खाल्ली फसक -बड़बाज्यू
लेखक - ज्ञान पंत
मैलि बड़बाज्यू (दादा जी) देखै नै! जब मेरि इज'ले नि देख् त मैं भला कां बटी देख् छियूँ। बाबू बतूनेर भ्या..... ऊँ जल्दी न्हे गेछी। म्यार् नौकरी लागी बाद उँ एक बेर लखनौ आयीं। मैलि अमीनाबाद में कौ ले कि तुमैरि एक फोटो बणैं दिनूं मगर उनैलि साफ कै दे। तुलै लागि रौछै, है जाल्, बाद में फिर कभै बणैं ल्हीयै।" और यो फिर कभै नि आय् पैं। उयी साल बड़बाज्यूनौक् स्वर्गवास है गोछी। यो त भल् भौ कि बाबून् कैं बखत पर खबर मिलि गेछी और छुट्टी मिलण् में ले के परेशानी नि भै। उँ तुरन्त घर पुजीं और पुर पनर-बीस दिन उनैरी सेवा टहल में रयीं। पित्र सेवा ले भौतै भाग्यैलि मिलैं! अच्छयान कै पास भै बखत और साँचि कूँछा त प्रेम भाव ले नि रै ग्यो नन्तरी जसी तसी के न के त हैयी सक्नेर भै हो।
बड़बाज्यू हौर द्वि भै छी। ठुल बड़बाज्यून'क क्याप बिजनेस जस् छी बल्। उँ ज्यादेतर दौड़ भाग मैयी रुनेर भ्या। बाग्सेर जांणै थोकदारन् थैं उनैरि जांण-पछ्याण भै। अंग्रेज लोग ले जब कभै आया त उनैरि व्यवस्था ले हमारै यां बटी हुनेर भै। कूणैं बात नि भै, संपन्न घर भ्यो हमौर् कूँछा। थ्वाड़्-थ्वाड़् त मैं कैं ले आमैलि बतैयी भै कि द्वि हव् बल्द, गोर्-भैंस, तीन गौंन में जमीन, बर्यात भरी भान्-कुन, पहाड़'क हिसाबैलि जतु सोचि सकीं, उ सब भै हमार् घर में। एक "भोकर" कि फाम (लम्ब तुरही जस् बाद्य) मैं ले छ। कूणौंक् मतलब छ कि धन्य-धान्य परिपूर्ण घर भै। तब मैं कैं ले अकल कां छी जऊँण। आब् जै बेरि पुरांणि चीजन'क महत्व समझ ऊँण लागि रौ। सोचूँ, मैयी के लखनौ लि उन्यूँ त कम स कम ड्राइंग रुम में सजी रुन। कां मिलनीं आब् पुरांण् चीज और पुराण् मैस ले! एक बेर मैं हल्द्वाणि बटी गगैरि खरीद लायूँ। एक गुलदस्त जस् बँणै बेरि ड्राइंग रुम में धरौ त म्यार् मित्र लोग चाय्यै रै ग्या। भौत दिनन् जांणै उ सजी रै। बाद यां ले व्यवस्था बदयी गे त फिर "पहाड़" जै जो पुछौं हो!
