रचनाकार: रेणुका जोशी

सोल सराद
कैल देखी छू परलोक
को आ वां ज बेर?
मनौ कै भैम भै यौ
सराद भैर करौ अल्बेर।
पितरन धै कौ गया हिटौ
वैं खाला प्याला
जदुक है सकल हम करुंल
तुम हमनकं असीस द्याला।
पाणि ज चारि रिस्त भै यौ
तली तली हुं बगनी
माय मोह लै तस्सी भै
नानतिना तरप खिचिनी।
पितरो तुमार नानतिन भै हम
दुनी में रूण जालै सब्बै चैं।
आपुण नानतिनाक भल करिया
मणीं दिन यां रुनू फिर पुजुंल वैं।
कसि तुमैरि कुसलपात?
कसी रूंछा वां?
यां बै तुम न्है गोछा
पर नाम तुमौर यां।
तुमौर नाम, तुमौर गौं
तुमार बोट तुमौर खौ।
तुम जे लै करि गोछा काम
हमौर कस भल छू यां नाम!
तुमैरि अनारि ल्हि बे ज्यून हम
तुमैरि बंसैकि लगिल हम
लगिलांक फुल्यूड़ हमार नानतिन
तुमैरि बसाई दुन्नी में फलौं फूलौं नानतिन।
द्याप्ता चारि दैण रया पितरो !
असीस दिया आपुण बंस कं।
तुमैरि बसाई दुन्नी में भल हौ सबनक
सन्मति दिया आपुण अंस कं।
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