
-:मै-चेली और बौल बुति:-
प्रस्तुति - अरुण प्रभा पंतजिबुलि हैगै उदास कि आब अघिलौक बाट् कस होल, योयी सोच बेर उकं बेलि रात नीन नि ऐ। रत्तै ठुल मास्टराणि शैप आपण सामान एकबट्यूनू भै ग्याय तो जिबुलिक आंख लाल देखबेर उनूल पुछौ "के भौ?"
"केनै"
"हाय त्वील नि बादौ आपण सामान"
"नै"
"बाद् पै, दगड़ै जूंल दगड़ै रूंल, तु मेरि चेलि और चंपा मेरि नातिण"
जिबुलि - "तुमौर लै तो क्वे घर और घराक मैंस ह्युनाल।"
"नै हो क्वे न्हान तेरि न्यांथ मेरि लै काथ छु त्यारा चेलि छु, म्यारा ख्वारन रात पड़ि भै आठ बरस में ब्या और दस बर्स में बिधौ। एक अंग्रेज मैम मकं देख आपण दगै लिगे और पढ़ै लेखै बेर वील मेर जीवनैकि धार् बदल दे। तबै तुकं देख शुण बेर मैल तुमन कं सांच्चि मनैल आपण बणा,अपणां। आब बता जां मस्तारि जालि तो आपण औलाद कं अद् मजार में कैसि छाड़ देलि?
जिबुलि - "के मेर भाग में लै यो सब सुख छु!----चंपा चंपा यां आधैं पोथा।
चपा - के इजा?
जिबुलि - चेला तु पुछन छी नै कि अगर हमौर क्वे हुनौ तो?
यो देख यौं छिन मेरि मस्तारि और तेरि आम्---
क्रमशः अघिल भाग-१०
मौलिक
अरुण प्रभा पंत

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