
समेरन समेरनै ले कतुक छुटि जां
लेखिका: डॉ. उमा भट्ट
1971 में बी.ए. पास करि बेर जब मैं अघिल के पढ़ाई करणा लिजी लेखक पिथौरागढ़ बटि आपुण दाज्यू डॉ. मदन चन्द्र भट्ट ज्यूक दगाड रूण हिं नैनीताल आयूं त ऊंचौमासाक दिन छी। रोज नैनीताल में झड़ै लाग रूनेर भै। डी.एस.बी. कॉलेजाक हिंदी विभाग में तब डॉ. ऋषिकुमार चतुर्वेदी, डॉ. केशवदत्त रुवाली, डॉ. लक्ष्मणसिंह बिष्ट 'बटरोही' ज्यू तीन प्राध्यापक छी। रुवाली ज्यू हमन के भाषा विज्ञान पढ़ाई करछी। ऊं कक्षा में रोज मंगलाचरणकि न्याति भाषाविज्ञान विषयक महत्व समझूनेर भै। दगाड़-दगाड़ै कहानि, कविता, निबंध जास विषयनकि खिल्ली लै उड़ाई करनेर भै।
हम नानतिन बी.ए, तक खालि हिंदी साहित्य पढ़िबेर आई भयां। तब सामान्य हिंदी लै बी.ए. में नी पढ़ाई जांछी। भाषा विज्ञान हमन हुं एकदम नई विषय हुंछी। संस्कृत व्याकरण पढ़ियल थ्वाड़-ध्वाड अंताज जस ऊंछी। रुवाली ज्यू पडून बखत हमार सवाल पसंद नी करछी। क्वे बात उनन के पसंद नी ऐ त फिरि बोलि जै मारनेर भै। ऊं हमनकें व्याख्यानाक दगाड़-दगाड़ नोट्स ले लेखूंछी। भौत दिनन जाणै एम. ए. दिननकि उ कौपि मैंल संभालि बेर धरी छी। तब डॉ. छैलबिहारी लाल गुप्त 'राकेश' ज्यू हिंदी विभागाध्यक्ष पद बै प्रधानाचार्य पद में न्है गोछी लेकिन हिंदी विभाग में उनरि बराबर छत्रछाया छी। दिन में एक बार चहा पिण हूं आपण दल-बल सहित ऊं विभाग में ऊंछी। चहा पी बेर एम.ए. प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष कें दगाई एक पीरियड पढूंछी।
रुवाली ज्यू लंघम छान्नावास में वार्डन छी। तब उनर ब्या लै नी है रौछी। ऊं 'कुमाउनी शब्द समूह का व्युत्पत्तिपरक अध्ययन' विषय में शोधकार्य करण लाग रौछी। रुवाली ज्यू जब शोधकार्य करणौछी तब मैं एम.ए. द्वितीय वर्ष में छ्यूं। मैं आपण दाज्यूकि बदलि हई बाद बिष्ट भवन में रूंछ्यू। तब बिष्ट भवन कॉलेजक छात्रावास छी। रुवाली ज्यू आपण लेखी कें अध्यायाक हिसाबल मैंकें दी दिछी कि ये सुधारि बेर दुहार रजिस्टर में उतारि दिए कै। पुरि थीसिस मैंल भली कै उतारी। रूवाली ज्यू के आदत छी कि आपणि बात पर कुमाउनी कैं खूब जोर दिनेर भै। व् चाहे कई कैं भल लागौ, चाहे नक लागौ। उनूलि जि कूण भै, वी बात कें बारबार कुनै रूछी। लेखण में रुवाली ज्यू भौत संतुलित, स्पष्ट, साफ-सुथरि, मानक भाषा लेखनेर भै। उनरि हर बात प्रामाणिक हुनेर भै।
एम.ए. करणाक बाद मैंल उनन हुं चिट्ठी लेखी कि कुमाउनी भाषा'क क्षेत्रीय रूपन पर मैं शोध कार्य करण चां, पर वी बखत यो विषय उनन के पसंद नी ऐ। पर भाषाविज्ञानल म्यर पिछ नी छोड़। पैंल नियुक्ति में जब कोटद्वार गयूं त विभागाध्यक्ष डॉ. केदारनाथ द्विवेदी ज्यूल जान चोट भाषा विज्ञान पढ़ाऔ, कैदी।
कुमाउनी भाषा पर उनर काम महत्वपूर्ण छी। उनर पीएच.डी. 'क काम बाद में किताबक रूप में ग्रन्थायन, अलीगढ़ बै 'कुमाउनी व्युत्पत्ति कोश' नामल प्रकाशित भौ। जैक पैंल खंड में कुमाउनी भाषा, साहित्य, संस्कृतिक लम्ब चौड़ चर्चा छु। दुहर खंड में कुमाउनी शब्दनक व्युत्पत्ति कोश छु। कोश में खालि व्युत्पत्ति न्हां, संस्कृत-प्राकृताक दगाड़-दगड़े मराठी, गुजराती,राजस्थानी,हौर ले दुसरि भाषा में मिलनेर एकनाश शब्द ले दिई छन। नैनीताल में पढ़न दिनन रुवाली ज्यू दुनी भरि कि भाषानाक जानकार डॉ. हेमचन्द्र जोशी ज्यूक संगति में आई छी। हेमचन्द्र जोशी ज्यूल वी जमान में जर्मनी बै पीएच.डी. करी भै।

रुवाली ज्यूल सामान्य हिंदी, हिंदी भाषा, नागरी लिपि, मानक हिंदी ज्ञान किसमकि किताब लेखी जो भौत समय तक पाठ्यक्रम में लागी छी। कुमाउनी भाषाक ले उनरि अलग-अलग किताब पाठ्यक्रमाक हिसाबलै तैयार छन। 2012 में छपी किताब 'कुमाऊँ हिमालय की भाषा, साहित्य एवं संस्कृति' शैत उनरि आखिरी किताब होलि।
कुमाऊँ विश्वविद्यालय बणनाक बाद कुमाउनी भाषाकि ले खूब चौल भै। एम.ए. में एक प्रश्नपत्र शुरू भौ, शोधकार्य ले खूब हईं। विश्वविद्यालय में रुवाली ज्यू वी बखत कुमाउनी क आधिकारिक विद्वान भै। आखिर में ऊँ कुमाउनी भाषा विज्ञानाक प्रोफेसर है गोछी।
नैनीताल उनन के भौत भल लागछी। कुमाऊँ विश्वविद्यालय अल्माड़ परिसर में नियुक्ति मिली, नैनीताल नी मिल सक, ये बात क उननकें भौत मलाल छी। आखिर आखिर तक ये बात कें ऊं भुलै नी सक।
बखतकि रफ्तार भौत तेज छु। यैक पछिल दौड़न-दौड़न के हात ऊँ, के नी ऊन। समेरन समेरनै ले कतुक छुटि जां, के पत्तै न्हां। कतुक काम है सकछी, कतुक बात है सकछिन पर सबै सोचिए रै जां। गुरुवर रुवाली ज्यू बार में सोचण बखत ले यस लागूं कि जतुक सिखण चैंछी, नी सिख सक्यूं। जतुक करण चैंछी, नी कर सक्यूं।
*तल्लाडांडा, तल्लीताल, नैनीताल
मो.-9412085467
‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका , सितंबर २०२० अंक बै साभार
1 टिप्पणियाँ
Bahut badiya chu
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