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अमृत कलश - कुमाऊँनी श्रीमद्भगवतगीता (पैल अध्याय)

श्रीमद्भगवतगीता का कुमाऊँनी पद्यानुवाद, Poetic interpretation of ShrimadBhagvatGita in Kumaoni Language, Kumaoni Gita padyanuvad

अमृत कलश - कुमाऊँनी श्रीमद्भगवतगीता

स्व. श्री श्यामाचरणदत्त पन्त कृत श्रीमद्भगवतगीता का कुमाऊँनी पद्यानुवाद

पैल अध्याय - अर्जुन विषाद योग

धृतराष्ट्र बलाण
ऊ धर्मक्षेत्र जो कुरुक क्षेत्र, वाँ लणै करण हूँ एकबटीण।
मेरा औ पांडु का च्यल नैल क्ये करौ, सुणा सब, ओ संजय।01।

संजय बलाण
देखी पांडव सेना जस्सै, वाँ व्यूह रची दुर्योधन लै,
आचार्य द्रोण का पास पुजौ, राजा लै तब यो वचन कया।02।

गुरुदेव देखि ल्हियो यो सेना, पांडु का च्याल नै की महान।
यो द्रुपद पुत्र को व्यूह रची, उ तुमरै शिष्य छ बुद्धिमान।03।

याँ शूर महान धनुर्धारी छन भीम और अर्जुन जसै बल।
यों सात्यकि, यो राजा विराट ऊँ द्रुपदपुत्र छन महारथी।04।

ऊँ धृष्टकेतु औ चेकितान ऊँ काशिराज दन वीर्यवा।
वाँ पुरजित कुन्तिभेज लै छ, सब शैव्य जसे नरपुंगव छन।05।

पराक्रमी अति युधामन्यु औ उत्तमौजा बली उस।
अभिमन्यु द्रौपदी पाँच पुत्र, सब्बा सब छन यों महारथी।06।

अब हमरि तरफ जो छन प्रधान, मेरी सेना का रणनाय।
मैं सुणू तुमन आचार्य देव, जैले तुम सब कुछ समझि लियौं।07।

तुम आपूँ आफी, बड़बाज्यु भीष्म, छन कर्ण और कृप रण विजयी।
छैं अश्वत्थमा यो विकर्ण, ऊ भूरिश्रवा लै उसै कईं।08।

और ले भौतै नैक पैक छन, मेरि तैं प्राण हथेलि में धर।
सब प्रकार हथियार मार में वीर चतुर लड़नी भिड़नी।09।

अपर्याप्त छ हमरो दल बल रक्षक यैका भीष्म हमार।
छ पर्याप्त पै उनरो दल बल, रक्षक बणी छ भीम उनर ।10।

सब द्वारन बै, सबै तरफ बै आपणी आपणी जाग में थिर रै।
सबै जणी मिलि सब प्रकार लै, करन भीष्म ज्यू की रक्षा ।11।

वीको हर्ष बड़ूणा कीं तैं, कुल का बुड़ बड़बाज्यू लै।
गरजि घुराट करौ स्यूँ को जस, शंख बजै दी बड़ो ठुलो।12।

तब वाँ कतुकुप बाजि गे शाँक नड.ार तूरी रणसिंग
रण बणाट एस भयो भयंकर गाजि बे सब आकाश मही।13।

तब स्याता घ्वाड़् जोतिया जै में, बैठी दिव्य महारथ में।
माधव और वीर अर्जुन लै, आपणा आपणा शंख बजै।14।

पांचजन्य कैं हृषीकेश लै, देवदत्त कँ अर्जुन लै
पौंड्र नाम का महाशंख कैं बजै दी भीम वृकोदर लै।15।

कुन्तीपुत्र युधिष्ठार राज् को बाजो शंख अनन्त विजय
शंख सुघौष नकुल को बाजो, मणि पुष्पक सहदेव बजै।16

महा धनुर्धर काशि राज लै और शिखंडी महारथी
धृष्टद्युम्न लै औ विराट लै औ अजेय उ सात्यकि लै।17।

राजा द्रुपद, द्रौपदी च्याल नैल, पुत्र सुभद्रा को अभिमन्यु
और सबन लै हे पृथ्वीपति! आपणा आपणा शंख बजै।18।

कोलाहल वाँ भयो रणी गे कल्ज फाटण लाग कौरवानां
धरती औ आकाश कली गे, घोर जोर शंखध्वनि लै।19।

देखो सज्जित कौरव दल कैं शस्त्र चलूणा हूँ तैयार।
महारथी कपिध्वज अर्जुन लै, आपण धनुष कँ उठै ल्हियो।20।

संजय बलाण
सुणौ महीपति! तब अर्जुन लै, हृषीकेश थैं क्वे यसिकै।
अर्जुन बलाण
हे अच्युत! मेरा यै रथ कैं द्वि सेना का बीच धरौ ।21।

जै में यो मैं भलि कै देखि ल्यूँ युद्ध करण हूँ को उत्सुक।
कै कै दगै लडै़ं ल्हिणि होली, मै कन लै रण आंगण में ।22।

