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तूणी या तुन (Himalayan Mahogany)

तुन का पेड़ एक औषधीय वनस्पति और ईमारती लकड़ी वाला वृक्ष है, toon or Himalayan red Cedar is a useful tree, Tooni ya tun ka ped

तूणी या तुन (Indian Mahogany)


तूणी या तुन एक बड़े आकार का पेड़ होता है जो सारे उत्तरीय भारत क्षेत्र में कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के तराई, नेपाल, भूटान से लेकर अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों में मुख्य रूप से पाया जाता है।  तुन का पौधा आर्द्र से लेकर उष्ण-कटिबंध और उप-कटिबंध क्षेत्रों में समुद्र तल से 400 से 2,800 मीटर तक ऊंचाई पर पाया जाता है।  उत्तराखंड में तुन का पेड़ गढ़वाल तथा कुमाऊँ में मैदानी तथा मध्य हिमालय के पहाड़ी क्षेत्र तक लगभग पूरे राज्य में पाया जाता है।  तुन के पेड़ की ऊँचाई 60 फ़ीट से लेकर नब्बे या कभी-कभी सौ फ़ीट तक हो सकती है।  इसके तने की मोटाई (व्यास) 3 फ़ीट से 6 फ़ीट तक पाया गया है।

तूणी या तुन का वृक्ष ऐसे क्षेत्रों में अच्छी बढ़वार लेता है जहां का वार्षिक औसत तापमान 18-34 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है।  लेकिन विषम परिस्थितियों में 8-48 डिग्री सेल्सियस के तापमान को भी सहन कर सकता है।  जब यह निष्क्रिय होता है तो इसका पेड़ लगभग -3 °c तक तापमान में जीवित रह सकता है, लेकिन 0 °c या कम तापमान पर इसके विकास पर गंभीर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है।  इसके विकास के लिए 1,100 - 3,000 मिमी की औसत वार्षिक वर्षा उत्तम मानी जाती है, लेकिन 750 - 4,500 मिमी. वर्षा को भी यह आसानी से को सहन कर सकता है।  तुन के पेड़ की अच्छी बढ़वार के लिए इसे सूरज की सीधी तेज धूप से कुछ सुरक्षा की आवश्यकता होती है, लेकिन अच्छी वृद्धि के लिए इनको अधिक प्रकाश की आवश्यकता भी होती है।

तुन का पेड़ एक औषधीय वनस्पति और ईमारती लकड़ी वाला वृक्ष है, toon or Himalayan red Cedar is a useful tree, Tooni ya tun ka ped

तुन की पत्तियाँ आकार में नीम की तरह लंबी-लंबी पर बिना कटाव लिये होती हैं।  फरवरी माह में पतझड़ के मौसम में में इसके पेड़ की पत्तियाँ झड़ती हैं। तुन के पेड़ में मार्च के महीने में नीम के फूल की तरह के छोटे-छोटे फूल गुच्छों मे लगते हैं जिनकी पँखुड़ियाँ सफेद पर बीच की घुँडियाँ कुछ बड़ी और पीले रंग की होती है।  इन फूलों से एक प्रकार का पीला बसंती रंग निकलता है जिसके लिए झड़े हुए फुलों को लोग इकट्ठा करके सुखा लेते हैं।  फूलों के सूखने पर केवल सरसों के दाने के आकार की कड़ी कड़ी घुँडियाँ रह जाती है जिन्हें रंग बनाने के लिए साफ करके कूट डालते या उबाल डालते हैं।

विभिन्न भाषाओँ में तुन के नाम  (Nomenclature of Toon/Indian Mahogany)

Hindi- तुन, तून, तूनी, महानीम
Sanskrit- तूणी, तुन्नक, आपीन, तुणिक, कच्छक, कान्तलक
English– The toon tree (द तून ट्री), इण्डियन महोगनी (Indian mahogany), रेड सीदार (Red cedar)
Nepali- लब्षी (Labshi), तूनी (Tuni)
Bengali- तूनगाछ (Tungach), तून्ना (Tunna)
Telugu- नन्दि वृक्षमु (Nandi varikshamu), गलि (Gaali), नन्दि (Nandi)
Marathi- तूणी (Tuni), कुरक (Kuruk)
Gujarati- तूणी (Tuni)
Tamil- तून्मरम् (Tunumaram)
Malayalam- अकील (Akil), अर्ण (Arana)
Kannada-गंधगिरिगो (Gandhgirge)
Punjabi- बिस्रु (Bisru), दर्भ (Darab)
Oriya- महालिम्बो (Mahalimbo)

विदेशों में इसे विभिन्न देशों में निम्न नामों से जाना जाता है:-
Brazil: cedro-australiano
China: Chinese mahogany
Indonesia/Java: suren kapar; suren mal
Indonesia/Moluccas: kukoru
Indonesia/Sulawesi: malapoga
Malaysia/Sabah: ranggoh; surian limpaga
Myanmar: mai yom horm; moulmein cedar; taung tama; taw thamgo; thit kador
Philippines: danupra
Puerto Rico: tun
Thailand: yom hom

