'

गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-०४)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni Language

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-०३ बै अघिल->

अंक नौ-

पद्मा जो कब्भै नरैण दगाड़ लगातार एक म्हैण लै नि रैन्हैल, पैल बेर आब ब्याक चौद बरस मांथ दगड़ै रूणै तो भितेर भितेर औरि डरनेर लैभै। हालांकि नरैणौक स्वभाव भौत्तै समझदारी वाल भौय, उ भलीकै समझनेर भौय कि उस वातावरण बै यो सिद्द इंताण ठुल जाग इतु किस्माक अलग अलग जागाक मैसन दगै रूण हुं ऐरै। 

अतः वील भली कै पद्माकं समझा कि कै दगै बात करण में डरिये झन और न आपण घरैकि क्वे बात सबनकं बतूण जरूरी छु, जब तक क्वे खतरैकि बात निहो।  क्वे शंका हुण पर बगलाक सरदारैकि मै, जथैं सब लोग बेब्बे कुनन उकं बतै सकछै।

अंक दस-

नरैण - आज छुट्टी छु हिटो आज तुमन कं यांकं नजदीकैक बजार दिखै दिनु और द्रौपदी घाट, बलुआ घाट दिखै ल्यूनू।
पद्मा - घर में सब छनै छु, भ्यार जैबेर डबलै खर्च हुनेर भ्या, फिर कभै देख ल्यून, रूण दियौ।
नरैण - तुलै गजब छै, के नि खरिदुंल पर जब तक भ्यार नि जाली, देखली शुणली नै, तो यो शहर कं कैसी समझली! देख संभालण त्वीलै छु।  म्यार तो भ्याराक टूर लै पड़नै छः कभै चार दिन कभै एक हफ्त लै, तब कैसी करली भ्यारौक काम?
पद्मा - लुकुड़ लै बदलूं?
नरैण - होय पै, घराक लुकुड़न में ठीक नि रौल, आपण और नानतिनाक लै।
पद्मा - चलौ सब भितेराक कम्र में।
नरैण - जो लुकुड़ बदल्ला उकं रीता बेटा तह कर बेर धरिए हां।  यां ल्या मैं सिखूंल तह कैसी करनी।
पद्मा - ततु बुद्धु न्हातूं मैं, सब टांज पांज करण, चीज बस्तनैक संभाल मैं जाणु।
नरैण - होय होय ठीक छु।  तौ रीता और नीता कं लै सिखै दिये पै।  एक प्रमोशन है जालौ तौ एक महरि लगै दिन्यूं भनपान और झाड़ पोंछ करण हुं।
पद्मा - किलै नै,गौंपन उतु बुत धाणि करि भै यांक काम लै के काम भयो।  मकं के निचैन, तुम बचि रैयी चैंछा, म्यार नानतिन बचि रैयी चैनी और के नि चैन।
नरैण - और च्योल नि चैनौ तुकं, रोज च्योल च्योल कुंछै।
पद्मा - जब च्योल चेलि बरोबर छन तो बस योयी भौत छन।
नरैण - अरे वाह मेरि धनी तुतौ आब भौत्तै समझदार है गेछै।  चल पै तुकं आज यांक चटपटान चांट खऊंनू, तुलै के याद करली।
रीता - हिटौ बाबू, हम तंग्यार छां।
नरैण - देख जब कभै तुकं भ्यार जांण पड़ तो सब द्वार माव खिड़की भली कै बंद करण भाय, भ्याराक माव में ताल लगै बेर चाबिआपण झोल पर्स में भलीकै याद करबेर धरण भौय।
आज यो सब त्वी करिए, यो सिखूणाक लिजि लै मैं तुमन कं भ्यार लिजाणयुं।
रीता तुलै सिखले चेली, काम आल।"
रीता - होय बाबू
नीता - मैंलै सिखुंल बाबू
नरैण - होय च्यला,आपण इजैक मदद करिया, पढ़न लेखण में मन लगाला तो सब तुमन कं भल मां नाल।
सुनीता - भागुलि आम् लै?
सब हसंण लाग, किलैकि भागुलि बुब नानतिनन कं देख मुणी में रिशै जाणी मैस भै।
नरैण सबन कं द्रौपदी घाट बलुआ घाट दिखे पासैक एक नानि बजार दिखै एक चांटाक ठ्याल तैं ठाड़ भौं।
नरैण - भइया, सबको एक एक प्लेट गोलगप्पे, बस इस बच्ची को नहीं।
सुनीता - मैंलै बाबू मैलै।
नरैण - तु म्यार दगै खाली।
नरैण - देखौ सब लोग पैल्ली मकं खाते देखिया फिर उसिकै खैया। यो देखौ पुर दगड़ै मुखाक भितेर।
पद्मा रीता और नीता कं भौत्तै भल लागी पर सुनीता कं खाल्लि सुक पुड़ि जै दे।
नरैण - अब एक एक प्लेट आलू की टिक्की और इस बच्ची को टिक्की मीठा दही डालके।
सबनैल खाय, कब्भै यौस खाइयै नि मौत, पद्मा कं भल तौ लाग पर उ सोचणै पत्त नै कतु डबल दिण पड़ाव!
नरैण - अब एक प्लेट दही बताशे।
ठ्योल वाल- लीजिए भय्या
नरैण - आब सब एक एक उठाओ यमैं बै।
जब सबनैल दै भरी गोल गप्प खैंयी तो सबनाक मुखनैकि रौनकी देखण लैकैकि छि।
नरैण - और खांछां मैं तो आब दै बाड़ खूंल, तुलै खाली पद्मा या सोचणैछै कि कतु डबल है ग्यान।
पद्मा - तुमार डबल भाय, जेकरछा खवाला तो खै ल्ह्यूंलपर पेट डम्म है गो।
नरैण - यांबै लै हिट बेर जूंल, घर जै बेर तुकों खाण बणूणैक जर्वत न्हा।
भय्या एक प्लेट दही बड़े बना दो।
फिर सबनैल उसमें बै दैबाड़ लै खैयीं, सिर्फ सुनीता भलीकै नि खै सकि।  तो पद्मा कूण लागि तु के खाली बेटा, मैं बाबू उ गोल गोल मिठ्ठ वाल जो उदिन खाछी।
नरैण - अरे रसगुल्ल कुणै तौ।

क्रमशः अघिल भाग-०५->> 

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

अगर आप कुमाउँनी भाषा के प्रेमी हैं तो अरुण प्रभा पंत के यु-ट्यूब चैनल को सब्सक्राईब करें

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