'

कुमाऊँ की रामलीला का संक्षिप्त परिचय-२

कुमाऊं अंचल में रामलीला के मंचन की परंपरा है, Ramleela in kumaon, kumaon ki Ramleela,kumaun mein Ramleela, kumaun ki Ramlia

कुमाऊँ की रामलीला का संक्षिप्त परिचय

 भाग-१ से आगे....
रामलीला मंचन के प्रतिदिन के प्रारंभिक दृश्य में मुख्य पात्रों द्वारा सामूहिक स्वर में वन्दना का गायन किया जाता है। यह वंदना विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से की जाती है।  जैसे कहीं भगवान श्रीराम की वंदना तो कहीं सरस्वती या गणेश वंदना से रामलीला का प्रारम्भ होता है।मुझे बचपन में भीमताल की रामलीला की याद है, ७५-८५ के समय वहां पर गुरुंग ब्रदर्स मेक-अप का काम देखते थे।वो अपनी छोटी सी टीम के साथ बड़े ही सृजनात्मक (क्रिएटिव) थे और रामलीला के वंदना वाले दृश्य को प्रतिदिन एक नयी थीम के साथ प्रस्तुत किया करते थे। भीमताल जैसी छोटी सी जगह पर सीमित संसाधनों के साथ उनकी टीम का अपने काम के प्रति समर्पण और सृजनात्मकता सचमुच हैरान करने वाली थी।

रामलीला नाटक मंचन में दृश्य परिवर्तन के दौरान जो समय खाली रहता है, उसमें विदूशक (जोकर) अपने हास्य अभिनय से (आजकल के कार्यक्रमों में फिलर)  रामलीला के दर्शकों का मनोरंजन भी करता है।   कहीं कही पर जहाँ रावण /रावण पक्ष के किसी राक्षस दरबार का दृश्य होता है तो वह अपने दरबारियों से नृत्य देखने के लिए किसी नर्तकी को बुलाने का आदेश करता है।  इस प्रकार से किसी फ़िल्मी गीत या डांस नंबर को रामलीला में नर्तकी के नृत्य के रूप में समावेशित कर लिया जाता है।  कुमायूं की रामलीला में सामान्यतः अभिनय करने वाले सभी पात्र पुरुष होते हैं, किन्तु आजकल की रामलीलाओं में कोरस गायन, राक्षस दरबार नृत्य आदि में कुछ महिला पात्रों को भी शामिल किया जाने लगा है।

रामलीला नाटक मंचन में दृश्य परिवर्तन के दौरान जो समय खाली रहता है, उसमें विदूशक (जोकर) अपने हास्य अभिनय से (आजकल के कार्यक्रमों में फिलर)  रामलीला के दर्शकों का मनोरंजन भी करता है।   कहीं कही पर जहाँ रावण /रावण पक्ष के किसी राक्षस दरबार का दृश्य होता है तो वह अपने दरबारियों से नृत्य देखने के लिए किसी नर्तकी को बुलाने का आदेश करता है।  इस प्रकार से किसी फ़िल्मी गीत या डांस नंबर को रामलीला में नर्तकी के नृत्य के रूप में समावेशित कर लिया जाता है।  कुमायूं की रामलीला में सामान्यतः अभिनय करने वाले सभी पात्र पुरुष होते हैं, किन्तु आजकल की रामलीलाओं में कोरस गायन, राक्षस दरबार नृत्य आदि में कुछ महिला पात्रों को भी शामिल किया जाने लगा है।

कुमाऊँ अंचल में रामलीला मंचन की तैयारियां लगभग एक-दो माह पूर्व (अधिकांशतः जन्माष्टमी के दिन) से ही होनी शुरु हो जाती हैं।  जिसमें मुख्य रूप से रामलीला नाटक के मुख्य पात्रों का चयन कर उनको अभिनय व गायन का प्रशिक्षण दिया जाता है।   रामलीला के इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को तालिम कहा जाता है, जो उर्दू के तालीम का अपभ्रंश है।  तालिम के मुख्य प्रशिक्षक/निदेशक को तालीम मास्टर के नाम से जाना जाता है, कई वरिष्ठ अभिनेता भी उनको प्रशिक्षण में सहयोग करते हैं।  तालीम में तालीम मास्टर द्वारा पात्रों को सम्वाद, अभिनय, गायन व नृत्य का अभ्यास कराया जाता है।  कुमाऊँ में रामलीला का मंचन अधिकांशतः शारदीय नवरात्र में किया जाता है, लेकिन कहीं-कहीं गर्मियों व दीपावली के आसपास भी रामलीला का मंचन किया जाता है। कुछ रामलीला समितियों द्वारा 14 वर्ष तक लगातार रामलीला मंचन होने के बाद १४ वें साल में लव-कुश काण्ड का मंचन भी किये जाने की परम्परा भी है।