तुन का पेड़ एक औषधीय वनस्पति और ईमारती लकड़ी वाला वृक्ष है, toon or Himalayan red Cedar is a useful tree, Tooni ya tun ka ped

तुन वृक्ष के विभिन्न उपयोग (Different use of Toon Tree in Hindi)

तुन के वृक्ष के सभी भाग उपयोगी होते हैं और इनका प्रयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता हैः-

  1. तुन की पत्तियां:- तुन की पत्तियों से प्राप्त अर्क में स्पष्ट रूप से कीटनाशक गुण होते हैं। सुखी पत्तियों का उपयोग खाद बनाने के लिए किया जा सकता है।
  2. तुन की छाल:- तुन के वृक्ष की छाल में टैनिन होता है और इसके अर्क में कुछ कीट-विकर्षक गुण होते हैं। इसकी पत्तियों से प्राप्त अर्क में स्पष्ट रूप से कीटनाशक गुण होते हैं। और पारंपरिक रूप से इसकी छाल से प्राप्त फाइबर का उपयोग सुतली और स्ट्रिंग-बैग बनाने के लिए किया जाता है।
  3. तुन की छाल की गोंद:- तुन की छाल की गोंद को विभिन्न औषधियों में प्रयोग किया जाता है।
  4. तुन के फूल :- तुन के फूलों के उबलते हुए अर्क में सूती और ऊनी कपड़े को मात्र डुबोकर पीले रंग में रंगा जा सकता है। कुसुम और हल्दी के साथ संयोजन में उपयोग करके इससे सल्फर-येल्लो (Sulphur-Yellow) रंग का उत्पादन किया जाता है।
  5. तुन के बीज:- तुन के पके-सूखे फल/बीजों से एक सुगंधित तेल निकाला जा सकता है।

तुन की लकड़ी के उपयोग (Uses of Toon as Timber)

तुन की लकड़ी रंग मे हल्के लाल रंग की और ईमारती तथा अन्य विभिन्न प्रकार के उपयोग हेतु बहुत मजबूत मानी जातो है।  इसमें लकड़ी को खाने वाले कीड़ो जैसे दीमक और आदि का प्रभाव आसानी से नहीं होता है।  लकड़ी के मजबूत और सजावटी दोनों तरह के समान और फर्नीचर बनाने के लिए तुन की लकड़ी की बाजार में बड़ी माँग रहती है।  इसकी लकड़ी मजबूती के साथ ज्यादा भारी नहीं होती है जिस कारण यह छोटे सामान के लिए बक्से बनाने के लिए भी उपयोगी होती है।  आसाम की चाय के बक्से बनाने में तुन की लकड़ी उपयोग में लायी जाती है पर अब कम उपलब्धता और महंगी होने के कारण अन्य विकल्पों जैसे कार्डबोर्ड के बौक्स भी उपयोग में लाये जाते हैं।

तुन के औषधीय उपयोग (Medicinal uses of Toon)

पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण के अनुसार तुन में कई सारे औषधीय गुण हैं और इस प्रकार यह एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी भी है, जिसका उपयोग सिर दर्द, दस्त, मासिक विकार आदि के उपचार में होता है।  इसके विभिन्न भागों के औषधीय गुण का प्रयोग कर योनि संबंधी रोग, अंडकोष विकार, मोच आदि में भी लाभ होता है। तुन के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव निम्न प्रकार से हैं:-
तुन मधुर, तिक्त, कटु, कषाय, शीत, लघु, पित्तशामक, ग्राही, वृष्य, दीपन तथा रोचन होता है। तुन की छाल अति-संकोचक (ग्राही), ज्वरघ्न, पौष्टिक व ज्वरनाशक होती है। तुन के पत्र (पत्तियां) वेदनास्थापक एवं शोथहर होते हैं।  तुन के पुष्प(फूल) गर्भाशय संकोचक तथा रजस्थापक होते हैं।

तुन का पेड़ एक औषधीय वनस्पति और ईमारती लकड़ी वाला वृक्ष है, toon or Himalayan red Cedar is a useful tree, Tooni ya tun ka ped

सिर दर्द से राहत के लिए तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for relief in Headache)

तुन की छाल का प्रयोग सिर-दर्द में फायदा देता है, इसके लिए छाल और पत्तियों को पीसकर गुनगुना करके इसका लेप करने से वातज दोष के कारण होने वाले सिर दर्द से आराम मिलता है।

दस्त के इलाज में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for relief in Dysentery

दस्त की परेशानी होने पर तुन की छाल के औषधीय गुण से लाभ मिलता। अगर तुम की छाल का काढ़ा बनाकर इसकी 10-15 मिली मात्रा को पीने से लगातार होने वाली दस्त पर रोक लगती है।

अंगों की मोच में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for relief in Sprain)

