रचनाकार - सुन्दर कबडोला
चाँड पौथि उठणि वै
तू उणरि दगडि छेवै
ऐ कुँमो आँचल कि नारि वै
राति भौर ठा उठणि छै
आँगण झाड चुल लिपणि छै
त्यर यूँ दिन चरिया चढ
पजै चढु यूँ सुरज गँढ
गँढ बै उछै घाँ कू डाल
गौर भैसि मौऊ गाडणि छै
चूल भाँण कर
एक पल रुक जा
हाँवू ब्याँऊ फल फुलू पाँत
तू नि रुकणि ना यूँ बगदू पाणि जन
जै दिन रुकलि…
“थम जाल यूँ माटि अँन
गौर भैसि दुधाँरु थँन”
सुख दुख स्यौतू जन टिपणि छै
लाँकड पिरुग घै कू डाल
ख्वँर पडि छू भौते भार
हिटणि छै सौ कोसू पार
सुरज छिप जा
नि छिपण यूँ तेरो बुँत
नि छिपण यूँ तेरो बुँत
लेख - सुन्दर कबडोला ©copy right, All Rights Reserved
गलेई - बागेश्वर- उत्तँराखण्ड
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