कुमाऊं की रामलीला में अंगद रावण संवाद (नरेश चमियाल के यूट्यूब चैनल से)

रामलीला के लिए मंच लकड़ी के खम्भों व तख्तों से तैयार किया जाता है, कुछ स्थानों जैसे नैनीताल, हल्द्वानी और भीमताल में रामलीला के स्थायी मंच भी बने हुए हैं।  इसके अलावा मंच की सज्जा, लाइटिंग टेंट और बैठने की व्यवस्था भी रामलीला समिति द्वारा की जाती है, इस सब के लिए धन की व्यवस्था समिति के सदस्यों द्वारा अनुदान, चंदे तथा किराये  दुकानों देकर की जाती है।  सामान्यतः शारदीय नवरात्र के पहले दिन से ही रामलीला का मंचन प्रारम्भ हो जाता है, जो दशहरे अथवा उसके एक दो दिन बाद तक चलता है।  रामलीला मंचन का प्रारम्भ (प्रथम दिवस का प्रथम दृश्य) मुख्य रूप से कहीं पर रावण तप तो कहीं पर नारद मोह के दृश्यों से होता है।  रामलीला नाटक के मंचन के दौरान श्रीराम के जन्म से लेकर श्रीराम के राजतिलक तक उनकी विविध लीलाओं का मंचन किया जाता है। कुमाऊँ की रामलीला में सीता स्वयंवर,परशुराम-लक्ष्मण संवाद, दशरथ-कैकयी संवाद, सुमन्त का राम से आग्रह, राम-केवट संवाद, सूर्पणखा नासिका वेधन, खर-दूषण वध, सीताहरण, राम-जटायु संवाद, राम-शबरी संवाद, राम की सुग्रीव से मित्रता, बाली-सुग्रीव युद्ध एवं बाली वध, हनुमान का लंका गमन तथा लंका में राक्षसों का वध, लंका दहन, अंगद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाद संवाद, लक्ष्मण शक्ति, कुम्भकरण वध, मन्दोदरी-रावण संवाद, राम-रावण युद्ध व रावण वध तथा भरत-मिलाप के प्रसंग मुख्य आर्कषण होते हैं।


रामलीला में धनुष यज्ञ श्री राम सीता विवाह का दृश्य (नरेश चमियाल के यूट्यूब चैनल से)

रामलीला नाटक के मंचन का अंतिम दृश्य श्रीराम के अयोध्या आगमन के उपरान्त उनके राज्याभिषेक का सुखान्त दृश्य होता है।  सम्पूर्ण रामलीला नाटक में तकरीबन सौ विभिन्न पात्रों द्वारा अभिनय किया जाता है। कुमायूं की रामलीला में राम, लक्ष्मण, सीता, रावण, हनुमान व दशरथ के अलावा अन्य पात्रों में परशुराम, सुमन्त, कैकेयी, मन्थरा, निशादराज, सूपर्णखा, खर-दूषण, जटायु, अंगद, शबरी, कुम्भकर्ण व मेघनाथ के अभिनय व संवाद  देखने/सुनने लायक होते हैं।  यहां की रामलीला में प्रयुक्त परदे, वस्त्र, श्रृंगार सामग्री व आभषूण प्रायः मथुरा शैली के होते हैं।  नगरीय क्षेत्रों की रामलीला को आकर्षक बनाने में नवीनतम तकनीक की साजसज्जा, रोशनी व ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग होने लगा है।