फसकी शैद यासै हुनेर भ्या। कां बात कां पुजै द्याल्, के भरौस नि भै। खैर बड़बाज्यूनौ स्वास्थ्य दिन ब दिन खराब हुँण लागि रौछी। करयाल् वाल भिन् ज्यू राठ खानदानी बैद्य भ्या। तराई-भाभर जांणै इलाज हुँ जनेर भै। ऊँ ले आय्, दवायि दि ग्या। अल्माड़् बटी अंग्रेजी दवायि ले मंगैयी गे, मगर के फैद जस् नि भै। बाद-बाद में उनैलि दवायि खांण् ले छाड़ि दे। कैले के कौये ले त चुप-चाप सुँण् ल्हे। होय-होय ले कै दी मगर कर आपणैं मनौक्। बाबुनैलि कभै के जिद ले करी त बगल में बैठै बेरि सजौल कै समझे दिनेर भ्या, च्याला, म्योर् बखत् आब् पुरी ग्यो! मरण् बखत आदिम जिद्दी है जांछ्, मैं जि कूँ, तु उयी कर। नि कर सकनै त कटकी रौ, कयीं के खाप् बटी निकयि पड़ौ त जिंदगी भर मलाल रौल ते कैं ले। मनखिनै चिन्ता न कर, जतु खाप उतुकै बात।
फिर बाबुनैलि जिद न करि। बेलकोट् वालि बुब ले ऐ गेछी, नानि बुब घरै छी। काक् शैद आठ-नौ में स्कूल जांछी।बिरादर लोग ले आते-जाते रुनेर भ्या। बुड़् मैंसनौक् के छी, ययीं बैठि रया सब! क्वे सानिक्-सानिकै भ्या त क्वे उनार् काक् जेठबौज्यु ले भ्या। यो सब बात मैं कैं बाबुनैलि बतैयी भै। सब त मैं कैं ले याद न्हाँ मगर जब कभै उनैरि याद ऐयी त मैं यसी कै बात दर बात जोड़नै कोशिश करुँ और एक फसक् जसि आजि तैयार है जैं, जैक ओर-छोर के नि भै। उसी ले फसक् मतलब निखालिस टाईम पास भै जसिकै चलती ट्रेन में मूँगफलि बेचणीं मूँगफलि थैं "पाँच रुपैं में टाईमपास" कूँ।
म्यार् बाबू भौतै ब्यस्त रुँछी। चालीस बरस में उनन् डायबिटीज पत्त लागी त डाक्टरैलि तुरन्त इंसुलिन शुरु कर दे किलैकि एक म्हैंण जांणै उनौर बुखार उतरै नै। कम ज्यादे हुनेर भै, रात में बिस्तर निचोड़ण् है जांछी। जब शुगर टेस्ट करी गे त चार सौ है ज्यादे ऐ और फिर उँ सन् 2000 जांणै रत्तै-ब्याव इंशुलिन ल्हीनेर भ्या। कभै बिमार भया त उँ पुराण् दिन भौतै याद करनेर भ्या। नान् भै बैणिन् के इंटरेस्ट नि भै मगर मैं पुर मनैलि उनैरि बात सुँण छियूँ। कभै इजैलि कौये ले कि यो कड़-कड़ कि लगै राखी त नड़क्यै दिने भ्या, और दिनन् मैं ले टैम कां हुँछी। मेरि ले दौड़ भाग लाग्यै रुनेर भै। आब् सोचूँ त लागौं उनन् "घर'क" भौतै मलाल छी!
