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घन्नू का - कुमाऊँनी संस्मरण

घन्नू का - कुमाऊँनी संस्मरण,memoir in kumaoni about an old kumaoni man,ghanu ka ke bare mein kumaoni sansmaran

घन्नू का 

लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'

भोल घन्नू का आपुण ठुल च्याल क दगाड लखनऊ जाणीन बल उनर च्योल महेश उनन लिजाण ऐरौ।  यो शब्द म्यार कान में पड तो भौचक्क जस रै गेयूं।हालाकि यास समाचार आजकल गौं घरन में आम बात भै पर घन्नू का आब न्है जाल।  ओहो आब कां बटी देखियाल..।  आब कां बटी देखियाल कैके मरण में कूनेर भााय पर मेके लाग कि तास बुजुर्ग लोगनक परदेश जाण ले हम लोगनाक लिजी तसै भै आब वापस तदुक दूर बटी पहाड क ज कि ऐ सकाल और न हम कबै लखनऊ जै सकूल।

घन्नू का नाम घनानन्द भोय सरकारि ईसकूल में मास्टर छी।  बहुत कष्टैलि नानतिन पाली भाय, पैली बटी तदुक तनखा ज कि भै।  अप्परक मास्टर कूनेर भाय . . घन्नू का लि परिवार पालणा लिजी चूलि ले फुकि भै।  सस्कृताक प्रकांड विद्वान तो नि भाय पर काम चलूण बराबर सिखि हाल।  जां जां इसकूलन में राय उनार ब्यवहारलि मैंस उनन कें बुलूनेर भाय।  अगर मुख्य बामण क्वे और ले होल तो घनानन्द ज्यू कें फिर ले बुलाई जानेर भै।
 
घन्नू का सोचनेर भाय चलो एक बखतक खाण मिल जाल और के दाम दक्षिण ले द्याल, जो घडी कटि गे।  परिवार ले कम ज के भै घनानन्द ज्यू'क, तीन भाई भाय घनानन्द ज्यू'क सबसे ठुल वी भाय।  एक दिदि भै एक नानि बैणि, द्विये बैणी बेवाई गाय, तीनै भाई नकि परिवार दगडै रूनेर भै।  नान भाई दिल्ली पन प्राइभेट काम करनेर भाय, खरच पात घर पन जे ले भै सब घन्नू का चलूनेर भाय।  आपुण ले नानतिन भाई नाक नानतिन उणी जाणी पौण पच्छि त्यार ब्यार, पौ पिठ्या सब घनानन्द ज्यू कै ख्वार भाय।  खरच पात क लिजी न तो घन्नू का लि कबै नान भाई न छै कौय न कबै उनैलि पुछ।  घर उण बखत कबै एक धोति कबै एक वास्कट लि आया तो घन्नू का उमैणि अगास पुजि जानेर भाय।
 
घन्नू का बाट्क मकान भै, औ बैठ कूणी ले भाय, उनार यां उणी जाणी नक हेलधार लाग रूनेर भै।  चहा कितली तो अध्यैण जसि चौबीसों घन्ट जांति में धरी रूनेर भै।  कबै कबै काखि माचीनेर ले भै, तुमार कि जां खापलि कूण भै, चाहा बणून बणून मेके पितैन लागि गे।  जो उणी जाणी काव कुकुर देखीण तुरन्त धात लगै दिछा .. आ बैठ चाहा पीलै कैबेर।  भीतर पन पत्ति टपुक छै या नहां तुमन होश छै ने, बाटकि कुडी चाहा में उजड कूनी तसै किस्स भय।  देखिया कदिनै यो चहा बणून बणून मेके मरी पाला।
  
घनानन्द ज्यू बुडी कें समझूनेर भाय - अरे तू तस अलच्छैण किलै बुलांछी, कैकैणी खवै पिवेबेर आदिमाक के नै घटन।  सब आपुण भाग क खानेर भाय कि अन्ताज जब हम ले यो मैसनाकै भागै खाण लाग रयां।  तू फिकर किलै करछी, ऐल भगवानै लि दि राखौ तो खवा जदिन नि होलो पें देखीनी रौलि।  बुडी कूनेर भै - बात तो तुमरि ठीक छ पर अघिल कै नानतिनक ले सोचण चें।  नानतिन ठुल हुणीन आब, भो पोरू तनर ब्या बरपन्द ले करण होल।  घनानन्द ज्यू समझाल - हम को छां बुडिया करणी, सब भगवान भै।  मी तो भगवानन छैं एकै बात कूं कि - हे परमेश्वरौ जसिके दिन काटीणईन उसिके निभै दिये बाकि हाथि घ्वाड मेके के नि चैन।

