
-:मै-चेली और बौल बुति:-
प्रस्तुति - अरुण प्रभा पंतअब जरा जरा चौल (महत्व, फिक्र) हूण लागि जिबुलिक और 'अभागी' संबोधनाक बजाय 'ब्वारी, दुल्हैणी' कूण भैठ सौरज्यू और बुढ़ि आम्। "त्वील खाछै नि खाय" लै पुछण बैठ ग्याय हो। ततु मिठ व्योहार (व्यवहार) जिबुलिल कभै देखियै नि भै।उ तो अचकची जै गे। ऐसिकै दिन पुर भाय और एक दिन 'ओइजा ओबाबू' कूनकुनै फुराड़ी गे जिबुली तो झट्ट चारै आम् नरबदा कं लिऐ।
नरबदा जो प्रशिक्षित दाय नि भै पर वील आसपासाक कुछ नानतिन पैद कराई भाय। जिबुलि जैल कभ्भै भल खायी नि भै सदा डांठ और ठुकुरैयी भै हो तीन दिन पीड़ लागि रै तब जैबेर जै वीक द्वि जौयां (जुड़ुआ) संतान - एक च्योल और एक चेलि हैयी भै पर जिबुलिक दांण सार (सख्त, मजबूत) भाय । उकं आपण हाथ लै मलकै करणैकि सुध नि भै पर गौंक अशिक्षित और अज्ञानी मैंसनौक हिलधार लाग गोय कि दउलिक (आम्) पगल नातिक वां च्योल चेलि द्वियै है ग्यान ,जैक बंश बढ़नैकि उमेदै न्हैंछी वीक घर आज उछाह (उत्साह) हैयी भौय।
यो खुशीक मौक में कैलै यो नि चाय (देखा) कि नानतिन भौत कमजोर हैर्यान। ऐस में तिसार दिन तालै जिबुलिक च्योल जो कमजोरै है रौछी खतम है गोय तो जिबुलिक बुढ़ि सास जिबुलि और वीक ज्यून संतान जो एक चेलि छी कं गाय मुखाय और शिटण (दुर्वचन) भै गे। अब जिबुलिक दाश फिर वी गाय-मुखाय वालि है गे कुंछा। के समझ नि आय जिबुलि कं नक तो उकं लै लागनेरै भै।
जिबुलिक बुढ़ि सास दउलि वीक पैद हैयी ज्यून चेलि कं भै (भाई) टोक्का कूण लागि और जब लै जिबुलि उकं दूद पेऊनेर भै ओरी गाय शुरू कर दिनेर भै दउलि। जिबुलिक दुल्हौ उसै में जिबुलि कं जै लागण हुं ऐ जानेर भौय तो गौक मैंसनैल उकं समझूणैकि तजवीज करि तो उं तालै एक बोट पर चढ़ गोय और अचानक खुट अल्जी बेर भ्योन घुरि बेर खत्म है गोय तो पेल्लियै जिबुलिक भाग में कम दुर्दाश न्है छी कि तौ बोया जनार्दन लै परलोक पुज गोय।
जो हाय हत्या जिबुलिल और उ नानी नानि राढ़ू (अबोध) भौल झेलि वीक जिकर मेरि कलम नि करि सकनि- के ढ़ंगैलि गौंक मेसनैल जिबुलि और वीक चेलि जैक नाम 'च' अक्षर बै ऐयी भौय, 'चंपा' धरौ जब जिबलि कं वीक दुल्हौक बरां दिन मांथ क्वाड़ है वार गाड़ौ। न के देखभाल न के खाण पिण सिर्फ कटुवचन और अंधाधुंध बौलि बुति।यो भै हमरि देव भूमि जांक मातृशक्तील भौत कुछ सहौ तब जै बैर हम उनैर संतान ज्यून छां।
>क्रमशः अघिल भाग-०४>>मौलिक
अरुण प्रभा पंत

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