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जागेश्वर धाम का अलौकिक महात्म्य तथा श्रावणी शिवरात्रि मेला

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जागेश्वर धाम का अलौकिक महात्म्य

लेखक: ईश्वरी दत्त भट्ट

श्रावण मास में पार्थिव पूजन से मनोकामनाऐं होती हैं पूर्ण

उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार अनेक पर्व मनाए जाते हैं। पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं। वहीं पहाड़ की परंपराओं कायम रखते हुए इन्हीं खास पर्वो में हरेला शामिल है। हरेला शब्द का तात्पर्य हरयाली से हैं। यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है।

पहला चैत्र मास, दूसरा श्रावण मास तथा तीसरा आश्विन मास में मनाया जाता है। चैत्र मास में माह के प्रथम दिन हरेला . बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है। श्रावण मास में सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है। आश्विन मास में प्रथम नवरात्र के पहले दिन हरेला बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।

उत्तराखंड में श्रावण मास में पढ़ने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता है। कहा जाता है कि श्रावण मास शंकर भगवान को विशेष प्रिय है। सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाजों के मिश्रण के बीजों को एक छोटी टोकरी में मिट्टी डालकर बोया जाता है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। 9वें दिन पत्ती की टहनी से इसकी गुड़ाई की जाती है और दसवें दिन इसे काटा जाता है। विधि अनुसार घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ कर हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं। उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है।

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इसी दिन से उत्तराखण्ड के प्रमुख तीर्थस्थलों में प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में श्रावण माह में लगने वाला श्रावणी मेला शुरू हो जाता है, जो कि एक माह यानि रक्षाबंधन तक चलता है। श्रावण मास में यहां पार्थिव पूजन का विशेष महत्व है। पिथौरागढ़ मार्ग में अल्मोड़ा से 40 किमी. की दूरी पर स्थित जागेश्वर धाम शिव के बारह ज्योत्रिलिंगों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की इच्छाएं खाली नहीं जाती है।

यह धाम टंकण पर्वत के समीप जटा गंगा तथा कदी नदी के बीच में स्थित है। विशाल देवद्वार वृक्षों के सानिध्य में विश्व प्रसिद्ध बारह ज्योत्रिलिंग में एक नागेश ज्योत्रिलिंग, महामृत्युंजय, पुष्टि देवी, केदारनाथ ज्योत्रिलिंग, सूर्य, नवग्रह सहित 124 मन्दिरों का समूह है। जो कत्यूरी काल से लेकर चन्द वंश के राजाओं की कलाकतियों से विभूषित है और धरोहर के रूप में विद्यमान हैं। कहा जाता है कि जागेश्वर धाम में इस माह में पार्थिव पूजन करने वाले हर शिवभक्त की मनोकामना पूरी होती है, यह लोगों का विश्वास है।

मनोकामना पूरी करने के लिए मिट्टी, गोबर, चावल एवं मक्खन की पूजा की जाती है। नि:संतान दम्पति यहां रात्रि जागरण एवं व्रत-पूजा कर संतान सुख प्राप्त करते हैं। यात्रियों के ठहरने के लिए यहां कुमाऊँ मंडल विकास निगम के विश्रामालय के अलावा कई होटल उपलब्ध हैं। मेले में तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए प्रतिवर्ष प्रशासन द्वारा चिकित्सा सुविधाओं सहित अन्य सुविधाऐं उपलब्ध कराई जाती है। इस माह पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार को भारी संख्या में भक्त यहां पहुंच कर पुण्य अर्जित करते हैं।

ईश्वरी दत्त भट्ट, हल्द्वानी, 16-07-2022
दैनिक उत्तर उजाला, जुलाई 16, 2022 से साभार
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