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भीमेश्वर महादेव मंदिर, भीमताल

भीमेश्वर महादेव मंदिर, भीमताल,पौराणिक शिव मंदिर,Bheemeshwar Mahadev Temple, Bhimtal, Shiva temples in Kumaun

भीमेश्वर महादेव मंदिर, भीमताल

भीमताल का श्री भीमेश्वर महादेव मंदिर कुमाऊँ के प्रमुख प्राचीन शिव मंदिरों से एक है माना जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व का यह शिव मंदिर भीमताल नगर में झील के पूर्वी किनारे पर स्थित है। मंदिर के पौराणिक महत्व के कारण ही झील तथा नगर का नाम भीमताल पड़ा है।

स्कंद पुराण के मानस खंड में भी इस शिवलिंग का उल्लेख है तथा मंदिर के नामकरण के सम्बन्ध में किवदंती है कि इस शिवालय की स्थापना पुरातन काल में दम्यंती के पिता राजा भीमसेन ने की थी। क्योंकि यहां से लगभग 4 किमी. की दूरी पर राजा नल और दमयंती के नाम से नल-दमयंती ताल के नाम से भी एक छोटी से झील स्थित है।

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मंदिर के नामकरण के सम्बन्ध में दूसरी किवदंती यह भी है कि पांडवों के कुमांऊँ प्रवास के दौरान जब द्रौपदी को प्यास लगी और भीम को पानी की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने अपनी गदा मारकर जमीन से पानी निकाला। गदा के प्रहार से जो गड्ढा बना उसी से झील बनी जिसे भीम के भीमताल को भीमताल कहा जाने लगा। पांडवो ने यहाँ पर शिव की पूजा की और शिवलिंग की स्थापना की तथा भीम के नाम से इसे भीमेश्वर महादेव कहा जाता है।

मंदिर के इतिहास के बारे में ब्रिटिश शासन काल के हिमालयन गजेटियर में एटकिंसन ने कहा है कि भीमेश्वर महादेव मंदिर को बाज बहादुर चंद ने 17वीं शताब्दी में बनाया था। लेकिन विद्वानों का मानना है कि एटकिंसन का यह उल्लेख क्षेत्र के पौराणिक महत्त्व के विपरीत है और भीमेश्वर महादेव का यह हजारों साल पुराना है। जिसका समय-समय पर पुनरोद्धार होता रहा और एटकिंसन के समय जो स्वरूप था, उसका पुनर्निर्माण 17वीं शताब्दी में चंद राजा, बाज बहादुर चंद द्वारा कराया गया था।

मंदिर का स्थापत्य उत्तराखंड के अन्य शिव मंदिरों जैसे बागेश्वर, जागेश्वर, गोपेश्वर आदि से मिलता है। इस मंदिर के प्रांगण में सूर्य और विष्णु भगवान की भी मूर्तियां हैं। प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता व संस्कृति कर्मी, स्थानीय निवासी पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल जी के अनुसार मंदिर प्रांगण में स्थित भगवान् सूर्य की मूर्ति एक हज़ार वर्ष से भी अधिक पुरानी होना बताया है।

मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध में विद्वानों के चाहे विभिन्न मत रहे हों पर भीमेश्वर महादेव मंदिर शिव भक्तों की आस्था और श्रद्धा का अनूठा केंद्र है। भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाले हजारो भक्त सावन माह में शिव की पूजा करने मंदिर प्रांगण में आते हैं। भक्तो अटूट श्रद्धा और शिवालय की शक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नगर और आसपास के क्षेत्रों में सूखा पड़ने की स्थिति में भक्त जब शिवालय के डूबने तक जलाभिषेक करते हैं तो इसके कुछ पल बाद ही बारिश शुरु हो जाती है।

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ब्रिटिश शासन काल 1864 ई. में लिया गया भीमेश्वर महादेव मन्दिर का छायाचित्र (source: wikipedia)

मंदिर के पुजारी मदन गिरी बताते हैं कि पहले मंदिर झील की तरफ से लगा हुआ था लेकिन बाद में ब्रिटिश शासन काल में जब तराई-भाबर में पानी की कमी महसूस हुई तो वर्ष 1890 के करीब झील और मंदिर के मध्य सर्पिलाकार तटबंध बनाया गया जिसे तराई भावर में सिंचाई के लिए व पीने के पानी की परेशानियों से निजात मिल सके।

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