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गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-०५)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)


->गतांक भाग-४ बै अघिल->

अंक ग्यारह-

घर ऐ बेर नरैणैल रीताकं कुछ काम सौंपी।  कक्षा पांच में गणित, हिन्दी और सुंदर हस्तलेख हुणा कारण प्रवेष तो मिल गो पर अंग्रेजी में उकं भौत मिहनत करण पड़ैलि, ऐस नरैण समझणौछी।  बाकि नीता तीन में और सुनीता एक में मुश्किलैल  दाखिल है सकीं।  पहाड़ैक पढ़ाय आब पत्त नै, एक तो चेलिन कं वांक मैस नियमित स्कूल नि भेजन।

नरैण - रीता यां आ बेटा, देख बेटा अल्लै बै मिहनत करली तैं जै बणन चाली ते बण सकली।  एक तो कुछ कुछ कामन में आपण इजैक मदद लै करिए और जब तु पढ़न बैठलीतो आपण बैणिन कं लै पढ़न हुं बैठैए और उनरि लै मदद करिए तु इनैर दिद भैयी।  अरे नीता और सुनीता तुम सब आपण रीता दिदिक कयी मानिया हां।  चलौ आब सित जाऔ, भोल बै रत्तै उठण छु, स्कूल जाण छु।

पद्मा - देखौ मैल अल्लै बै इनार लुकुड़ सब एकबटै बेर धर हालीं।  आब इनार बस्त लै लगै दिनू।
नरैण - नै नै तु नि लगा तौ आफि लगाल तबै तौ सिखाल।   चलौ नानतिनौ यां आऔ और आपण आपण बस्त लगाओ।  तु कुछ काम इनन कं लै सौंप तबै तौ सिखाल और जिम्मेदारी उठै सकाल।  अच्छा आज बै रोज मैं नोट कर राखुंल को कतु भली कै रूणौ और कैक सबन है जियादे नंबर उणयी।  उकं वीक मनपसंद चीज खाण हुं मिलैलि।
सुनीता - बाबू मैं रसगुल्ल खूंल हां।
नरैण - पैल्ली सब काम फिर इनाम

अंक बारह-

रात कं पद्मा अचकी गे, कयी बखत, कैं सितियै रै गेयी तौ, उसी नरैणैल अलार्म लगै राखछी पर पद्मा कं बतै नि राखछी।  
 खैर पद्मा अन्यारै उठि गे और वील तालै नरैणाक उठण तक सब काम पुरकर परौठ और आल बैगणौक सुख साग भान माशि, द्याप्त नवै धोवै दि जगै आपण लुकुड़ ध्वे फिट्ट हैगे तो नरैणैल कौ ".....हाय सब हैगो"
नरैणैल कौ, "इतु मिहनतैक जर्वत न्हां,भागी बिमार हैजाली।"
पद्मा - यहै लै अन्यार में उठ, सब कर राखौ यां तो सब आराम छु योतो म्योर चुटकी काम भौय।
उदिन रत्तै नरैण लै उनार दगै बस में बैठ बेर सब नानतिनन कं उनार क्लास और उनैरि टीचर कं उनन कं सौंप बेर फिर घर आ।
तब तक पद्माल पुर घर चमकैं दे।  और दाल भात पके बेर भ्यार खालि जाग कं एक कुटवैल खोदणै।
नरैण - तौ कुटौव?
पद्मा - घर बै धर लैयूं, हर्याल ब्यौण हुं पर यो खालि जाग में कुछ फूलाक पेड़ और पछिल खालि जाग में साग पात लगूंल, बाछा लाइक बि, मेथि, पालंग, तोर्यां, लौकि, गदु, टिमाटर बजार बै को खरिदुं, देखिया चार दिनैक मिहनत में सब ठीक कर सकूं, उतु इजौर खनि भौय।  पछिल जल्लै शिमार छु वहां मैल पोदिनाक जाड़ लगै हालि बेलि, आब्बै सब घरै में एक टैमौक साग तो निकाल सकनूं। 
नरैण - अरे तुतौ साक्षात लछिम भयी म्यार। तु ऐस कर, मैं एक दिनांक लिजि एक मजदूर लगै जमीन फौड़ैल ठीक करै दिनु, फिर तु जे करली आफि करिये,आज शुक्रवार छु भोल दुहौर छंजरैकि छुट्टी छु, भोल एक मजदूर लै बेर सब काम है जाल जरा पछिनैक बाड़ लै ठीक करवै ल्यूंल।

