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आपुण संस्कृति

रचनाकार:  रेणुका जोशी

आपुण संस्कृति

कसिक बचाला हो
आपुण संस्कृति।
ऊ त सरमै बे कत्थप
उड्यारन में भाजि ग्ये।

सनीमा ज आब घर घरै हूणों
"प्री वेडिंग सूट" देखि बे
रणीं गेयूं हम
अणकस्सै ज है ग्ये।

पैली टाल हाली लुगुणां में
सरम ऊंछी हमूंकं
आब गाव बगी लुगुड़ और
फाटी भिदाड़ पैर बे च्याल चेली
बजार घुमनी, स्मार्ट कूनी आपुकं।

कदु नक मानछी पैली
घुत्त दिखूण
आब त भौत्तै भल भै
घुत्त दिखूंण
घुत्ताक लै दिन फेरी ग्ये
संस्कृति कां बै कां ऐ ग्ये।


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