
-:मै-चेली और बौल बुति:-
प्रस्तुति - अरुण प्रभा पंतऐसिकै दुर्दिन में लुकछिप बेर जिबुलिल आपण चेलि कं दूध पेवा और चेलि आय एक म्हैणैकि लै नि है रैछी कि सब बौल बुति करण लागि ,आग हालण आपण ,आम् और सौरज्यूक लै पेट भरणै भै। कामाक बखत उ आपण चेलि चंपा कं यातो पुठन बाद बेर धरनेर भै या बाखयिक कुणाक घरैकि रेबति बुबुक वां पड़ै बेर ऐ जानेर भै। ऐसी कै मै चेलि ज्यून राय, लुकै बेर घराक पछिन जै बेर चेलि कं दूध नौणि खवै दिनेर भै बज्यूण इजौक कल्ज भौय,माय भै।
आम् रोज कोसनेर भै- "तौ भै बाब टोक्का कस दिनै कि रातैकि खाम जै हुणै।कताणि है गे भराण जै"
आब तो जिबुलि भै अख्तारि। बुढ़ि आम् अब बस बकबकाट और गायमुखाई कर सकनेर भै, जम्मै काम जिबुलि करनेर भै सौरज्यूक और बुढ़ि आमाक, बदाव में सात पिढ़िक सराद। एक दिन सौरज्यू बर्यात ग्याय वहां बै हगन हगनै घर आय पुर गुयोलि है गे, बेटुयिक रैत बणाय जिबुलिल सौरज्यूक गंद साफ कर ऐसै में एक दिन उं लै जानै राय। आब तो दउलि ढ्वाल (बुढ़ि आम्) एक दम असहाय जै अणखइयै पड़ि रुनेर भै और जे लै जिबुलि पकुनेर भै उकं जोरैल अशिट दिनेर भै।
एक दिन डाढ़ और दैंखर(क्रोध का अतिरेक) में बुढ़ियाक लै प्राण जानै रैयीं। अब तौ मै चेलि रै ग्याय। पांच बर्सैक चंपा और बीसेक बर्सैकि जिबुलि।
अणहत्ति काव भै जब पढ़नी खेलणी कुदणि उमर हुनेर भै पर्वत-कन्या अनेकानेक जंजालन में आपण और आपण संतान कं सैतण में बुढ़ि जानेर भ्या हो। भौत बार चेलिनौक ब्या उनौर जीवन कं ऐस भंवर में डाल दिनेर भै कि क्वे लै सहार नि हुनेर भै। मैत संपन्न लै भयो तो - "अब त्योर सोरासै छु जेछु हम के कर सकनूं तो त्योर भाग्य, चेली जा जस लै छु सौरासै में रूणौक धर्म भ्यो। आपण मैतैकि इज बाबनैकि लाज धरिए, 'सइयाक चुपाड़ पात'जैल सै वील पै'। यो दर्शन भौय पुराण मेसनौक चेलियानाक बार में।
यां जिबुलि तो छोरमुय्या जै भै वीकौ क्वे नि भौय आफि हाथ खुट फतोणन भाय। अब चलो कड़कड़ करणी नि भाय क्वे।पर जीवन पहाड़ौक इतु सित्तिल जे के भौय। जिबुलि एक बिधौ भै और कम हैरौ कूणौक जौ एक चिहैड़िक मश्तारि, वीलै एसी रूण भौय जैसि "बत्तीस दांतनाक बीचम जिबौड़।" गौं में सबै जाणनेर भाय जिबुलि यकलि छु देखण चाण छु तो गौंक कुछ लौंड-मौंड ताक में रुनेर भ्या।
जिबुलिक के समझै नि उनेर भोय कि कसि तनन थैं टांड़(दूर) रूं! तब वील हिम्मत धरि बेर एक दातुल पयै (धार बनाकर) बेर कमर में हर बखत खोसबेर धरनेर भै एक दातुल हाथन ल्हि बेर जंगव धुर छांनपन ख्यातन काम कर बेर बिन बुलई चुलई आपण दिन काटणैं----
क्रमशः अघिल भाग-०५मौलिक
अरुण प्रभा पंत

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