खैर, एक दिन बड़बाज्यून 'कि तबियत ज्यादे खराब है पड़ी। बाबू कुनेर भ्या, उ रात उनन् नींन नि ऐ। चाख् में पलंग में बड़बाज्यू और तलि में म्योर बिस्तर भै। रात भर असज् जसि हैयी भै, दवायि दिंण् लाग्यूँ त उनैलि ईशारन् में मना करि दे। रात काटण् ले धौ है गे, रत्तै उनैलि ना ध्वे और फिर पड़ि ग्या। गौं में बात ले खुशबू न्याँत फैलैं। रत्तै बटी ऊँण-जाँण् शुरु है ग्यो। जो नि ऐ रौछी, उ लै दिन में भेंट करि ग्यो जांणि कैले बतै राखौ कि बिशन दत्त ज्यू आज-भोला' क मेहमान छन्! द्योफरि में सबनैले खाँणैकि जिद करी मगर उनैलि एक गास ले खाप् नि हाल्। ब्याव-ब्यावा टैम में आँख् लागण् बैठीं त उँ उठ बेरि बैठि ग्या।
अरे, द्वि जगूणौं टैम है रौ और मैं बिस्तर में पड़ि रयूँ! उनैलि बैठूँण तै कौ त मैलि लधार लगै बेरि बिठै द्या। उनैलि सबन् थैं खांणा लिजी कौ मगर आपण् एक गास ले नि खाय्। जब मैलि जिद करी त उनैलि साफ कै दे। मरण् बखत को खां यार! ततु अकल न्हाँति ते कैं ? बूबुलि सुँणीं त डाड़ मारण् लागी। फिर त सबनाक् आँख् भरी ग्या, मगर उनैलि मैं थैं साफ कयी भ्यो कि तु डाड़ झन् हालियै खबरदार! जस् मैं कूँ उयी करियै, भ्यार गोठ् में सुखी लकाड़् छन्। भतेर सन्दूक में डबल धरि राखीं। देवन्नी डबल देलो त ल्ही लिए और नि ले देलो त के झन् कयै। वीलि बखत पर भौत काम करि राखौ, और ले पाँच सात बतैयीं।
यो ले कौ कि तेरि इज भौतै सिद् छ, यै ध्यान धरियै। घाट में कि हुँ , बरौं दिन कि करी जां, बामणन् कतु दक्षिण दिंण् छ, बिरादरन् के दिंण् छ, नई धोति, बनैन कां धरी छ और ले दुन्नी भरी बातन् में रात बार बाजि ग्या। भतेर पन् जो जां छी वयीं खिति पड़ौ मगर म्यार् आँखन् है नींन गायब है गेछी। देर रात एक बखत उनैलि छाज् खोलण् त कौ। मैलि द्वार उघाड़ि बेरि भ्यार कै दिखा त कूँण लाग्, आजि टैम छनै। अल्लै बटी हाका-हाक पड़ली त गौं वाल् ले गायि कराल्। ठंड ले मस्तु है रौ और बात चीत ले के हुँछी पैं!
शैद उनन् पत्त चलि गोछी, जाँणि क्वे यमदूत भ्यार तैयार ठाड़् छ। चार बाज्या टैम में उनैलि भी मैं बैठूँण तैं कौ त मैलि टिप बेरि बैठै द्या। तब जांणै दिदि गोर् लगै ताजि दूदौक् गिलास ल्ही बेरि ऐ पुजी। उनैलि कौयि के न और गिलास ल्ही बेरि भ्यार खित दे। दिदि डाड़ मारण लागी त भ्यार कै देखि बेरि बलांण्, आब् टैम ले ठीक छ। सूर्ज ले बाट् लागि ग्यो। तु ले नै ध्वे बेरि के खै ल्हे। पछा ते टैम नि हौ, दुन्यां टटम् भै च्याला। मैं ले चटपट तैयार है गियूँ। फिर उनले कौ कि मैं बिस्तर है परकै धरि दे, बिस्तर में मरण भल् नि हुँन। भी में बैठण् में उ म्यार् काखिन् लधार लागीं त उनैरि गर्दन एक तरफ फरकी जै पड़ी, मैं अंदाज नि ऐ। मैलि सोचि नींन जसि लागि रैन्हेलि। तब काक'लि नाड़ि देखि बेरि बता, केदारी ! आब् शरीर में के न्हाँ रे। सबन'की डाड़ा डाड़ पड़ि गे फिर।
बाद में जस् उँ बतै जै रैछी, मैलि सब काम उनैरी इच्छानुसार करीं। उनैरि बार्सी प्रयाग में करी। बिरादर लोग नाराज ले भयीं। कइकनले नक् ले मानौ, जिंदगी भर गाँठ् पाड़ि ल्हे मगर के करछी पैं। बाबुन'कि ले की मजबूरी छी!
ज्ञान पंत, 02-11-2015, बी-1392 इन्दिरा नगर लखनऊ
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट से साभार
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