अंक तेरह-

कुछ म्हैण बाद
(इस भाग में कुछ नया पात्र जैसी बीजी, संतोष, गंगा, सुमित्रा आदि पड़ौसी लै ऐ ग्यान।)

छाय-छरपट फुर्तिल पद्मा सबनाक बीच "एकन बीरौक जौ बालौड़" एकदम अलगै भै, सब कुनेर भाय-
बीजी--"ऐ देखो ये नरैण की पहाड़न को जब देखो तब कुछ न कुछ करदी रैंदी।"
"हां बीजी हरदम काम काम करती रहती ही दिखती है। पता नहीं हमारी आंख खुलने से पैले ही सब काम पूरा कर पूजा की घंटी सुनाई दे जाती है", संतोष कहने लगी।
गंगाबोली "कभी बगीचा देखा किन्ने फूल हरियाली, पिछ्छों भी साग-सब्जी, धनिया, पुदीना न जाने क्या क्या लगा रखा है पूरे दिन लगी रहती है।"
सुमित्रा - "हरदम चुप, पर मुस्कुराती रहती है इसके घर जाओ तो चा नाश्ता भी कराती है।"
 

अंक चौदह-

आज नानतिनौक परीक्षा परिणाम उनेर वाल छी।
आज रीता छः में नीता चार में और सुनीता दुसौर कक्षा में न्हैं जाल, सबै नानतिनन और पद्मा में बहुत शहरी पन आब देखीण लाग खोजी।  पर आय लै एक संकोच एक झिझक और आपण घरैपन काम में लागीरुणैक आदत उनन में छनै छी।  एक किस्मैल यो आदताक भल परिणाम लै भाय पर कुछ पड़ौसी पद्मा कं घमंडी लै समझण लाग।

एक बार पड़ौसाक रामानंद बर्माक ठुल चेलिक ब्या ठैरी गोय तो सबै पड़ौसिनैल मिलबेर डबल जाम करि बेर क्वे ठुल चीज दिणौक मन बणा तो सबनैक राय ली गेय तो पद्माल कौ कि पैल्ली तो यो मालूम करण चैं कि के के जर्वत छु वी सामान हम दिद्यूल।  

ब्या में बर्माक दुल्हैणि सुमित्राल पद्मा थै उसै डिजाइन देई में बणूणाक लिजि कौ जो वील महालक्ष्मीक (दिवालि) दिन आपण देई में बणै राखछी - अर्थात कुमाऊनी ऐपण जो गेरुल लिप और चावलाक बिस्वारैल बणनी।   फिर तो पद्मा जकं मशिणा ऐपण दिण उनेर भौय लाग गे ऐपण दिण में, सब चाइचाइय्यै रै ग्याय।  अब माठूमांठ सबै जाण ग्याय कि यो नरैणैक घरवाय पद्मा एक मेहनती सबनाक काम उणी भलि पड़ौश्याण छु।

बीजी - ओऐ पद्मा कित्थे हैगी?
पद्मा - जी बीजी मैं जरा बनैन बुण रही थी।
बीजी - तुस्सी जानदे हो?  आहो फेर तौ मैं त्वादा नु क्रोशिया भी सिखा दुंगी।  ऊन और धागे दोनों नाल बणा सकतेहो, मैं तौ लैस, थालपोश, मेजपोश सभी बणाणा जानदी, साड्डी नू(ब्वारि) और कुड़ि(बेटी) सभी बनाते हैंगे।
पद्मा - बहुत पहले गांव में सीखा था मैंने अब सार (आदत) नहीं रही।  मेरे पास है नहीं करोसिया।
बीजी - कोई नहीं साडे नाल हैगा मैं देंगी तुस्सी।
पद्मा - बैठो आप मैं चाय बनाती हूं और आपको एक अपना बनाया च्यूड़ा खिलाती हूं।
फिर पद्माल अखरोट मिलयी मिठ च्यूड़ और चहा पेवा और पे।

क्रमशः अघिल भाग-६->> 

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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