
-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-
कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)
->गतांक भाग-५ बै अघिल->
अंक पंद्रह-
रत्तै ब्यांणौक टैम हल्की हाव चलणै और पद्मा तुलेसिक आरतीकरते हुए रत्तै नै ध्वे बेर ऊणै, आरतीक उज्याव वीक मुखन पड़नौय और वीक लाल ठुल्ली बिंदी और धोतिक आंचलैल ढकी झुकी खोर उकं अद्भुत अलौकिक सौंदर्य प्रदान करणौय। कार्तिकौक म्हैण, पद्माक तुयेसि औरै फल रै, खूब भलि हैरै और तुलेसिक गम्लाक चारों ओर बसंधार, लहरिया ऐपण औरै छाज राय गम्लाक तीर एक गोल उच्च मांटौक मिनार जै आड़ बणै, दिजगूणी लै बणै राखपद्माल। सदा कार्तिकाक म्हैण वील ऐसै करि भौय।
आज लै जब पद्मा - "तुलसा महारानी नमो नमो, हर की पटरानी नमो नमो पुजैक घंटी दगै गैण लागि तो तालै बगलैक एक पड़ौश्याणि सुमित्रा भैर ऐगे और चुप्पचाप उकं देखण लागि। पद्मा कं के पत्तै नि चल वील पुर विधि-विधानैल आरती करि तुलसी कं प्रणाम करि भितेर ऐगे।
अंक सोलह-
नरैणैल औफिस बै ऐबेर साइकिल ठाड़कर दिवाल में लागि लुऔक छल्ल दगै ताल लगै चेनैल बांदीऔर रीता रीता कुनै भितेर आ।
नीता - बाबू तुम रोज रीता रीता कूनकुनै ऊंछा भोल बै नीता ,सुनीता कै बेर भितेर ऐया,नंतर तुमरी दगै कुट्टी।
नरैण - तौ 'कुट्टी'के भौय?
नीता - 'कुट्टी'माने अबोला,झकौड़,यां सब ऐसै कुनन।
नरैण - और के के सिखौ त्वील चेला?
सुनीता -'रिंगारिंगारोजेज', 'इकली वीकली, सैवैन टाइमस, सब एगो मकं।
नीता - बाबू यो दिनमान भर खेलणै में रैं यहूं रसगुल्ल झन लैया हां, मैं तो छटपटान चाट खूंल।
पद्मा - (नरैण कं पाणि देते हुए) बाबू कं न पाणि पुछ न बाबुक झोल पकड़ बस खांणै कि बात।
नरैण - रीता कांछु?
पद्मा - वीक भोल क्याप प्रोग्राम छु वीकी तंग्यारी करणै भीतेराक कम्र में। यांक स्कूलन में क्याप क्याप करूनी और पढ़ाई लै करूनी कि नै जरा पत्त करिया धैं।
नरैण - के करणै रीता?
नीता - बाबू उ भोल प्रार्थना में पेड़पौंधनाक विषय में भाषण दिनेर छु वी याद करबेर ऐनाक सामुणि अभ्यास करणै।
नरैण - अरे वाह चेली।
सुनीता - बाबू यो छंजर हुं म्योर नाच छु। अज्यान, आपण लाल धोतिक इजैल महूं घाघौर बणूणै, दिखा इजा बाबू कं।
पद्मा - के नै ऐसिकै खालि बैठी बैठी मैल कौ यहुं घाघौर बणै दिनू नंतर बजार बै ल्यूण पड़ौल।
नरैण - अघिल म्हैण मैं एक सिलाइक मशीन खरिद ल्ह्यूंल। तब जल्दी है जाल सब सिणाय।
पद्मा - तुमन कं तो डबल खर्च करणौक रफत छु।
नरैण - किलै सिलाइक मशीन तो कामैक चीज भै। भोल हुं यो नानतिन लै सिखाल। बल्कि त्योर मैं एक सिलाइक स्कूल में नाम लेखै दिनू एक डेढ़ घंट सिलाय सिख लिए,इत्ति कं छु,'ऊषा सिलाई कढ़ाई केंद्र' मैंल एक जाग बोर्ड लागि देखौ।
पद्मा - सब के कौल, मकं सरम लागैं
नरैण - के बातैक सरम, क्वे इलम सिखण कभै गलत भयो। मैं सच्चि कुणयूं।
>क्रमशः अघिल भाग-७->>
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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