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मै-चेली और बौल बुति (भाग-१०)

कुमाऊँनी धारावाहिक कहानी, मै-चेली और बौल बुति, long kumaoni story about struggle of as single mother and her daughter, Kumaoni Bhsha ki Kahani

-:मै-चेली और बौल बुति:-

प्रस्तुति - अरुण प्रभा पंत
->गतांक भाग-०९ है अघिल->>

बेलि दिनमान भर जिबुलि जो सदा आपण भाग (भाग्य) कं मनै मन कोसते रुनेर भै अणकस्सै जौ चितूण बैठी कुंछा। हाय यो तो मैं आपण चंपा दगड़ एक किस्मौक स्वर्ग में पुज गयूं हो, हमारा दान सुदर ग्यान हो, गजब। आब हमौर लै फर्ज भौय कि आपण तौं रमा दिदी ( ठुल मास्टराणि) कं पुर भली कै आपण मस्तारि जौ समझुं पर मैलै मस्तारि जांणियै नि भै कभै कस हैं!

आब मैं पुछुंल कि मस्तारि कस हुण चैं,पर पुछण के भौय,चंपा थैं लै पुछुल कि तु बता मस्तारि कस हैं? और मैं लै तो मस्तारि छुं उसै समझ बेर 'रमादिद' दगै ब्योहार करुंल, पर तौं तो म्यार इज भाय तनन कं दिद नि कूण चैंन भौय अब मैं तनन कं 'इज' कूंल पर मकं तो शरमैं अत्ति लागैं।
"ओ चंपा यां आ धैं"
'के इजा?'

"पोथा आज बै रमा दिद थैं "आमा" कै हां"

चंपाल पैल्ली अणकस्सै मुख बणा फिर आपण भौं सिकोड़ी और कौ--"अच्छा"

तबै रमा दिद भ्यार बै भितेर हुं ऐयीं तो चंपा कूण लागी - "आम् ऐ ग्यान इजा।"
रमाल जब शुणौ तो संतोषैल उनार आंख भिज ग्याय तालै।

रिश्तनैकि पवित्रता और ऊष्मा रमा जैसि भ्यार बै सख्त दिखीणी मैंस कं लै पिघलै दिं।---

क्रमशः अघिल भाग-११
मौलिक
अरुण प्रभा पंत

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