हमारी सामान्य दिनचर्या में किसी अंग में मोच आना एक आम समस्या है और यह कभी भी किसी भी व्यक्ति को आ सकती है। सामान्य मोच के उपचार हेतु तुन की छाल को उपयोग में लाने पर तुरन्त लाभ मिलता है।  इसके लिए तुन की छाल को पीसकर पीड़ित की मोच वाले स्थान पर लगाकर कपड़े से बांध दिया जाता है।

घाव के इलाज में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for healing Wounds)

तूनी की छाल के प्रयोग से हर प्रकार का घाव जल्दी भर जाता है।  तुन की छाल को पीसकर उसका महीन चूर्ण बना लिया जाता है जिसे घाव पर छिड़ककर लगाने से घाव धीरे-धीरे सूखने लग जाता है और बड़ी जल्दी ही भर भी जाता है।

फोड़े-फुन्सी होने पर तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for Boils)

फोड़े-फुन्सी होने पर भी तुन की छाल का प्रयोग किया जा सकता है।  इसके लिए तुन की छाल को चन्दन तरह घिसकर जो पतला लेप प्राप्त होता है उसे फोड़े-फुन्सी वाले अंग पर लगाने से फोड़े-फुन्सी में होने वाली खुजली और जलन में कमी आती और वह धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।

टाइफाइड के उपचार में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for relief in Typhoid Fever)

टाइफाइड बुखार के साथ जब दस्त होने लगता है, तब तुन की छाल का काढ़ा पीने से राहत मिलती है।  इस काढ़े को लगभग 10-20 मिली मात्रा में पीने से रोगी को लाभ होता है। इससे पुराना बुखार आना भी कम हो जाता है और रोगी धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।  अगर तुन की छाल के साथ लताकरंज के बीजों को मिलाकर काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन किया जाता है तो टाइफाइड और पुराने बुखार में अधिक लाभ होता है।

स्त्री रोग- मासिक धर्म विकार में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for Relief in Menstrual Disorder)

तुन के फूल या छाल का काढ़ा अपने औषधीय गुण से स्त्रियों के मासिक विकार की परेशानियों में लाभ पहुंचाता है।  इसके लिए तुन के फूल या छाल को पीसकर उसका काढ़ा बना लिया जाता है।  इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मासिक धर्म चक्र संबंधी विकारों में महिलाओं को लाभ प्राप्त होता है।

स्त्री रोग- योनि में मस्सा की समस्या में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for treatment of Genital Warts)

स्त्रियों का यह रोग बवासीर की तरह का होता है जिसमें योनि में मस्से निकल आते हैं। कई महिलाएं इस रोग से पीड़ित होती हैं। इसमें तुन के औषधीय गुण का लाभ लिया जा सकता है।  तुन की छाल के साथ इतनी ही मात्रा में पठानी-लोध्र लेकर दोनों को अच्छी तरह कूटकर पीस लिया जाता है।  इसको हल्का गुनगुना करके योनि के प्रभावित स्थान में लेप करने से लाभ प्राप्त होता है।

अंडकोष विकार में तुन का प्रयोग (Use of Toon Bark for treatment of Testicle Disorder)

अंडकोष विकार में तुन पत्तियों का प्रयोग लाभकारी परिणाम देता है।तुन की पत्तियों को पीसकर उसके रस में बराबर मात्रा में तुलसी की पत्तियों का रस और घी मिलाकर पकाया जाता है।  ठंडा होने पर इसे अण्डकोष पर लेप के रूप में प्रयोग करने से रोगी को लाभ होता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि तुन का वृक्ष हमारे लिये कितना उपयोगी जिसका हर भाग किसी ना किसी रूप में हमारे उपयोग में आता है।  इसकी लकड़ी के विभिन्न प्रयोगों के बारे में तो सामायत: हम सब जानते हैं लेकिन यह एक महत्वपूर्ण औषधीय जड़ी-बूटी भी है जिसका प्रयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाईयों के निर्माण में भी किया जाता है।  पहाड़ों में तुन का विशाल वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करने तथा भुमि में इसकी जड़ें भू-कटाव को रोकने में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं।

तुन (Toon/Himalayan Mahogany) के औषधीय उपयोग सम्बन्धी चेतावनी:

इस लेख में केवल तुन के औषधीय गुणों एवं उपयोगों के सम्बन्ध में जो जानकारी दी गयी है, इसे किसी भी प्रकार हमारे द्वारा औषधीय या चिकित्सकीय परामर्श ना समझा जाए।  तुन एक औषधीय गुणों वाला वृक्ष है जिसका प्रयोग विभिन्न औषधियों के निर्माण में होता है।  इसका औषधीय या चिकित्सकीय प्रयोग केवल योग्य विशेषज्ञ चिकित्सक के निर्देशन व परामर्श से ही किया जाना चाहिए।


सन्दर्भ:
Useful Tropical Plants - Toona ciliata
India Biodiversity Portal
कई बिमारियों की काट है तून (तूणी)- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)

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