
-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-
कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)
>-गतांक भाग-०६ बै अघिल->
अंक सत्रह (सत्र)-
पड़ौशैकि बीजी भितेर ऊणै जो साठेक बर्सैक बुढ़ि शैणि छु, पद्मा तालै ऐपण दिण में लागरै-
बीजी - ओये पद्मा तूतौआपणी सास की बड़ी दुलारी रही होगी।
पद्मा - उन्हीं से सीखा है।
पर मनै मन सोचणै - के कुछीं कतु गवागाव कतु झांकौड़ खैच राखौ सासुल तब जै बेर सब ऐपण याद भैयीं, उसी सिध धौड़ गाणन तो इजैल सिखा, पर एकाद बार हाथन मारों लै कि "जब जांलै धौड़ सिध हालण नि आल तो अघिल कैसी सिखली! सम विसम संख्या में बिस्वाराक त्वाप हालि फिर मिलै बेर डिजाइन बणूण और लहरिया ऐपण चौखि हालण सब सासुलै सिखा। उभत नक लागछीपर ऐल समझ उणौ कि यो सबनौक के महत्त्व छु। मनै मन पद्माल सोचौ फिर बीजी तैं कूण लागि-
पद्मा - सब इनकी दादी का सिखाया हुआ है खाना बनाना भी और यह सब भी।
बीजी - तुस्सी ओन्नौ दी कम से कम अच्छे से याद तो करदी हो बस ये ही भौत हैगा। रब दि मेहर है।
पद्मा -आपलोग भगवान को 'रब' कैते हो?
बीजी - आहो
पद्मा - बस यह पूरा कर लूं फिर चाय बनाती हूं।
बीजी - ओये न न पुत्तर मैं ऐस करके आई सी कि कल साड्डे तारण दा जन्मदिन हैगा तुम सब लोग कल रात के खाण वास्ते गुरूद्वारा के बगल वाले हाल विच आ जाना वहीं खाणा पीना कराएंगे। सुबे तो गुरद्वारे विच पाठ और अरदास होएगी फेर कड़ा परसाद पावैंगे। अब मैं जाके सब कोल बोल के आवांगी।
पद्मा - जी जरूर
अंक अठ्ठारह-
नरैण ब्याल हुं मुणी देर में आ। नरैण कं जरा लै देर भी तो पद्मा आयलै घबरै जैं। तालै नरैणैक साइकिलैकि टनटन शुणी गे। नरैण हाथ में एक दफ्तीक ठुल्लो डाब ल्हिबेर आ तो पद्माल पुछौ तौ के छु?
नरैण - तौ बगलवालनौक च्योलौक जनमबार छु नै भोल वीकै लिजि लुकुड़ लै रैयूं।
सबनैल देखौ तो सुनीता कूण लागी - बाबू इमें तो सुनाक बटन छन भौत्तै अकर हुनौल यो।
सब हसंण लागी तो सुनीता समझ नि सकि कि यौं सब कै हसंणयीं!
पद्मा डबल खर्च करण में दुखी हुणी शैण भै पर वील के नि कौय। फिर नरैणैल रीताकं बता कि क्वे उपहार कैसी ऱगिंल-चंगिल कागज में पैक करनी और यो कागजौक टुकड़ में पैल्ली जकं दिनी वीक नाम फिर जो दिं वीक नाम लेखनी, सिख ल्हियो सब।
पद्मा - यां शहरन में क्याप्प क्याप्प रेवाज छन हमौर पहाड़ में बस कपावन पिठ्या लगाय और हाथन धर दी जै दिण भौय।
नरैण - यो सब लै सिख लियो, 'जैसा देस वैसा भेस'
रीता - बाबू 'देस' नै देश, 'भेस' नै वेश।
नरैण - शूणनै छै आब यो नानतिन हमन कं सही ग़लत बतूणी है ग्यान।
नरैणैल लाड़ में रीता ख्वारन एक टीप जै मारी फिर पद्माकं देख हसंण लागौ।
पद्मा - अब भोल ऐपण पुर करुल समझणौ छी पर भोल तो वां टैम लागौल, दिन में जनमबाराक गीद गैण हुं ऐये लै कै जैरै बीजीक ब्वारि। अल्लै रात तक पुर ऐपण कर ल्हिनु। सुप में लै दिण छन ऐपण फिर दौड़पौ (दोहरे) ऐपण लै दिण बार। पौरूं भुइयां गाड़ुन "आओ लछमी बैठो नरैणा" करणै भौय। ठुल एकादशि छुनै बर्त लै करुंल, तुम लै करला?
नरैण - तु जे कौली वी करूंल भागी।
पद्मा हसंण लागी।
सुनीता--के पाकौल उदिन इजा? पद्मा--केनै आल् और उगलौक छोलि रोट और तालमखानैकि खीर।
नरैण--सब नानतिनाक पास ठीक-ठाक लुकुड़ छन देखले नंतर लिउनु।
पद्मा-- सब छु,तुम फिकर नि करौ।
अंक उन्नीस-
दिन में पद्माल एक है एक भजन और जनमबाराक गीद ढोलुक में शुणयीं, कुछ सोहर लै गैयीं तो सबन कं भौत्तै आनंद आ, बीजील तो पद्माक निछावर लै करि।
ब्याल हुं सब जणि भली कै तैयार हु़णाय तो नरैणैल देखौ कि पद्मा मांग में लगूणी सिंदुर कं क्रीम में मिलै बेर आपण थोलन में लगूणै तो उ समझ गो कि अब अघिल म्हैण वील पद्माक लिजि और के के ल्यूण छु।
सब जब तैयार भयीं तो वील देखौ कि रीता आब पैल्लिया हैबेर लंबी और देखणचांण हैगे।आपण नानतिननाक मधुर स्वैणन में उ कुछ गुनगुनाण लागौ।
क्रमशः अघिल भाग-०८->>
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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