बुडियलि कौय - पर आपुण पास तदुक हुण ले चैन भै.. यां उसीके गावगाव ऐ रूं।  घनानन्द ज्यू कूण लाग - अरे हैबेर तो सब्बै दिनेर भाय बाॊ तो तब भै जब नि हैबेर दियी जाओ।  बुडियै लि खोर हलकाय, फिर घन्नू का कूण लाग - महेशै ईजा, यो जीवन ले एक बन्द लिफाफ जस भै।  बस मैसनाक सामणि यो बन्दै रूण चैं, जब तक लिफाफ बन्द छ तब तक पत्ति रूं।  लिफाफ खुल तो फिर के नै, को के करौ ज कि नाफ क हंसि जै करनन।
 
 घनानन्द ज्यू यहै अलावा भौते करामाति क ले भाय, ज्यौड बाटण, गयूं बाटण, कुच बादण, जन्यो बणूण, कुट्याल दातुलाक बीन बणूण, सब काम जाणनेर भाय।  गौं में जो ले बुड-बाडि ह्वाल सबनक जांठ बणूणी घन्नू का भाय।  घिगारूक जांठ काटिबेर उकें आग मे भ्डैबेर एक ढूंग में हफ्तेक च्याप द्याल ताकि कति बटी ट्योड भै तो सीद्द है जाओ और सुकि बाद बंगतरी नि जाओ।  फिर भली कै छोल छालि बेर चुपडौ बणैबेर द्याल, पैं दुसरक छ कैबेर जरा ले हिलहांजरी नि भै।

कराल तो पक्क काम कराल, कैकै नानतिनन बिभूत लगूण छ, छोटि मोटि जर मुना पेटपीड में दवाई दिण छ यो काम में ले पक्क भाय।  क्वे बीमार हैरौ कै जाणला वैं पुजि जाल, उनार घर भितर चीज हुण चें कैके लिजी नै नि भै।  बल्कि गौं में तो एक कहावत ले बण गे.. गल बटी नेलि हालौ तो वी भै घनानन्द ज्यू'क आपुण, नतर खाप भितरक ले दि दिनेर भाय।  मेकें घन्नु का एक एक बात याद उणाय, क्वे मर गे तो बैठ बेर रात भर पहर कराल।  दुसार दिन झाजि बणूण सार बतूण सब कराल।

धीरे धीरे नानतिनकि नौकरी लागि उ परदेश ग्याय तो वाकै है ग्याय, कबै छुट्टिन में ऐ जानेर भाय स्वैणा जस।  नान भाईनाक परिवार न्यार हैग्याय, आब द्विये बुड-बुडी रैग्याय घर पन, पर उनर सक्रियता में कमी नि ऐ।  कैके यां काम काज होल चेली क ब्या होल तो घनानन्द ज्यू आपुण जस काम समझिबेर कराल।   अरे अचार यसिके बणाया हां.. तौ गेट भलीकै बणाओ, ट्योड हैरौ,  बरयात मामुल छ, दुसार गौं वाल हंसि कराल।  बार नाई क कुन छ लूण यदुक डालिया, आजि तौ सुजि नि भुटी रयी.. यास निर्देश देते रौल।
   
मैं बाट लाग्यू सोच घन्नु का दगाड भेट करि उं, फिर तौ कथप मी कथप।  हालाकि आब उमर ले हैगे घन्नू का कि, परारि बेर काखि ले मरि गेछी।  तब बटी जरा घचकि जस ग्याय, नतर यो अस्सी साल कि उमर में ले असल चल्त भाय घन्नू का।  मेर तो साचि मानछा दहडू जास भाय, तलि मलि जाण बखत झिट-घडि उनार दगाड बैठनेर भयूंं..।  उनार दगाड फसक करण में के न के जरूर सिखणा लिजी मिलनेर भै, एकले ले भया तब ले उनैलि बाड न में खूब उद्यम करि भै।  साग पात खूब लगै राखनेर भाय, साग के साथ उनार बाड में, बारमासि घुंगार, पोतिन, ठुलि इलैंचि, मुन्नि खुश्याणि, लागि रूनेर भै।  

