक भ्यार नल, एक गोसल में नल भौय। द्वियै कमरन में लाइट, पंख सब इंतजाम देख बेर पद्मा कं औरि संतोष जौ भौ पर उतु खुल फरांग जाग में रुणि पद्मा कं कुछ बुज लागि जौ लै लागौ।
अंक सात-
रत्तै अल्बलानै पद्मा उठी तो उकं लागौ कि आय जांलै सितियै रेगे। वील तालै देखौ वीक दुल्हौ पड़ौसौक एक नान नानतिन कं काखि में उठै प्यार करणौ। तीर ऐबेर वील देखौ तो क्वे नान च्योल छी जैक नाम तारण छि,
पद्मा- "को छु यो?
नरैण- "बगल में तेग सिंह सरदारौक च्योल छु रोज रत्तै म्यार पास ऐ जांछी, आज भौत दिन बाद मकं देखौ तो खुस्सि हुनै ऐगो"
पद्मा- तुमन कं लै च्याल भल लागनी नै?
नरैण- "मकं सब नानतिन भल लागनी, यमें च्योल चलिक के बातै नि भै, रोज औफिस जांण है पैल्ली और ब्याव हुं मैं यां सबै नानतिनन दगै पांच दस मिनट बितूंछी"
पद्मा - हमार चेलिन कं लै खेलणी दगड़ू मिल जाल यां।
नरैण - चल ऐल नानतिन सित रैयीं तब तक हम रिश्या और ठै ठीक कर ल्हिनू। तु झट्ट नैध्वे ल्हे, नानतिन उठा तनन कं जरा भल भल जा लुकुड़ पैरै दिये, मैल गोसल में सापुण, तेल क्रीम कांइल सब धर राखौ।
मैं तब तक बजार बै के खांणौक सामान लिऊंल।
जब तक नरैणै यो सब कुणौछी तालैं बगल में तेगसिंह सरदारैक मसतारि एक थाय में परौठ, दै और टिमाटरैक पकयी खट्टै, खीर ल्हिबेर एगे।
तेगसिगैकि मै - आहो नरैण कित्थे हैगी त्वाडी बोट्टि? लै गरम गरम खाओ, ओरे ये कुड़ियों दी नींद पूरी नहीं हैगी सुते पड़े है कोई ना जब उठैंगी खवा देना"
नरैण - "पैरी पौना, बेब्बे इनकी मां नहाने गयी है। आप बैठो।"
बेब्बो - "ना जी भोत काम पड़ा है फेर आवांगी"
"उठो बच्चों ओ मेरि लाड़िलौ चठौ हो, देखौ देखौ हम कां ऐ गयां?" सुनीता कं गुदगुदाते हुए नरैणैल कौ
"पुज गयां बाबू" रीता उठ बेर बैठ गे और नीता कं उठूण लागि।
नरैण - "चलौ आब दांत मांजौ,नांऔ ध्वेऔ, चपैण खाऔ फिर स्कूल जांण छु।"
तब तक पड़ौसौक तारण भितेर ऐ गोय।
नरैण - "ये देखो कौन आया तारण भय्या आ गया।"
रीता - बाबू को छु तौ?
नरैण - "बगल में तेगसिंह अंकल का बेटा, तुम्हारा छोटा भाई।
अंक आठ-
नरैण - स्कूल में नाम लिखे ऐगेयूं सबनौक। भोल बै एक मास्ट्राऐण आलि ब्याल छः बै सात बाजि तक पढ़ालि, उकं चहा और बिस्कुट दि दिए, मैं बजार बै लैबेर डाबन धर द्यूंल। अरे रीता नीता सुनीता शुणौ भोल बै एक टीचर जी आलिन, उनन कं उण और जांण बखत नमस्ते कैया हाथ जोड़बेर। बगल में तेगसिंह अंकल आंटी और उनरि आम् कं रोज एक बार नमस्ते कूणैक आदत डालों। उसी लै सबै तुमन है जो लै ठुल मिलनी उनौर आदर करण चैन भौय।"
पद्मा - कतु डबल लाग गेयी?
नरैण - "तु परेशान नि हौ, ऐल खर्च होलै सही बस पढ़न में मन लगूणी होला तो के बात नै। यो झ्वाल में हर मसाल, हर दाल तेल घ्यु छु और दुसार झ्वाल में सब साग और फल छन। खत्म हुण है पैल्ली मकं बतै दिए। पर क्वेसाग फल सड़ै जन। यो गरम जाग छु यां जल्दी साग खराब है जां, मांठू-मांठ समझ जाली।"
रत्तै सात बाजि नानतिननैक बस आलि उ सड़क पार बै बैठै दिण होल। और ठीक तीन बाजि नानतिन हमार घराक सामुणि बस में वापस आल। रत्तैदूद पिबेर जाल और यो नय टिफिनाक डाबन में रोट साग या परौठ या पुरि बणै बेर धर दिए। खाण घर ऐ बेर खाल। योयी सिस्टम सब करनी तुलै करिए। रत्तै सबन कं जल्दी उठै दिए।"
पास पड़ौस में मेल मिलापैल रूण पड़ूं,बखत पर सब एक दुसराक काम उनी,कम बलैया पर भल बलैया। आज ब्याल हुं मैं तुकं सबन थैं मिलै द्यूंल, बस चार पांच घर छन, उनन दगै बोलचालैक जर्वत पड़ैल। आब मैं सबनाक कौपि किताबन में जिल्द चढ़ै, नाम लेखै तंग्यार कर दिनु। चल रीता तु सिखल्हे फिर आपण बैणिन कं सिखै बेर नंबर एक बणि जा।
क्रमशः अघिल भाग-०४->>
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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