देखूँ मैं इन रण करनेरन, याँ जो सब एकबटी रयीं
दुर्योधन दुर्बुद्धि युद्ध में प्रिय करणी, धै को को छन।23।

संजय बलाण
यो सुणि गुड़ाकेश का मुख बै, हृषीकेश तब हे भारत!
द्वि सेना का बीच बढ़ै लै, थापि दी उतकें उत्तम रथ।24।

भीष्म द्रोण का सामणी जतकैं ठुल ठुल सब्बै राजा लोग।
उतकैं क्वे माधव लै अर्जुन! यां छन कौरव एथके देख।25।

तब वाँ अर्जुन लै देखे, छन का्क ज्यठबाज्यु बड़बाज्यू लै।
गुरु आचार्य ममा और भाई, च्याल् नाती आपणा साथी। 26।

मित्र ससुर बान्धव गण ठाड़ छन द्वियै फौज में कटणै तें।
जब देखों कुन्ती नन्दन लै, आपणा भई बिरादर यों।27।

अत्ती ममता मोह छई ग्वे शोक ख्न्नि यो कूण लागो
अहो कृष्ण! इन स्वजनन कैं देखि, युद्ध करण हू्ँ समुपस्थित।28।

शिथिल शरीर हुणा यो मेरो, खापसुकण लागि रै छण छण।
कंप छुटणि लागि रैछ् गात में, आंड0 में सब कान बकुरि गईं।29।

हाथ बै यो गांडीव ले छुटणौं सारह देह में आग हैगे।
ठाड़ हुण में चक्कर जो ऊणों, भ्रमित हई गो मेरो मन।30।

सब लक्षण मैं देखण लागि रयूँ, विपरीतै छन हो केशव।
मैं त कोइ लै श्रेय नि देखन्यू, इन स्वजनन कँ मारण में।31।

क्वे लालसा न्हेंति विजय की, राज्य और सुख भोगन की।
हे गोविन्द राज लै के होल्, क्वे भोगन क्वे जीवन लै।32।

जनरी तैं हम इच्छा करनू, राज्य और सुख भोगन की।
ऊँ प्रियजन सब युद्ध हुँ ठाड़् छन,धन जीवन कँ छोड़ण हुणी।33।

काक् ज्यठबाज्यु गुरु जन बड़बाज्यू, भाण्ज भतिज नाती पोता।
ममा ससुर औ साला,चेला सबै निकट संबंधी छन।34।

यदि योमकैं मारि लै दिन त इनन नि मारूँ मधुसूदन।
तीन लाक का राजै तैं लै, यै धरती की बात क्ये क..।35।

कौरव ने कैं मारण में लै क्वे आनन्द जनार्दन छ।
यै हत्या लै पापै लागलो, यदपि आततायी यो छन। 36।

तदपि उचित न्हाँ इनन मारणों, कौरव हमरे बान्धव छन।
आपण गोत्र की हत्या करि हो, कसिकै सुख होल कौ माधव।37।

यद्यपि यो अन्धा नि देखन भ्रष्ट बुद्धि लोभा कारण।
महा दोष कुल नाश करण को, मित्र द्रोह करणा को पाप।38।

पै हम तौ जो यो सब जाणन्यू कुलक्षय का इन दोषन कँ।
किलै पड़ि जान्यू यै भ्योलन आब, छन आँखनै हे जनार्दन!39।

कुल काक्षयलै नाश हुनी तब, कुल का सबै सनातन धर्म।
कुल का धर्मनाश लै बढ़ि जाँ कुल में कुल अधर्म को जोर।40।
कृष्ण! अधर्म फैलि जाणा पर कुल नारी दूषित हूनी,
नारी भ्रष्टा हुण पर माधव! हुनी वर्णसंकर उत्पन्न !41।
वर्ण संकरन का वीलै सब कुल घाती कुल नरक जानी।
सबै पितर लै पतित हुनी हो, तर्पण पिंड लुप्त हुण पर।42।

वर्ण संकरन कँ फैलूणी कुल घातिन को दोषन लै।
जाति धर्म कुल धर्म बुसीनी, पुष्त पुष्त बै जो चलि ऐ।43।

कुल का धर्म उजड़ि जाणउपर फिरि मैसन की हे जनार्दन!
नित्ये नरक निवास हुँछौ हो, हम लै सुणि राखो छ यै।44।

अहो महान पाप करणा तैं हम याँ कस एकबटी रयाँ।
लोभ करी जो राज सुखन को स्वजन हनन हूँ उद्यत छूँ।45।

शस्त्र ल्हिई यदि यो कौरव गण शस्त्रहीन मैं कन मारौ,
यै में क्षेम कुशल छ मेरी बचि जूलो मैं पापन बै।46।

संजय बलाण
यो कै अर्जुन युद्ध क्षेत्र में, रथ में आपणा बैठि गयो।
हाथ को धनुष बााण भिं खेड़ि दी खेद खिन्न मन में है ग्वे।47।

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