एकलै कदु खांछी.. सब बाटण भै, एक दिन मैल कौ.. तुम तदुक क्यै लागि रूंछा, आब आरामलि बैठबेर खाओ जै धें।  हंसबेर कूनेर भाय - अरे यार काम में लागि रयूं तबै हात-खुट चलण लागि रईन, नतर खालि बैठबेर लुली जूल।  उनार परसाद म्यार ले साग खावै बहार भै.. मेथि, पालंग, लाई, पिनालू क नौव, काकड़ रोट ले सुकेबेर धरि राखाल, कुनेर भाय - यार यो अकाई सुकाई साग भोय।  यो पुराण बातन कें याद करते करते मी उनार मोल छैं पुज्यू ..

घनान्द ज्यू कुछ कुटुर काटुर बादण में लागि भाय, बीच बीच में मैंस ले उणाय भेट घाट करण, उनैलि कुछ पुन्तुर च्याल कैं द्याय और बैग में धर कौय।  च्योल कूण लाग बाबू किलै धरणौछा, वां सब चीज मिलनेरै भोय, के बात नि भै यो ले बराबाद ज कि करण हैरो, मेहनत लागि रै यनन में ले।  आब जरा काम निबट तो उनलि मेके देख .. चसम ठीक करबेर मेर पास आय . . बैठणक इशार कर।  आज तक बड जोश में रूणी घन्नू का आज मधुर हई भाय, कूछा तो उनरि सिरि उडी भै आज।  उनन यस हालत में देखिबेर मेके ले भल जस नि लाग।

मैलि पुछ काकज्यू भोल जाण लागि रौछा??  उनलि जवाब नै दिबेर सवाल कर - यार त्वीलि नाना बाछ देखि राखनै.. जनन कें दूध पेवाई वाद उनरि गुस्याण घ्वेड बेर वापस वीक किल लै बागण हूं लिंजा और गोरु ले बाछ ले एक दुसार उज्याण जोर लगूनन और उनरि गुस्याण खीचते हुए किल लै बादि दी..।  मी समझ गेयू काकज्यू कि कूण चाणीन पर म्यार मुख बटी बोल नि फुट।  फिर कूण लाग - ठीक ले भोय यार, गुस्याणि कि गलती, वीके दध ले चैन भै।  मेर मुख बटी बडि मुश्किललि होय निकल।  थोडी देर घन्नू का मेर उज्याणि चायी भाय मैं उनर उज्याणि.. मैलि देख कि घन्नू का चसमनाक पिछाडि बटी आसनक तौड्याट हुण बैठ गे।
 
हमार द्विनकैलमुख बटी शब्द नि निकल, आब मेर बिती उल्लै बैठण मुश्किल हैगे।  मैं आपु के समावते हुए वापस घर आयूं.. मन करणय कति एकौर जैबेर खूब डाड मारूं..।  दुसार दिन घन्नू का गाडि जाणा लिजी तैयार हैगे, च्योल आपुणी गाडी लायी भै.. मैल आंगण बयी चाय।  मन करणय घन्नू का दगाड भेट कर ऊ, पर आज हिकमतै नि भै।  आगणै बटी चै रयू उनन घन्नू का लि गाडि में बैठण है पैलि वार पार चाय, जदुक लोग ऐरैछी उनन कें आशीक दे, फिर आपुण मकान उज्याण चैबैर हाथ जोड़।

मैसनैलि गाड़ि घेरी भै, क्वै आब कब आला कूणय, क्वे कुणय फोन करिया, क्वे कुणाय सन्तोष करिया, च्याला दगाड़ जाणौछा, भली कै बैठबेर खाला।  घन्नू का गाड़ि में बैठ ग्याय, एक घच्च कैबेर आवाज भै, गाडि क द्वार बन्द भाय।  घर्र -घर्र-घर्र कैबेर गाडि बाट लागि गे.. उतपनलै मैस यास हैग्याय जाणि कैलि मुनि हालन..।  हालाकि कैकै बिना कैके काम नि अटकन, उण जाण ले लागि रूनेर भै, पर आज पत्त नै मेकें यस लागणय कि - गौं आज अनाथ हैगो।

विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 29-05-2021
M-9411371839
विनोद पंत 'खन्तोली' जी के  फ़ेसबुक वॉल से साभार
फोटो सोर्स: गूगल 

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