कुमाऊँ में में रामलीला मंचन की परम्परा अल्मोड़ा नगर से प्रारम्भ होकर बाद में आस-पास के अनेक स्थानों में चलन में आयी।  शुरुआती दौर में सतराली, पाटिया, नैनीताल, पिथौरागढ, लोहाघाट, बागेश्वर, रानीखेत, भवाली, भीमताल, रामनगर, हल्द्वानी व काशीपुर में रामलीला का मंचन मुख्य था।  इसके साथ ही कुमाऊं से बाहर भी पहाड़ी प्रवासियों द्वारा बरेली, मुरादाबाद,  लखनऊ तथा दिल्ली जैसे नगरों में भी कुमाऊं शैली की रामलीला को विशेष लोकप्रियता मिली।   उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा में आज भी आठ-दस स्थानों पर बड़े उत्साह के साथ रामलीलाओं  का आयोजन किया जाता है, जिनमें नगर की जनता व आस-पास के गांवों के दर्शक देर रात तक रामलीला का भरपूर आनन्द उठाते हैं।  अल्मोड़ा नगर क्षेत्र में लक्ष्मी भंडार (हुक्का क्लब) की रामलीला का अपना एक अलग आकर्षण होता है।  दशहरे के दिन नगर में रावण परिवार के डेढ़ दर्जन के करीब आकर्षक पुतलों को फूंकने से पूर्व पूरे बाजार में घुमाया जाता है, जिन्हें देखने के लिये नगर में भारी भीड़ एकत्रित होती है।

कुमाऊँ की रामलीला के विकास में पूर्व में स्व० पं० रामदत्त जोशी, ज्योर्तिविद (जिनके द्वारा रामलीला नाटक को लिपिबद्ध किया गया) के अलावा स्व० बद्रीदत्त जोशी, स्व० कुन्दनलान साह, स्व० नन्दकिशोर जोशी, स्व० बांकेलाल साह, व स्व० ब्रजेन्द्रलाल साह जैसे कई दिवंगत महानुभावों व कलाकारों का योगदान रहा, स्व० ब्रजेन्द्र लाल शाह जी ने रामलीला को आंचलिक बनाने के उद्देश्य से कुमांऊनी तथा गढ़वाली बोली में भी रामलीला को रुपान्तरित किया था।   वर्तमान में अल्मोड़ा में लक्ष्मी भंडार( हुक्का क्लब) के श्री शिवचरण पाण्डे और उनके सहयोगी, नैनीताल में रामसेवक सभा तथा हल्द्वानी के डॉ० पंकज उप्रेती सहित तमाम रामभक्त, रंगकर्मी व कलाकार यहां की परम्परागत रामलीला को सहेजने और संवारने के कार्य में लगे हुए हैं।  इसके अतिरिक्त रामलीला का आयोजन करने वाली हर रामलीला समिति के कलाकार भी उसके संरक्षण व विकास में योगदान करते हैं।   कुमाऊं के अलावा उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल अंचल में भी रामलीला के मंचन की परंपरा चली आ रही है।   उनकी परम्पराएं भी प्रस्तुतीकरण में स्थानानुसार थोड़ा बहुत भिन्न होने के बावजूद कुमाऊँनी रामलीला के समान ही समृद्ध है।

कुमाऊँ अंचल में शारदीय नवरात्र में रामलीला के मंचन की परंपरा काफी पुरानी मानी जाती है, जो वर्तमान तक चली आ रही है। Ramlila is a major event in Kartik Naratri in towns of Kumaun region of Uttarakhand

हिमालय संगीत शोध समिति के निदेशक डा.पंकज उप्रेती ने पहाड़ की रामलीला पर काफी विस्तार से शोध का काम किया है।  उन्होंने ही केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सामने पहाड़ की रामलीला का खाका रखा था।  आखिरकार डा.उप्रेती का प्रयास रंग लाया और संस्कृति मंत्रालय ने पहाड़ (उत्तराखंड) की रामलीला को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया।  लंबी जद्दोजहद के बाद पहाड़ की रामलीला को २०१० में केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया था तथा संगीत नाट्य अकादमी को रामलीला के संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी।  डा.उप्रेती पहाड़ी रामलीला की गायनशैली पर एक तथ्यपूर्ण पुस्तक भी लिख चुके हैं।  वर्तमान में उत्तराखण्ड के लगभग हर स्थान पर रामलीलाओं का मंचन किया जाता है, जिनमें उत्तराखण्ड राज्य की इस समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा को सहेजने का प्रयास जारी है।

कुमाऊँ की रामलीला सम्बन्धी जानकारी और वीडियोज Kumauni Culture फेसबुक ग्रुप पर 
फोटो सोर्स: गूगल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